लड़की
बुधवार, 18 फ़रवरी 2009
भाई की थाली की जूठन
खाती है जब लड़की
फ्राक पे रोज नया पैबंद
लगाती है जब लड़की
फ़िर क्यों हरदम कोसी जाती
प्यारी सी एक लड़की।
आँखों में कितने सपने बंद
दिल में ढेरों हैं अरमान
आंवे के बरतन सा तपती
हर घर आँगन की इक लड़की
फ़िर क्यों हरदम कोसी जाती
मनहूस कहाती प्यारी लड़की।
यूँ तो घर की खुली खिड़कियाँ
दरवाजे भी खुले खुले हैं
पर घोर अंधेरी गुफा में दिन भर
बैठी रहती है हर लड़की
फ़िर क्यों हरदम कोसी जाती
प्यारी सी सुंदर सी लड़की।
भाई को तो नयी किताबें
नयी शर्ट और नयी जुराबें
दुनिया के हर रस्ते उनके
खुशियाँ सारी दर पे उनके
घर की चार दीवारी भीतर
घुटती है क्यों प्यारी लड़की।
रोज सुबह क्यों कोसी जाती
मनहूस कहाती प्यारी लड़की।
खाती है जब लड़की
फ्राक पे रोज नया पैबंद
लगाती है जब लड़की
फ़िर क्यों हरदम कोसी जाती
प्यारी सी एक लड़की।
आँखों में कितने सपने बंद
दिल में ढेरों हैं अरमान
आंवे के बरतन सा तपती
हर घर आँगन की इक लड़की
फ़िर क्यों हरदम कोसी जाती
मनहूस कहाती प्यारी लड़की।
यूँ तो घर की खुली खिड़कियाँ
दरवाजे भी खुले खुले हैं
पर घोर अंधेरी गुफा में दिन भर
बैठी रहती है हर लड़की
फ़िर क्यों हरदम कोसी जाती
प्यारी सी सुंदर सी लड़की।
भाई को तो नयी किताबें
नयी शर्ट और नयी जुराबें
दुनिया के हर रस्ते उनके
खुशियाँ सारी दर पे उनके
घर की चार दीवारी भीतर
घुटती है क्यों प्यारी लड़की।
रोज सुबह क्यों कोसी जाती
मनहूस कहाती प्यारी लड़की।
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हेमंत कुमार
हेमंत कुमार