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कुछ लघु कविताएं

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

औरत 
हाथ  के  फफोले 
सूख  गए  सब 
आंसुओं  के  तेजाब  में 
अब   तो  ऑंखें 
उगलती  हैं  आग 
और  हाथ  सहलाते  हैं
दरांती  की   पैनी  धा  को 
किसी  बलात्कारी  को  देख  कर 
0000
 सन्नाटा
कमरे का सन्नाटा
टूटता है कबूतरों की गुटरगूं
और चमगादड़ों की
फ़ड़फ़ड़ाहट से
कमरे में तरतीब से
रखा हर सामान
बयां करता है
कमरे के कभी आबाद
रहने की कहानियां।
000
समय
रेत बन कर के समय
मुट्ठियों से गिर रहा
हम घड़ी की सूइयों की
नोक में उलझे रहे।
000
स्वतंत्रता
कुछ शब्द
नहीं बंधना चाहते
पंक्तियों में
क्योंकि
वे स्वयं में
एक ग्रन्थ हैं।
0000
हेमन्त कुमार

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सूरज सी हैं तेज बेटियां -------

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

          31 अक्टूबर का दिन भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिये बहुत खास था। खास इस लिये कि इसी दिन दुनिया के सात अरबवें शिशु का जन्म हुआ। और वह भी एक लड़की के रूप में। हमारे अपने प्रदेश लखनऊ के माल कस्बे में पैदा हुयी नरगिस को दुनिया की सात अरबवां  शिशु बनने का गौरव मिला। पूरी दुनिया से उसे बधाइयां मिली। वह अखबारों,न्यूज चैनल की सुर्खियों में आई। धरती पर नरगिस का खूब जोरदार स्वागत हुआ।संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून से लेकर मल्लिका सारभाई,सुनीता नारायण जैसी हस्तियों और तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं ने नरगिस के उज्ज्वल भविष्य की कामना की।कुल मिलाकर पूरी दुनिया में उसके पैदा होने की चर्चा से एक जश्न का माहौल बन गया।एक तरह से देखा जाय तो दुनिया भर की बेटियों के लिये यह बहुत ही शुभ अवसर था।
        लेकिन अगर हम सच्चाई की बात करें तो हमारे देश में परिदृश्य काफ़ी भयावह है। हमारे देश और समाज में आज भी लड़कियों को वह दर्जा नहीं मिल सका जो उसे मिलना चाहिये।आज भी हमारे देश में कन्या का जन्म एक अभिशाप माना जा रहा है। तमाम सरकारी कानून और बन्दिशों के बावजूद आज भी लोग पैथालाजी सेन्टर्स पर जाकर भ्रूण लिंग परीक्षण करवा रहे हैं।आज भी ऐसी बर्बर मानसिकता के लोग हैं जो आनर किलिंग जैसे पाशविक कारनामे करते हैं। आज भी सड़क पर चलने वाली लड़कियां सुरक्षित नहीं। और इसी का नतीजा है कि 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश में शून्य से छह साल की उम्र में एक हजार लड़कों के पीछे लड़कियों की संख्या महज 914हो गयी है।यानि कि लड़के लड़कियों की संख्या में भी अन्तर बढ़ रहा है।
           यहां सवाल यह उठता है कि यह अन्तर कम कैसे किया जाय?लोगों की मानसिकता कैसे बदली जाय?लड़कियों को उनका हक कैसे दिलवाया जाय?समाज की सोच कैसे बदली जाय?
     हमें इन प्रश्नों का उत्तर सीधे अपने परिवार से ही ढूंढ़ना पड़ेगा।क्योंकि परिवार हमारे समाज की इकाई है।परिवार से ही लड़की और लड़के के बीच अन्तर की शुरुआत होती है। और  इस अन्तर को खतम करने की शुरुआत और रास्ते भी हमें अपने परिवार में ही बनाने होंगे। सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि परिवार में हम किस तरह से अपने ही बच्चों में यह भेद पैदा कर रहे हैं।
