यह ब्लॉग खोजें

बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत !

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

(पिता जी के जाने के बाद से घर में एक अजीब सा खालीपन आ गया है--वक्त बेवक्त हम सभी की नजरें उन्हें ही खोजती हैं.हर वक्त लगता है की शायद कहीं गए हैं ---आ जायेंगे कुछ देर में ..लेकिन --पिता जी की रचनात्मकता तो हर समय हमारा मार्ग दर्शन करेगी .---यही सोच कर ही आज मैं उनकी एक काफी पहले प्रकाशित कहानी को ब्लाग पर पुनः प्रकाशित कर रहा ...)

     बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत !
--प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव


बाबू जी ! दरवाजे के बाहर से आवाज आई।
मैं सम्पादकीय लिखने में व्यस्त था।सिर उठाकर देखा---दो भूरी आंखे दरवाजे पर पड़े हुये पर्दे के पीछे से झाँक रहीं थी।
अन्दर चले आओ।मैंने कहा।वह अन्दर चला आया।काले कपड़े का जांघिया, आधी बांह की कमीज, नंगे पैर, रूखे ओर उलझे हए बाल-अपनी इस वेशभूषा में लगभग बीस साल का वह युवक मेरी मेज के सामने खड़ा था।
क्या काम है ?’ मैंने पूछा।
आपको नौकर की जरूरत है?’
मेरी दृष्टि सामने रखी ट्रेपर जम गई।जिसमें एक नौकर की जगह के लिए आए हुए 26 आवेदनपत्र पड़े हुए थे।मुझे अखबारों को पैक करने वाले एक लड़के की जरूरत थी।वेतन केवल 20 रूपए प्रतिमास था, फिर भी नित नए आवेदन पत्र चले ही आ रहे थे। 27 वां आवेदनकर्ता प्रत्यक्ष मेरे सामने था।
कुछ पढ़े-लिखे भी हो ?’
जी, इन्टर तक!कहने में उसे कुछ संकोच हुआ और सुनकर मुझे अविश्वास।
उसका सार्टीफिकेट ?’ मैंने मांगा।
जी,वही होता तो.................।और वह अटक गया।उसके चेहरे की उदासी,मुझे लगा, कुछ गहरी हो चली थी।सहसा कुछ सचेत से स्वरों में बोला-आप मेरी परीक्षा ले लें। और उसकी आँखों में आशा की ज्योति झिलमला उठी।
                ‘तुम्हारे पिता का नाम और निवास-स्थान ?’ मैंने अगेंजी में पूछा। सम्पादक की गद्दी परीक्षक की कुर्सी बन गई।
       स्वर्गीय हरनामसिंह एम.ए., एल.एल.बी., एडवोकेट, निवास स्थान अनारकली लाहौर था।उसने स्वाभाविक लहजे में उत्तर दिया।
       तो तुम शरणार्थी हो?’ मैंने किंचित भी विस्मय न प्रकट करते हुए पूछा।हिन्दुस्तान की यह अभागी कथा पुरानी हो चली थी।
जी।
इसके पहले क्या करते थेमैंने अंग्रेजी में ही प्रश्न किया।
   एक वर्ष तक अपने पिता के एक मित्र के यहाँ क्लर्क रहा।फिर फलों की दूकान की, वह भी न चल सकी। कुछ पैसे उधार लेकर कपड़ों की फेरी लगानी शुरु कर दी थी।मगर किस्मत ने यहाँ भी धोखा दिया।एक दिन सब कपड़े चोर उठा ले गए और मैं दो सौ का कर्जदार बन गया।पिछले पांच महीनों तक रिक्शा खींचकर उसका कर्जा अदा किया।अब आपके सामने हूं।उसका यह संक्षिप्त उत्तर था।
                इस प्रकार कीरत सिंह मेरे सम्पर्क में आया।यह एक वर्ष पहले की शाम की घटना है।
                प्रेस के पास ही एक गली में कीरत सिंह को मकान मिल गया।शाम को उसके दरवाजे पर पहुंचा तो देखा तो कि वह एक अंगौछे में कोई वस्तु लटकाये सामने से चला आ रहा था।जन्माष्टमी का दिन था।सोचा---व्रत होगा,उसी के लिए फलाहार आदि होगा।मगर जब वह मुस्कराता हुआ नजदीक आकर खड़ा हो गया तो मैं उसके अंगौछे में होती हरकत देखकर चौंक उठा।कीरतसिंह गोश्त नहीं खाता था।खाना तो दूर रहा, उसका जिक्र आते ही वह नाक भौं सिकोड़ने लगता और महापुरूष के जन्म दिन पर.........।
