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छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी

बुधवार, 19 नवंबर 2014

                         
                           हर युवा दम्पत्ति का यह सपना होता है कि उसके घर के आंगन में
 भी एक नन्हें कोमल प्यारे शिशु की किलकारियां गूंजें। शिशु अपनी अनोखी बाल लीलाओं से उनके सूने घर को गुंजारित करे। उनका यह स्वप्न पूरा भी होता है।उनके घर जब नन्हें मेहमान का आगमन होता है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता।युवा दम्पत्ति जी जान से उसकी देखभाल में तो जुट ही जाते हैं। साथ ही उसकी बाल लीलाओं का भी आनन्द उठाते हैं।
       इस शिशु के बढ़ने के साथ ही उनकी खुशियां बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगती हैं। खासकर शिशु के बकैयां चलने से लेकर उसके स्कूल जाने तक की अवधि हर अभिभावक के लिये बहुत ही ज्यादा जिम्मेदारी वाला समय होता है। इस दौरान बच्चा घुटनों के बल चलना शुरू करता है,पहले वह थोड़ी ही दूर जाता है। फ़िर घर भर में इधर उधर भागता है। हर चीज को देखकर, छू कर महसूस करने की कोशिश करता है। घर में रखे सामानों को बिखराता है। चीजों को फ़ेंकता है। उलट पलट करता है। ऐसी अवस्था में मां बाप दोनों को शिशु के ऊपर कुछ ज्यादा ध्यान देने और थोड़ा अतिरिक्त सावधानी रखने की जरूरत पड़ती है। अन्यथा शिशु को हल्के फ़ुल्के नुक्सान से लेकर बड़े हादसे तक घटित हो सकते हैं।
          मैं यहां पहले उन हादसों का जिक्र करूंगा जिन्होंने बच्चों के मां बाप के साथ ही मुझे भी बहुत गहराई तक झकझोर दिया था। और जिनकी वजह से ही आज मैं यह लेख लिख रहा हूं। आप खुद भी इन घटनाओं को पढ़कर समझ सकते हैं कि यदि उस समय थोड़ी सी सावधानी बरती गयी होती तो कुछ अबोध शिशु असमय मौत के शिकार न हुये होते। ऐसे हादसे जिनकी जिम्मेदारी उनके अभिभावकों की ही थी। ऐसा नहीं कि उन अभिभावकों ने जानबूझ कर ऐसा किया था बल्कि उनकी थोड़ी सी असावधानी ने उनके जीवन की तमाम खुशियां छीन लीं।
            पहली घटना। आज से बीस साल पहले की है। इलाहाबाद में मेरे एक पड़ोसी ठेकेदार थे। बहुत खुशहाल परिवार । घटना उनके एक साल के बहुत सुन्दर सलोने बेटे के साथ हुई। उनकी पत्नी ने कपड़े धोये। उन्हें निचोड़ा और आंगन में ही गन्दे पानी से भरी बाल्टी छोड़कर छत पर कपड़े फ़ैलाने चली गईं। पन्द्रह बीस मिनट बाद वो कपड़े फ़ैलाकर वापस नीचे आईं तो आंगन का दृश्य देखकर चीख पड़ीं। आंगन में उनका एक साल का बेटा बाल्टी में उल्टा पड़ा था। यानि उसका पैर बाल्टी के बाहर और सिर बाल्टी के अन्दर पानी में। चीख सुनकर घर के लिग इकट्ठे हुये। बच्चे को तुरन्त अस्पताल लेकर भागे । पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। चिकित्सक बच्चे को नहीं बचा सके। हुआ यह था कि उनके छत पर जाते ही बच्चा वहां आया। उत्सुकतवश उसने भरी बाल्टी के अन्दर झांकने की कोशिश की। और उसी दौरान वह उसमें उलट गया। काश कि उनके छत पर जाते समय कोई उनके बच्चे को सम्हाल रहा होता। य वो बाल्टी का पानी गिराकर गयी होतीं…।
        दूसरी घटना।मेरे अपने ही घर में।मेरी छोटी बहन सपरिवार आई थी।उनका डेढ़ साल का बेटा साथ में था।बैठक में सभी लोग बातचीत में मशगूल थे।दूसरे कमरे में बच्चे खेल रहे थे।इसी बीच कोई बच्चा चीखा।हम सभी भाग कर अन्दर के कमरे में पहुंचे।वहां मेरी बहन के सुपुत्र पाउडर से पूरे नहाये  हुये चीख रहे थे। उसने ट्रन्सपरेण्ट डिब्बे में रखे विम पाउडर को कोई खाने की चीज समझ कर अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश की।शायद डिब्बे का ढक्कन ढीला होने के कारण पूरा
विम पाउडर  उसके ऊपर।कुछ मुंह और आंख में भी गया।हम लोगों ने जल्दी से पहले उसे नल के नीचे अच्छी तरह नहलाया फ़िर लेकर भागे डाक्टर के घर।संयोग से विम पाउडर उसके पेट में नहीं गया था। बस थोड़ा आंखों और दांतों में लगा था ड़ाक्टर ने दवायें दीं।शाम तक उसे आराम मिल गया।