  • शिशु के जन्म का उत्सव:आज इतने शिक्षित, सभ्य और सुसंस्कृत हो जाने के बावजूद बहुत से परिवार आपको ऐसे मिलेंगे जहां बेटे के पैदा होने पर तो अच्छा खासा जश्न मनाया जाता है। लेकिन अगर कहीं गलती से पैदा होने वाला शिशु बेटी है तो उसके पैदा होने पर जश्न की मात्र औपचारिकता निभा दी जाती है। घर वालों में वह उत्साह नहीं दिखता जो एक नवागत के आने पर होना चाहिये।
  • खानपान में अन्तर:मेरे समझ में यह बात आज तक नहीं आई कि परिवार में खाना खाते समय घर के पुरुषों,लड़कों को खाना पहले क्यों परोसा जाता है और महिलाओं और लड़कियों को बाद में? अगर लड़कियों को पहले खाना खिला दिया जायेगा तो क्या खाना खतम हो जायेगा या उसकी महत्ता कम हो जायेगी? घरों की बात छोड़िये अगर आप शादी विवाह या किसी अन्य समारोह में जायेंगे तो वहां भी यही रीति अपनायी जाती है। जबकि हम हमेशा नारा देते हैं लेडीज फ़र्स्ट का।इतना ही नहीं अक्सर हम यह मानकर कि लड़कों को ज्यादा मेहनत करनी हैउन्हें अधिक पोषक खाना देते हैं और लड़कियों को कम। क्या लड़कियों को पोषण की जरूरत नहीं है?(जबकि सच्चाई यह है कि लड़कियां ज्यादा शारीरिक श्रम करती हैं,उन्हें भविष्य में मां भी बनना है इस दृष्टि से भी उन्हें ज्यादा पोषक खाने की जरूरत रहती है।
  • घरेलू काम काज:आज भी हमरे परिवारों की मनसिकता यही बनी है कि घरेलू कामकाज लड़कियों की जिम्मेदारी है। अगर आपका बेटा बेटी दोनों सामने हैं तो हमेशा आप कहते हैं कि बिटिया जरा एक गिलास पानी पिलानान कि बेटा जरा एक गिलास पानी लाओ। ऐसा हम क्यों करते हैं? यदि पति पत्नी दोनों ही सर्विस करने वाले हैं तो घर लौटने पर पति पत्नी से उम्मीद करता है कि वो एक प्याली चाय बना कर उसे दे। कभी खुद इस दिशा में पहल नहीं करता।घर की सब्जी काटना,बर्तन,चूल्हा चौका,कपड़े धोना इन सबके लिये हम परिवार की लड़कियों को ही क्यों आदेश देते हैं। लड़कों को क्यों नहीं? हमे अपनी इस सोच और मानसिकता को बदलना ही होगा।
  • शिक्षा दीक्षा:अपने ही बच्चों को शिक्षा देने के मामले में भी हम हमेशा लड़कों को ही स्कूल भेजने की दिशा में पहल करते हैं। लड़कियों को बाद में यह अवसर देते हैं।जबकि लड़कियों को शिक्षित करना ज्यादा जरूरी है। इस दृष्टि से कि उसे तो दो घरों की(आपके और ससुराल के) की जिम्मेदारियां सम्हालनी हैं। लड़का तो बस आपके ही परिवार को चलायेगा। यद्यपि इस दिशा में हमारे समाज की सोच थोड़ा तो बदली है लेकिन उतनी नहीं जितनी बदलनी चाहिये। हमें इस बिन्दु पर खास तौर से अधिक ध्यान देने की जरूरत है। कहीं कहा भी गया है कि मां ही पहली शिक्षक होती है। यानि कि आपकी लड़की का पढ़ना लिखना इस लिये भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वह भविष्य में मां बनेगी। अगर वह पढ़ी लिखी रहेगी तो आपके ,ससुराल के घर को स्सुव्यव्स्थित रूप से संचालित करने के साथ ही अपने शिशु को शिक्षित,संस्कारित करके देश को एक अच्छा जिम्मेदार नागरिक भी प्रदान करेगी।