                ‘क्यों, जीवित मछलियां हैं न ?’ मैंने व्यंगपूर्वक पूछा।सुनकर वह झेंपा और मेरा संदेह विश्वास में बदल गया।
                किन्तु दूसरे क्षण ही जब उसने अंगौछे की वस्तु मेरे सामने डाल दी तो मैं अवाक रहा गया। वह कुत्ते का एक मरियल सा पिल्ला था, नाली के दुर्गन्ध युक्त गन्दे काले कीचड़ में सना हुआ।शीघ्र ही उसकी बद्बू से समीप का वायुमण्डल भर उठा।घृणा से अपनी नाक पर रुमाल रखता हुआ मैं बोला-ओफ, पागलपन की हद कर दी, तुमने।आज जन्माष्टमी के दिन तो भगवान के नाम पर पवित्र रहते।
                ‘क्या बताँऊ!उधर से चला आ रहा था।बस, नाली में पड़ा हुआ यह कमबख्त मिल गया। छोटे-छोटे बच्चे इस पर कंकडि़यां बरसा रहे थे।दो चार मिनट की और देर हो जाती तो सब कुछ खत्म था, कहकर कीरत सिंह ने वह सांस ली जैसे घर का कोई व्यक्ति प्लेग या हैजे से पीडि़त हो गया हो ।
                ‘तो क्या अब इसकी पूजा करोगे ?’मैने खीझ कर पूछा।
                ‘अजी मैं गरीब इस लायक कहाँ! हाँ, नहला धुला दूंगा तो दो एक हफ्तों में अच्छा दिखने लगेगा।फिर कोई पालना चाहेगा तो अपने यहाँ उठा ले जायेगा।और कहकर वह उसे नल के नीचे उठा ले गया।
       नहले पर दहला पड़ा चुका था।मैं चुपचाप लौट आया।
                अभी परसों की ही तो बात है-
                     सड़क पर बच्चों का शोर सुनकर बाहर निकल आया।देखा, छोटे बच्चों की एक पूरी फौज कीरत सिंह को घेर कर खड़ी थी।वह लेमनजूस की गोलियाँ बाँट रहा था।गली के सभी बच्चे थे--- बनिये के भी और भंगी के भी, कुछ उजले कपड़ों में, कुछ गँदले चीथड़ों में। मगर व हँसता हुआ बगैर किसी भेदभाव के,सब की हथेलियों पर एक-एक दो-दो गोलियाँ रखता जा रहा था और बच्चे थे कि पूरे शैतान के औतार। कीरत सिंह की सफ़ेद कमीज पर नन्हे-नन्हें हाथों के धब्बे प्रति क्षण बढ़ते जा रहे थे। इस धमाचौकड़ी में किसी--किसी का भरपूर हाथ भी उसके आगे पीछे पड़ जाता था।फिर भी वह खिलखिला कर हँसता हुआ, उन्हें अपनी प्यार भरी बातों से हँसाता हुआ अपनी डयूटी पर मुस्तैद।
                मैं आत्म विभोर खड़ा देखता रहा-----.देखता रहा उसका वह अत्यन्त सरल व्यक्तित्व! बच्चों से क्या और बड़ों से क्या--- सभी से एक मीठा चाशनी से भी अधिक मीठा स्नेह और बेलाग मुहब्ब्त--- प्रेस के सारे कर्मचारी,उसके भाई साहब,और मैं उन्हीं मे खो चला।बच्चे शोर कर रहे थे, कीरत सिंह खिलखिला रहा था,मगर मैं इन सबसे ऊपर उठ रहा था,बहुत ऊपर----।
                मैं अपने कमरे में लेटा अपने अखबार के ताजे अंक को उलट-पलट रहा हूं।मगर कानों के परदों को फाड़ती हुई एक ध्वनि भीतर घुस रही है---हरे कृष्णा, हरे कृष्णा हरे हरे............!जन्माष्टमी का दिन,मंदिर में चौबीस घण्टे का अखण्ड कीर्तन और लाउड स्पीकर चीख रहा है-हरे राम हरे राम हरे कृष्णा हरे कृष्णामैं डूब चला हूँ। कीर्तन में मानव कंठ ही नहीं अनेक बाजों का सहयोग है।पंचम स्वर में एक विचित्र खिचड़ी राग उठ रहा है।मगर सभी उसमें झूम रहे हैं, कारण कि सबकी आत्मा भगवान कृष्ण के भक्ति रस से ओत-प्रोत है--भगवान के अनन्य भक्त हैं वे,श्रद्धालु सेवक कि जो निर्जल व्रत हैं!