        तीसरी घटना।अभी 2साल पहले मेरे पड़ोस में घटी थी।बच्ची के पिता सरकारी नौकरी में और पत्नी शिक्षिका।एक बच्ची 4साल की दूसरी बड़ी।उस दिन पिता आफ़िस और बड़ी बेटी स्कूल में थे।घर पर छुटकी और मां।मां रसोईं में।तभी छुटकी चीखी।मां कमरे में पहुंची तो एक तरफ़ प्रेस लगा था और छुटकी पड़ी चीख रही थी।हुआ यूं कि छुटकी ने मां को किचेन में मशगूल पाया, उसने सोचा कि मैं भी अपनी बड़ी बहन की तरह फ़्राक पर प्रेस कर लूं।वह प्रेस लायी,उसे लगा कर आन किया और पहनी हुई फ़्राक पर प्रेस करने की कोशिश में अपना पैर जला बैठी।
उसे भी इन्जेक्शन,डाक्टर और अस्पताल की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।
              अब आप बताइये इन तीनों घटनाओं में उन अबोध शिशुओं की क्या गलती थी? अगर उनकी गतिविधियों पर मां बाप या किसी बड़े का ध्यान रहा होता तो शायद ये हादसे न होते। इसीलिये इस उम्र के बच्चों की देखभाल में,लालन पालन में बहुत अधिक सावधानी रखने की जरूरत है। ऐसा नहीं कि कोई मां बाप अपने बच्चे के लिये जानबूझकर ऐसी स्थितियां पैदा करता है। वह क्यों करेगा ऐसा? ये तो अनजाने में हुयी थोड़ी सी असावधानी ऐसी परिस्थितियों को जन्म देती है।
 थोड़ी सी सावधानी बच्चे कि सुरक्षा के लिये----
        आइये अब देखते हैं कि इन छोटी उम्र के बच्चों के लालन पालन के दौरान हम किस तरह की सावधानियां अपनाकर उनका जीवन सुरक्षित रख सकते हैं। मैंने पहले ही कहा है कि जब तक बच्चा गोद में ,पालने या बिस्तर पर रहता है तब तक वह आपके सहारे ही घर में इधर उधर जा सकता है। लेकिन जैसे ही वह घुटनों के बल या बकैयां  चलना शुरू करता है वह पूरे घर में घूमने लगता है। और उसकी इस क्रिया से उसके साथ आप भी आनन्दित होते हैं। इस समय बराबर  उसके ऊपर ध्यान देने की जरूरत रहती है।
0 क्या करें?
* सबसे पहले अपने घर में नीचे की तरफ़ लगे हुये सभी इलेक्ट्रिक प्लग प्वाइण्ट बन्द करवा दें। या उन्हें थोड़ा ऊंचाई पर शिफ़्ट करवा दें। क्योंकि इनके खुले रहने पर उत्सुकतावश बच्चा उनके छेदों में उंगलियां डालने की गलती कर सकता है।
*घर की आल्मारियों में नीचे के खानों में कोई भी जहरीला, खतरनाकपदार्थ(फ़िनायल,तेजाब,मिट्टी का तेल,हार्पिक्स,विम एवम डिटर्जेण्ट पाउडर इत्यादि) न रखें।इन वस्तुओं को ऐसी जगह रखें जो आपके शिशु की पहुंच से दूर हो।
*अपने घर के इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्ट्रिकल उपकरणों को शिशु की पहुंच से दूर थोड़ा ऊंचाई पर रखें।
*घर में मौजूद दवायें हमेशा बच्चों की पहुंच से दूरऽअल्मारी के ऊपरी खानों में रखें।ताकि बच्चे उन्हें  छू न सकें।
*बाथरूम का दरवाजा हमेशा बन्द रखें।क्योंकि वहां प्रायः ही किसी न किसी बर्तन में पानी भर कर रखा ही जाता है।वहां अकेले जाना बच्चे के लिये घातक हो सकता है।
*जब भी बच्चे को फ़र्श पर छोड़ें,ध्यान रखें उसके आस पास कोई ऐसी वस्तु न हो जिसे वह मुंह में डालने की कोशिश करे। अच्छा होगा कि ऐसे समय मां बाप या कोई बुजुर्ग शिशु के साथ रहें।
*यदि आपका शिशु आंगन में खेल रहा है तो ध्यान रखें कि वह गमलों तक न पहुंचने पाये।वह  गमलों की मिट्टी या किसी जहरीले पौधे की पत्ती तोड़कर मुंह में डाल सकता है जो कि उसके  लिये हानिकर होगी।
*यदि ऊंचे बेड पर शिशु बैठा हो तो उस प्पर नजर रखें कि वह बिस्तर से गिर कर चोटिल न हो  जाय।
*शहरों में परिवार एक या दो कमरों के छोटे मकानों में रहते हैं।उन्हीं दो कमरों में पूरी गृहस्थी का सारा सामान।ऐसी स्थिति में घर का सामान शिशु के रहने के हिसाब से व्यवस्थित करें।
*शिशु को कभी रसोई के अन्दर न जाने दें।वहां वह गैस,फ़्रिज़ आदि छूने की कोशिश करके नुक्सान  उठा सकता है।
*अक्सर मां शिशु को बुरे सपनों से बचाने के लिये उसके बिस्तर के नीचे चाकू,कैंची रखती हैं।इन्हें  ऐसी जगह रखें कि बच्चा उन्हें न छू सके।
*और सबसे अन्तिम बात बकैयां चलना शुरू करने से लेकर स्कूल जाने की अवस्था आने तक मां  बाप में से कोई एक हमेशा शिशु का ध्यान रखे।ताकि कभी भी वह गलती से कोई ऐसी क्रिया न  कर बैठे जो उसके लिये घातक हो।
                ये कुछ ऐसी छोटी छोटी बातें हैं जिनपर ध्यान देकर आप अपने नन्हें,सुकोमल शिशु का जीवन सुरक्षित रखने के साथ ही अपने परिवार को खुशहाल
रख सकते हैं।
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 डा0हेमन्त कुमार

