पिता (दस क्षणिकाएं)
शनिवार, 18 जून 2022
आज पितृ दिवस पर हिन्दी के प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार और
कहानीकार अपने आदरणीय पिता श्री प्रेमस्वरूप श्रीवस्तव जी को याद करते हुए।
पिता
(दस क्षणिकाएं)
(एक)
पिता
विशाल बाहुओं का छत्र
वट वृक्ष
हम पौधे
फ़लते फ़ूलते
वट वृक्ष की
छाया में।
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(दो)
पिता
अनन्त असीमित आकाश
हम सब
उड़ते नन्हें पाखी।
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(तीन)
हम
लड़खड़ाते
जब जब भी
सम्हालते पिता
आगे बढ़ कर
बांह पसारे।
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(चार)
आंसू
बहते गालों पर
ढाढ़स देता
पिता के खुरदरे
हाथों का स्पर्श।
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(पांच)
पिता
बन जाते उड़नखटोला
हम करते हैं सैर
दुनिया भर की।
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(छः)
हमारी ट्रेन
खिसकती प्लेटफ़ार्म से
पिता
पोंछ लेते आंसू
पीछे मुड़कर।
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(सात)
पिता
बन जाते हिमालय
कोई आक्रमण
होने से पहले
हम पर।
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(आठ)
जब भी
आया तूफ़ान कोई
हमारे जीवन में
पिता बन गये
अजेय अभेद्य
दीवार।
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(नौ)
पिता
बन गये बांध
समुन्दर को
बढ़ते देख
हमारी ओर।
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(दस)
पिता
बन गये बिछौना
हमें नंगी जमीन पर
सोते देख कर।
000
डा0हेमन्त कुमार
4 टिप्पणियाँ:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२०-०६-२०२२ ) को
'पिता सबल आधार'(चर्चा अंक -४४६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
पिता को सम्मान देती, परिभाषित करतीं बहुत सुंदर सराहनीय क्षणिकाएं। आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है।
सुन्दर रचना
बहुत सुंदर रचना
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