                और यह मंदिर के दरवाजे पर बैठी है भिखमंगों की पांत! अपनी झपकती आंखों से सूखी ठठरी को गीले फर्श गीली दीवार का सहारा दिये वे द्वार की ओर टकटकी लगाये हैं।त्रिलोकी नाथ के जन्म की खुशी में भादों के जलधर उमड-घुमड़ कर बरस रहे है।और ये दरिद्र नारायण नर-नारायण पर आशा लगाए धैर्य की मूर्ति बने बैठे भीग रहे हैं।बारह बजे भगवान का जन्म होगा।भक्त इसी रास्ते से बाहर निकलेंगे। और उनकी फैली हुई झोली पर दो चार खीरे और अमरूद के टुकड़े पड़ जायेंगे। फिर वे एक दूसरे पर टूट पड़ेंगे, आपस में उलझ जायेंगे! ठीक उन कुत्तों की तरह जो पत्तल की जूठन के लिए जूझते हैं, फिर भी अतृप्त, फिर भी प्यासे के प्यासे।मैं और भी नीचे डूबा--यह कीरत सिंह, जन्माष्टमी का पु्ण्य पर्व, वह गंदगी में लिपटा हुआ कुत्ते का घिनौना पिल्ला, वह उसकी भावना, वह उसका पागलपन और यों हमारे सामने से गुजरती चली गयी जीवन निर्माण की पगडंडी।
                और मैं हड़बड़ा कर बैठ गया हूँ।मेरी दृष्टि सामने दीवार से लटकते चित्र पर जम गयी है-- कालिदास का विरही यक्ष बद्धांजलि हो अपनी प्रियतमा के पास संदेश भेज रहा है और संदेश वाहक कौन कि कारे कजरारे मेघ, जो अम्बर की छाया में धरती पर छाया करते उड़े चले जा रहे हैं दूर यक्ष की प्रिया के देश, मेघदूत।
                और मैं तल-तक करीब-करीब जा पहुँचा, जहाँ रूपहली बालू और मटमैली मिट्टी की पहचान आसान होती है। बशर्ते की आंखे खुली हों और दिल धडकन करता हो। कीरत सिंह की भावनायें, उसका संदेंह अथवा कि वह स्वयं संदेश वाहक, पहुँचाये किसके हृदय तक? पता नहीं, यक्ष का मेघदूत भी उसी की तरह संवेदशील था अथवा नहीं, महाकवि के काव्य की आत्मा जाने, किन्तु कीरत सिंह ?
                एकाकी जीवन में कीरत सिंह को भोजनादि की बड़ी दिक्कत थी।इसे वह भी महसूस करता था और मैं भी, किन्तु ऐसे परिवार हीन व्यक्ति को, जिसे कोई एक घूंट पानी देने वाला भी न हो, कोई अपनी कन्या देने के लिए तैयार न होता था।एक दिन मैंने उसके योग्य बहू ढूंढ भी निकाली।ब्याह का दिन भी निश्चित हो गया,मगर ब्याह के ठीक दो दिन पहले बड़े तड़के ही वह प्रश्नवाचक चिन्ह की तरह आकर मेरे सामने खड़ा हो गया।दरी में लिपटा हुआ छोटा सफरी बिस्तरा एक हाथ में तथा डेढ़ हाथ का शीशम का डंडा दूसरे हाथ में।सिर पर दुपलिया टोपी, पैर में पंजाबी जूते और यों किसी भी सफर के लिए पूरी तैयारी ।
                आते ही बोला-पन्द्रह दिन की छुट्टी दीजिए
                ‘और तुम्हारा ब्याह मैंने रुष्ट होकर पूछामैं जानता था यह तारीख टली तो उसके ब्याह की बात भी हमेशा के लिए गई।
 अजी, वह तो होता रहेगा।भूकम्प की खबरें आपने तो पढ़ी ही होगीं।सारा आसाम तबाह हो गया।क्या इस समय वहां के लोगों की सहायता न करना देशद्रोह न होगा? उसने गम्भीर होकर कहा।
मैं स्तब्ध और जबान बन्द! उसे छुट्टी मिल गई।
                वह ठीक पन्द्रह दिन बाद लौटा, मगर स्वस्थ गया था बीमार आया।बीसों जगह पट्टियाँ बंधी थीं।हाथ की एक हड्डी भीइ सरक गई थी।यह भूकम्प पीडि़तों की रक्षा का प्रसाद था।वहां के बरसाती मच्छरों ने उसका पूरी तरह स्वागत किया था।मकानों के मलवे हटाने में उसे कई जगह गहरे घाव भी आ गए थे।फिर भी उस ने हँस-हँसकर अपना काम किया और हँसता हुआ ही वह मेरे सामने खड़ा था।भूकम्प पीडितों के समाचार पूछने पर भरी हुई आंखें और रुंधा हुआ गला, मगर स्वयं अपनी परेशानियों का जिक्र आने पर वही पूर्व परिचित खिल........खिल!
                सगे सम्बन्धियों को खो कर, लाखों की सम्पत्ति से हाथ धोकर, जन्मभूमि से बिछुड़ कर भी वह धरती-पुत्र अजेय सरलता, अजस्र मुस्कान और निःस्वार्थ त्याग लेकर जिन्दगी के हर मोर्चे पर खिलखिलाता हुआ! वह कालिदास का बीसवीं सदी का जीता जागता मेघदूत!
                               ------



