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“देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल।

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

देश भीतर देश
(उपन्यास)
लेखक-प्रदीप सौरभ
वाणी प्रकाशन
4695,21-ए,दरियागंज,
नई दिल्ली--110002    
                                        हमारा देश एक तरफ़ तो बाहरी शक्तियों से जूझ रहा है दूसरी ओर आतंकवाद,जातिवाद,धार्मिक विवादों,जातीय और साम्प्रदायिक दंगों जैसी आन्तरिक समस्याएं भी हमारे देश की जनता का दुर्भाग्य बन चुकी हैं।इन सभी का दुष्परिणा अन्ततः यहां की जनता ही भुगतती है।
    इन सबके साथ ही आज एक और समस्या भी हमारे देश में धीरे-धीरे सर उठाती जा रही है वह है क्षेत्रीयता या प्रादेशिकता की।अगर व्यक्ति तमिलनाडु का है तो उसे दूसरे लोग मद्रासी कहते हैं,आसाम का है तो असमी।इतना ही नहीं वह भी खुद को मद्रासी या असमी ही मानता है भारतीय या हिन्दुस्तानी नहीं।गोया तमिलनाडु या आसाम भारत का एक प्रदेश ना होकर कोई अलग देश हो। आज हर प्रदेश का आदमी खुद को भारतवर्ष से अलग करके देखने की कोशिश कर रहा है। उत्तराखण्ड,झारखण्ड,छत्तीसगढ़ राज्यों का बनना और तेलंगाना,बुन्देलखण्ड,अवध प्रदेश,पश्चिम प्रदेश,पूर्वांचल आदि राज्यों की मांगें इसी अलगाववाद और बढ़ती जा रही क्षेत्रीयता का नतीजा हैं।
                   आम जन के भीतर बढ़ रहे इसी प्रदेशवाद,क्षेत्रीयतावाद और अलगाववाद की भावनाओं का लेखा जोखा है प्रदीप सौरभ का नवीनतम उपन्यासदेश भीतर देश। ऊपरी तौर पर तो यह उपन्यास एक विशिष्ट प्रेम कथा लग सकता है। जिसमें दिल्ली से आसाम ट्रेनिंग पर गये युवा पात्र विनय और एक विशुद्ध असमी युवती मिल्की डेका का प्रेम है,भावनायें हैं,उनका एक दूसरे के प्रति समर्पण का भाव है,संवेदनाएं हैं,साथ ही मिल्की डेका के अंदर की मूल भावनादिल्ली को इंडिया की राजधानी मानने की भावना दिखाई पड़ती है। मिल्की डेका दिल्ली और इंडिया को अपने असम से अलग हट कर एक कोई दूसरा देश मानती है।दरअस्ल यह भावना सिर्फ़ मिल्की की ही नहीं असम के आम आदमी की भावना है।लेकिन हम जितना ही इस उपन्यास की गहराई में उतरते जाते हैं उतना ही यह उपन्यास हमारे सामने अलगाववाद की भावना और उसके पीछे के कारणों की परतें एक एक कर खोलता जाता है।
                  इस उपन्यास के केन्द्रीय पात्र तो विनय और मिल्की डेका ही हैं।लेकिन उपन्यास की कहानी आगे बढ़ने के साथ ही आशीष विश्वास,बुलबुल हजारिका,संगानेरिया परिवार,विनय की फ़ेसबुकिया मित्रबबिता मालवीय,मिलि गुप्ता,मिष्ठी बैनर्जी,कोकोला पात्रा,पूजा कौरआदि अन्य पात्र हमारे सामने एक-एक कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते चलते हैं।
               विनय का गुवाहाटी आफ़िस में ट्रेनिंग पर जाना,बुलबुल हजारिका,मिल्की डेका से उसका परिचय,मिल्की से विनय की निकटता,प्रेम और विवाह ये सब कुछ तो एक बहाना मात्र है।उपन्यास के मुख्य कथानक में तो असम के लोगों की यह पीड़ा कि भारत सरकार उन्हें छल रही है,वहां के लोगों का ये मानना कि यहां आने वाला हर विदेशी मानू सिर्फ़ उन्हें लूटने ही यहां आया है,वहां उत्पन्न हुये तमाम विद्रोही संगठनोंउल्फ़ा,सुल्फ़ा,बोडो भूमिगत संगठन,बोडो स्टुडेणट यूनियन, उनकी मांगें,आन्दोलन,सरकार का उनके प्रति दमनकारी रवैया----सब कुछ हमारे सामने एक-एक कर फ़िल्म के अलग-अलग दृश्यों की तरह उपस्थित होता जाता है। और तब पाठक को यह महसूस होता है कि अरे यह तो सिर्फ़ प्रेम कथा मात्र नहीं है।