  • खेलकूद एवम अन्य गतिविधियों के अवसर:आम भारतीय परिवारों में अक्सर यह दृश्य देखने को मिलता है कि लड़के लड़की दोनों स्कूल से आये।और लड़का तो आते ही बस्ता एक तरफ़ फ़ेंक कर भागा सीधे मैदान की ओर। दोस्तों के साथ खेलने के लिये। और लड़की बेचारी बस्ता रखते ही जुट गई मां के साथ घरेलू कामों में हाथ बटाने के लिये। और परिवार का मुखिया यानि पिता बड़े गर्व से अपने दोस्तों,रिश्तेदारों से यह कहता है कि देखो मेरी बिटिया कितनी समझदार है जो स्कूल से आते ही घर के काम में जुट गई। बात उनकी सही है---लड़की तो समझदार है ही। लेकिन क्या उसको खेलने कूदने मनोरंजन का अवसर नहीं मिलने चाहिये?वो खुद कभी अपनी बिटिया से यह कहते कि बिटिया जाओ तुम भी थोड़ी देर अपनी सहेलियों के साथ खेल कूद आओ। लाओ घर के काम मैं करवा देता हूं। हमें अपने परिवारों की यह मानसिकता भी बदलने की जरूरत है।
  • कपड़े पहनावे के स्तर पर अन्तर:कभी भी कोई त्योहार या उत्सव होगा नये कपड़े बनवाने का अवसर हम परिवार में सबसे पहले लड़के को देते हैं। लड़कियों का नम्बर बाद में आता है?क्यों भाई?क्या लड़की को नये कपड़े पहनने का हक नहीं?या उसके कपड़े बनवाने पर आपका खजाना खतम हो जायेगा। आप पहले लड़कियों के कपड़े बनवाने की बात क्यों नहीं करते?हमें इस सोच को भी बदलने की आवश्यकता है।
  • शादी विवाह का निर्णय:लड़के लड़की के अन्तर का सबसे अहम प्रश्न और महत्वपूर्ण बिन्दु है यह हमारे भारतीय समाज का। हम अपने बेटे की शादी तय करते समय तो लड़की देखने,पसन्द नापसन्द,पढ़ाई लिखाई हर मुद्दे पर अपने बेटे को अपने साथ रखते हैं।उसकी सलाह लेते हैं।उसके कहने पर कई कई लड़कियों को देख कर रिजेक्ट कर देते हैं।लेकिन लड़की के लिये?क्या कभी हम शादी विवाह के समय उसकी पसन्द नापसन्द के बारे में सोचते हैं।या उससे पूछते हैं कि बेटी तुम्हें किस नौकरी वाले लड़के को अपना जीवन साथी बनाना है? या कि अभी तुम विवाह करने के लिये मानसिक रूप से तैयार हो? क्या लड़कियों को अपने जीवन साथी के बारे में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है? क्या वह मात्र एक हाड़ मास की पुतली है जिसे हम किसी भी व्यक्ति के साथ बांध कर अपने उत्तरदायित्व से छुटकारा पा जाना चाहते हैं?भारतीय समाज और परिवार की इस सोच को भी बदलना ही होगा। तभी हम लड़कियों की बराबरी का दर्जा देने के स्वप्न को पूरा कर सकेंगे।
  • ये कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिन्दु हैं हमारे समाज और परिवार के जिन पर चिन्तन करके,जिनमें बदलाव लाकर ही हम दुनिया की सात अरबवीं शिशु बनने का गौरव पाने वाली प्यारी बिटिया नरगिस और उसके जैसी दुनिया भर की सभी बेटियों को उनका हक़,सम्मान,और समाज में उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ा सकेंगे।और कवियत्री पूनम श्रीवास्तव के गीत बेटियां की इन पंक्तियों को साकार कर सकेंगे।
  • सूरज से हैं तेज बेटियाँ/चाँद की शीतल छाँव बेटियाँ/झिलमिल तारों सी होती हैं/दुनिया को सौगात बेटियाँ/कोयल की संगीत बेटियाँ/पायल की झंकार बेटियाँ/सात सुरों की सरगम जैसी/वीणा की वरदान बेटियाँ/घर की हैं मुस्कान बेटियाँ/लक्ष्मी का हैं मान बेटियाँ/माँ बापू और कुनबे भर की/सचमुच होती जान बेटियाँ
                  00000000000
डा0हेमन्त कुमार

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लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. 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