प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव
11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म।
31जुलाई 2016 को लखनऊ में आकस्मिक निधन।
शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम0ए0।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।पिछले छः दशकों से साहित्य सृजन मे संलग्न।देश की प्रमुख स्थापित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियों,नाटकों,लेखों,रेडियो नाटकों,रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।
बाल कहानियों,नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र 87 वर्ष की उम्र तक निर्बाध चला। 

Read more...

लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. Bअच्चे का विकास। Breast Feeding. Child health Child Labour. Children children. Children's Day Children's Devolpment and art. Children's Growth children's health. children's magazines. Children's Rights Children's theatre children's world. Facebook. Fader's Day. Gender issue. Girl child.. Girls Kavita. lekh lekhh masoom Neha Shefali. perenting. Primary education. Pustak samikshha. Rina's Photo World.रीना पीटर.रीना पीटर की फ़ोटो की दुनिया.तीसरी आंख। Teenagers Thietor Education. World Photography day Youth

हमारीवाणी

www.hamarivani.com

ब्लागवार्ता


CG Blog

ब्लागोदय


CG Blog

ब्लॉग आर्काइव

कुल पेज दृश्य

  © क्रिएटिव कोना Template "On The Road" by Ourblogtemplates.com 2009 and modified by प्राइमरी का मास्टर

Back to TOP