           गुवाहाटी में तीन साल का समय बिताने के बाद दिल्ली लौटने पर विनय खुद को एक अजीब बीमारी से ग्रसित पाता है।वह बीमारी है देश भीतर देश देखने की। दरअस्ल यह कोइ बीमारी नहीं बल्कि एक आम व्यक्ति की पीड़ा और मनःस्थिति है जो तीन साल किसी एकदम अनजान  और नये प्रदेश(आसाम) में रहकर,वहां की पूरी सांस्कृतिक,राजनैतिक,आर्थिक और सामजिक परिस्थितियों को अपने अंदर समाहित करके फ़िर से अपनी पुरानी जगह(दिल्ली)वापस लौटा है।प्रवास के इन तीन सालों में उस पात्र (विनय)ने उस पूरे शहर,प्रदेश को भरपूर ढंग से जिया है। अपनी रग रग में वहां की माटी की सोंधी खुशबू,चाय बागानों की हरियाली,जंगलों का प्राकृतिक सौन्दर्य,वहां के आम जन की पीड़ा,उग्रवादी संगठनों की मांगें,उनके ऊपर होने वाले दमन चक्र का दर्द----सभी कुछ अपनी स्मृतियों में साथ लाया है।उसी प्रदेश में उसने अपने प्रेम(मिल्की डेका)के माध्यम से अपने सपनों का महल बनाया और उसे नेस्तनाबूद होते (मिल्की की मृत्यु) हुए भी देखा है।
            उसके प्रेम का इस तरह नेस्तनाबूद हो जाना भी यूं ही एक आम घटना नहीं है।मिल्की डेका का विनय के साथ दिल्ली न आना,उसे वहीं बस जाने का अनुरोध,खुद अपने में ही घुट-घुट कर मर जाना हमारे देश में बढ़ते जा रहे अलगाववाद की भावना का ही नतीजा है।यह एक भोली भाली असमी लड़की का आत्म बलिदान भी है।जो हमारे उस पूरे राजनैतिक हालातों और दमनचक्र पर प्रश्न चिह्न लगाता है जो वहां के उल्फ़ा,सुल्फ़ा,बोडो उग्रवादियों के साथ किया गया।पंजाब कमाण्डो के जवानों के अत्याचार की एक झलक हमें उस समय देखने को मिलती है जब एक जवान तलाशी के दौरान मिल्की डेका के स्तन दबाता है और उसे घसीटकर बाहर तक ले जाता है।मिल्की डेका का विनय के साथ दिल्ली ना जाना एक विरोध भी है उस व्यवस्था के लिये जिसके तहत आम आदमी को यह धारणा बनाने पर मजबूर होना पड़ा कि दिल्ली इंडिया की राजधानी है और इंडिया एक अलग देश है। उस व्यवस्था के प्रति जिसके तहत वहां लोगों की धारणा बन चुकी है कि वहां आने और बसने वाला हर व्यक्ति हमारी हरियाली,हमारी जमीन और हमारे बागानों को लूटने और बटोर कर ले जाने के लिये ही यहां आया  है।
           उपन्यास के बीच में मुख्य पात्र विनय जब भी अपनी विषम मानसिक स्थितियों से त्रस्त हो जाता है तो उसे फ़ेसबुक पर जाकर कुछ समय के लिये ही सही थोड़ा राहत मिलती है।वह अपनी विषम परिस्थितियों से यहां अपने फ़ेस बुक मित्रों से चैटिंग करके थोड़ा निजात पाने की कोशिश करता है। उसकी फ़ेसबुक चैटिंग के माध्यम से भी हमारे समाज के विभिन्न किरदारों बबिता,मिली गुप्ता,मिष्ठी,कोकिला,गार्गी बधवार आदि के दर्शन होते हैं। सभी पात्रों की अपनी अपनी समस्याएं हैं।किसी की पति से अलगाव की तो किसी की चीन के माफ़ियाओं के भय की तो किसी की जायदाद के बंटवारे की। कहने को तो ये पात्र केवल मुख्य पात्र के फ़ेसबुक मित्र हैं लेकिन यदि आप गहराई से पड़ताल करें तो इनमें से हर पात्र अपने में अलग और अनूठा है।आपको अपने चारों ओर ध्यान से देखने पर कई-कई बबिताएं,मिली,मिष्ठी और कोकिला मिल जाएंगी।
