पतवार
गुरुवार, 19 नवंबर 2009
हर पतवार में छिपा रहता है
एक नाव का स्वप्न
एक नदी की नींद
एक नाविक का स्वप्न—सहवास।
यह बात समझ नहीं पाते
नाव में बैठे लोग
समझ नहीं पाती हवा
किस पतवार में होती कितनी सांस।
तूफ़ान का सामना करने के एहसास में
आगे बढ़ चलती है पतवार
न पहचानती है प्रकाश न अंधकार।
पानी में तैरती नन्हीं नन्हीं मछलियां
दोनों किनारों पर मुस्कान भरे खड़े
पेड़ सारे
प्यार नहीं करते पतवार को
न जाने क्यों?
पतवार तो है एक महक
एक अमित जीवन
समझा नहीं पाती किसी को कुछ
पतवार
अकेले बिताती चलती
बस दिन—पर—दिन।
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कवि — मानस रंजन महापात्र ओड़िया के प्रसिद्ध एवम चर्चित कवि हैं।वर्तमान समय में मानस नेशनल बुक ट्रस्ट ,इंडिया के बाल साहित्य केन्द्र में संपादक पद पर कार्यरत हैं।
हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित