कुछ लघु कविताएं
सोमवार, 20 फ़रवरी 2012
औरत
हाथ के फफोले
सूख गए सब
आंसुओं के तेजाब में
अब तो ऑंखें
उगलती हैं आग
और हाथ सहलाते हैं
दरांती की पैनी धार को
किसी बलात्कारी को देख कर ।
0000
कमरे का सन्नाटा
टूटता है कबूतरों की गुटरगूं
और चमगादड़ों की
फ़ड़फ़ड़ाहट से
कमरे में तरतीब से
रखा हर सामान
बयां करता है
कमरे के कभी आबाद
रहने की कहानियां।
000
समय
रेत बन कर के समय
मुट्ठियों से गिर रहा
हम घड़ी की सूइयों की
नोक में उलझे रहे।
000
स्वतंत्रता
कुछ शब्द
नहीं बंधना चाहते
पंक्तियों में
क्योंकि
वे स्वयं में
एक ग्रन्थ हैं।
0000
हेमन्त कुमार
6 टिप्पणियाँ:
वाह जी बढ़िया है
चारों विषयों पर सशक्त अभिव्यक्ति...
सन्नाटा
कमरे का सन्नाटा
टूटता है कबूतरों की गुटरगूं
और चमगादड़ों की
फ़ड़फ़ड़ाहट से
कमरे में तरतीब से
रखा हर सामान
बयां करता है
कमरे के कभी आबाद
रहने की कहानियां।
Wah!
चारों बेजोड्।
समय पर अभिव्यक्ति जबरदस्त!
ये छोटी छोटी कवितायेँ बहुत प्रभावशाली हैं ...........
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