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पेड़ों में आकृतियां--(2)

रविवार, 9 नवंबर 2014

प्रकृति ने हमारे लिये तरहतरह की वनस्पतियां और पेड़ पौधे बनाए हैं।अगर आप इन पेड़ों को ध्यान से देखें तो इनमें आपको कई तरह की आकृतियां दिखायी पड़ती हैं।मैंने अपने मोबाइल की आंखों से कुछ ऐसी ही आकृतियों को देखने की कोशिश की है।

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पुस्तक समीक्षा--बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां

रविवार, 2 नवंबर 2014

पुस्तक -बच्चों का सम्पूर्ण विकास
लेखिका-अर्पणा पाण्डेय
प्रकाशक-किताबघर,
24 /4855,अंसारी रोड,दरियागंज,
नई दिल्ली-110002

मूल्य-140रूपये।

        दो-ढाई दशक पूर्व तक हिंदी में साहित्य से अलग हटकर ज्ञान-विज्ञानं और जीवन चर्या के विविध आयामों पर मौलिक एवं सरल भाषा में लिखी पुस्तकें प्राय: कम ही दिखती थीं।इस तरह की ज्यादातर पुस्तकें अंग्रेजी से अनूदित होकर आतीं थीं,जिनकी सामग्री न तो हमारी जीवन शैली से मेल खाती थी और न ही उनकी भाषा में कोई खास आकर्षण या प्रवाह होता था।यह सुखद संकेत है कि विगत कुछ वर्षों में इस तरह के विषयों पर लिखने वाले न केवल नए-नए लेखक प्रकाश में आये,वरन अच्छे प्रकाशकों ने ऐसी किताबों को महत्व देकर अच्छी साज-सज्जा के साथ प्रकाशित करने की पहल भी की है।
            हाल ही में प्रकाशित अर्पणा पाण्डेय की पुस्तक बच्चों का सम्पूर्ण विकासएक ऐसी ही पुस्तक है जिसमे छोटे बच्चों के शारीरिक,मानसिक एवं व्यक्तित्व विकास सम्बन्धी विभिन्न पक्षों पर अत्यंत सरल एवं संतुलित भाषा में प्रकाश डाला गया है।                                                                   प्राय: हम बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारियों को अत्यंत ही सामान्य ढंग से लेते है,जब कि यह इतना आसान और सहज नहीं है,अर्पणा पाण्डेय की यह किताब छोटे बच्चों की माताओं (और पिताओं के लिए भी )एक मार्गदर्शक का तो काम करती ही है,साथ ही उनकी जिम्मेदारियों के प्रति आगाह भी करती है्। लेखिका ने बाइस छोटे -छोटे आलेखों के माध्यम से बच्चों की स्वाभाविक आदतो,उनके स्वास्थ्य,आहार,खेल क्रियाए,पठन-पाठन, सामाजिक आचरण,प्रारंभिक शिक्षा,भाषा विकास,योगाभ्यास, संगीत और नाटक के साथ-साथ किस हद तक सेक्स शिक्षा   दिए जाने की आवश्यकता है, जैसे विषयों से जुडी समस्याओं  को बहुत ही व्यावहारिक एवं तार्किक ढंग से,समाधान की सीमाओं तक चर्चा की है।इस पुस्तक के माध्यम से उठाई गई बातों का केंद्र बिंदु हमारा मध्यवर्ग है,भाषा सरल,स्वाभाविक तथा आम बोल-चाल की है।यही दो ऐसे कारण हैं जिससे यह पुस्तक एक व्यापक पाठक वर्ग की जरूरतों को पूरा करती है।
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कौशल पाण्डेय                                  

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लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. 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