
एक ठहरा दिन
उलझनों में जिंदगी की
हो जाता है गुम
जैसे भोर का सपना।
स्वप्नों को बाँध कर
वक्त के कगार पर
काट रहे दिन
जैसे विरह कोई अपना।
संबंधों के दायरे में
टूटते रिश्ते
जैसे बंद कमरों में सिसकती
जिंदगी का घुटना।
वेद की पावन ऋचाएं
दे रहीं आश्वासन
जीवन संगीत का
जैसे सगा कोई अपना।
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हेमंत कुमार
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