                  यदि इस उपन्यास की चर्चा के दौरान प्रदीप सौरभ के पूर्व में प्रकाशित उपन्यासों पर बात नहीं की जायेगी तो शायद इस उपन्यास और लेखक की रचना प्रक्रिया को हम ठीक से समझ नहीं सकेंगे। पिछले तीन वर्षों में प्रदीप सौरभ के लगातार तीन उपन्यास पाठकों के बीच आये हैं।मुन्नी मोबाइल, तीसरी ताली और अब देश भीतर देश।मजेदार बात यह है कितीनों ही उपन्यासों की विषयवस्तु और क्षेत्र एकदम अलग-अलग हैं।मुन्नी मोबाइलदिल्ली महानगर में घरों में काम करने वाली नौकरानी की कहानी है।जो बहुत अधिक महत्वाकांक्षी थी। अपनी इसी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिये मुन्नी मोबाइल ने जो सफ़र पत्रकार आनन्द भारती के घर से शुरू किया वो काम वालियों की यूनियन,साहिबाबाद के चौधरियों से पंगा,डाक्टरनी के साथ नर्सिंग के अवैध धंधों,गाज़ियाबाद और पहाड़गंज रूट की बसों के फ़र्राटा भरते पहियों के साथ चलता हुआ अंत में कालगर्ल्स के रैकेट और मुन्नी मोबाइल के मर्डर के साथ पूरा होता है।जबकि तीसरी ताली का विषय एकदम अलग हटकर है।यह हमारे समाज के अभिन्न अंग होते हुये भी इसी समाज से परित्यक्त किये गये उन जीवधारियों की गाथा है जिन्हें हमारा समाज बहुत हिकारत और उपेक्षा से देखता है और हिंजड़ा कहकर बुलाता है।इस उपन्यास के कथानक की शुरुआत भी दिल्ली के सिद्धार्थ इन्क्लेव कालोनी से होकर हिंजड़ों की बस्तियों,उनके रीति रिवाजों,समाज में व्याप्त समलैंगिकों,उभयलिंगियों,लेस्बियन्स,गे कल्चर,हिंजड़ों की संस्कृति,उनके बीच गद्दी को लेकर छिड़ने वाले घमासानों का सफ़र तय करता हुआ हिंजड़ों के पवित्र तीर्थ स्थल कुवागम में पूर्णता को पहुंचता  है।और तीसरा ताजा उपन्यास देश भीतर देश की कहानी भी दिल्ली से गुवाहाटी और गुवाहाटी से दिल्ली की यात्राओं के दौरान चलती है।इसका विषय असम,वहां की संस्कृति,आंदोलन,समस्याएं और वहां के आम नागरिक की पीड़ा है।
         इतने कम समय में तीन अलग-अलग विषयों---ऐसे विषयों जिन पर पूरा शोध किये बिना एक कहानी भी न लिखी जा सके---पर उपन्यास लिखना भी एक दुरूह कार्य है। इस दुरूह कार्य को पूरा किया है प्रदीप सौरभ ने।इस मायने में भी लेखक की रचनात्मकता,उसकी सोच,वैचारिक विस्तार,शोध सभी कुछ हमें इन उपन्यासों के हर पृष्ठ पर साफ़-साफ़ दिखाई देता है।
            तीन अलग-अलग विषयों वाले उपन्यास होते हुये भी तीनों के कथानक में हमें कुछ समानताएं भी परिलक्षित होती हैं।सबसे पहली समानता तो है तीनों में ही भारतवर्ष के अंदर अलग-अलग क्षेत्रों में चल रहे राजनैतिक घटनाक्रमों को लेखक ने बहुत यथार्थपरक शैली में पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है।मुन्नी मोबाइल में जहां हम गुजरात दंगों,वहां पर घटित होने वाले भगवा ब्रिगेड के तांडव,मोदी सरकार के अत्याचारों की नंगी सच्चाई से हतप्रभ होते हैं।वहीं तीसरी तालीकिन्नरों के ऊपर केन्द्रित होते हुए भी उनके बीच गद्दी को लेकर होने वाले खूनी संघर्षों,उनके अंदर आ रही राजनैतिक चेतना,उनके सम्मेलनों,राजनैतिक पार्टियों को उनके समर्थन देने के फ़ैसलों के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के खद्दरधारियों तक की कहानियां हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है।ठीक इसी तरहदेश भीतर देशभी हमारे देश के पूर्वोत्तर प्रांतों में होने वाली राजनैतिक हलचलों,उनसे उभरने वाले विद्रोहों,उनके दमन चक्र की कहानियों को प्रस्तुत करता है।यहां भी हमें लेखक के छात्र जीवन से ही राजनीति,विभिन्न संगठनों के आन्दोलनों से जुड़े होने, समय समय पर की गई जेल यात्राओं और साथ ही राजनीति के प्रति उनकी वैचारिक सोच का प्रमाण मिलता है।
               इन तीनों उपन्यासों की दूसरी समानता पत्रकार पात्रों की प्रमुख भूमिका के रूप में हमारे सामने मौजूद है।मुन्नी मोबाइलमें आनन्द भारती, तीसरी ताली में विजय और देश भीतर देशमें बुलबुल हजारिका। यानि लेखक ने तीनों ही उपन्यासों में कहीं न कहीं अपने अंदर के खोजी, बेहद सन्वेदनशील  और सक्रिय पत्रकार की उपस्थिति दर्ज की है।मुन्नी मोबाइल का तो केन्द्रीय पात्र ही आनन्द भारती ही है। ऐसा शायद प्रदीप सौरभ के लंबे पत्रकारिता के जीवन के कारण ही संभव हो सका।
          देश भीतर देश के शिल्प की बात करें तो यह लीक से एकदम हटकर एक नये शिल्प और शैली का उपन्यास है।इस पूरे उपन्यास का ताना बाना लेखक ने दो रेल यात्राओं के माध्यम से बुना है। पहली यात्रा दिल्ली से असम जाने वाली ब्रह्मपुत्र मेल,दूसरी आसाम से दिल्ली आने वाली राजधानी एक्सप्रेस।पहली यात्रा उपन्यास का मुख्य पात्र विनय तब कर रहा है जब उसे ट्रेनिंग के लिये गुवाहाटी जाना पड़ता है।दूसरी जब वह ट्रेनिंग पूरी करके दिल्ली वापस लौट रहा है।पूरे उपन्यास की सभी घटनाएं विनय की इन्हीं दो यात्राओं के साथ साथ आगे बढ़ती जाती हैं।बीच-बीच में दृश्यों का बदलाव हमें परदे पर चल रही किसी रोचक फ़िल्म देखने का आभास देता है। ऐसा लगता ही नहीं कि हम कोई उपन्यास पढ़ रहे हैं।पाठक को कभी लगता है कि वह कोई फ़िल्म देख रहा है,कभी लगेगा कि
किसी यायावर या घुमक्कड़ व्यक्ति की डायरी के पन्ने पढ़ रहा है।यानि कि इस उपन्यास में पाठक को एक फ़िल्म देखने,डायरी पढ़ने,एक पत्रकार के यात्रा वृत्तान्त सभी का आनन्द के साथ मिलेगा।कथानक के बीच-बीच में विनय का फ़ेसबुकिया सहेलियों से चैट करना उपन्यास को रोचक बनाता है।
          उपन्यास की भाषा में एक कुशल पत्रकार की बेबाक विश्लेष्णात्मक शैली का प्रभाव हमें हर जगह दिखता है।इनके अंदर बैठा कवि और फ़ोटोग्रैफ़र इनके लेखन में शब्दों और घटनाओं का अद्भुत कोलाज बनाता है।प्रदीप सौरभ के पूर्व में प्रकाशित दोनों उपन्यासों की ही तरह देश भीतर देशका विषय भी लीक से एकदम अलग हटकर है।पूर्वोत्तर राज्यों,क्षेत्रों और वहां के आम जन मानस में झांकने की कोशिश अभी तक किसी भी हिन्दी उपन्यास में नहीं की गई है। इस दृष्टि से भी यह उपन्यास पठनीय है और हिंदी साहित्य की निधि तो बनेगा ही।
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        प्रदीप सौरभ: पेशे से पत्रकार।हिन्दुस्तान दैनिक के दिल्ली संस्करण में विशेष संवाददाता के रूप में लम्बे समय तक काम किया।हिन्दी के चर्चित कवि,पत्रकार और लेखक।मुन्नी मोबाइल, तीसरी ताली उपन्यास काफ़ी चर्चित। कानपुर में  जन्म। परन्तु साहित्यिक यात्रा की शुरुआत इलाहाबाद से। कलम के साथ ही कैमरे की नजर से भी देश दुनिया को अक्सर देखते हैं।पिछले तीस सालों में कलम और कैमरे की यही जुगलबन्दी उन्हें खास बनाती है।गुजरात दंगों की बेबाक रिपोर्टिंग के लिये पुरस्कृत। लेखन के साथ ही कई धारावाहिकों के मीडिया सलाहकार।फ़िलहाल स्वतन्त्र लेखन।
समीक्षा--हेमन्त कुमार
     


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. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. 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