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संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार।

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

यादों का झरोखा
गीतांजलि गिरवाल

       
बचपन की कुछ यादो में एक हैं ये संजा पर्व।मम्मा, पापा सरकारी नौकरी में थे और हम जहाँ रहते थे वहां गली में और कई परिवार भी थे, जो निमाड़ी थे।उनकी बच्चियां यानि हमारी सहेलियां श्राद्ध पक्ष में ये संजा पर्व मानती थी तो हम भी साथ हो लेते थे ।बस उनकी देखा देखी नकल करते थे।बहुत मज़ा आता था इस में। आख़िरी दिन इसे नदी में ठंडा करने जाते थे। बच्चों को दूल्हा दुल्हन बनाते थे और गाते हुए जाते ।मै अपने स्वाभाव अनुरूप हमेशा पुरुष की भूमिका में होती। सच बहुत ही लुभाने दिन थे वो भीसमय बीतने के साथ ही अब ये पर्व लगभग विलुप्त होने लगा है ।मात्र गांव में सिमट कर रह गया है ।लोक परंपरा में मालवांचल में कुँवारी कन्याओं का ये एक लोकप्रिय पर्व माना जाता है।गांव की सौंधी मिट्टी सी खुशबु है  इन लोक परम्पराओं में।

        टिफ़िन में भिन्न भिन्न पकवान बना कर सभी लाते थे,आरती के बाद सब उसे बूझते थे कि कौन क्या लाया।जिसका टिफ़िन नहीं बूझ पाते  वो विजेता और उसकी माँ सुपर माँ 
फिर सब मिलकर खाते थे।इसमें लड़कों का कोई रोल नहीं होता था फिर भी सब के भाई अपनी बहनों के पीछे घूमते थे ताकि आखरी में अच्छा अच्छा खाने को मिलेगा।वो 15 दिन पलक झपकते निकल जाते।

 संजा पर्व मालवा संस्कृति का अनोखा त्यौहार।
              भाद्रपद माह के शुक्ल पूर्णिमा से पितृमोक्ष अमावस्या तक पितृपक्ष में कुंआरी कन्याओं द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है।यह पर्व मुख्य रूप से मालवा-निमाड़, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र आदि में मनाया जाता है।संजा पर्व में श्राद्ध के सोलह ही दिन कुंवारी कन्याएँ शाम के समय एक स्थान पर एकत्रित होकर गोबर के मांडने मांडती हैं और संजा के गीत गाती हैं व संजा की आरती कर प्रसाद बांटती हैं।सोलह ही दिन तक कुंवारी कन्याएँ गोबर के अलग-अलग मांडने मांडती है तथा हर दिन का एक अलग गीत भी होता है।
गान
छोटी-सी गाड़ी गुड़कती जाए, गुड़कती जाए,
जी में बैठ्या संजा बाई, घाघरो धमकाता जाए,
चूड़लो छमकाता जाए,
बई जी की नथड़ी झोला खाए,
बताई दो वीरा पीयर जाए।
संजा बाई, संजा बाई सांझ हुई/जाओ संझा ।

        गणेश उत्सव के बाद कुँवारी कन्याओं का त्योहार आता है संजा।यूँ तो यह भारत के कई भागों में मनाया जाता है।लेकिन इसका नाम अलग होता है,जैसे- महाराष्ट्र में गुलाबाई (भूलाबाई), हरियाणा में सांझी धूंधा’, ब्रज में सांझी’, राजस्थान में सांझाफूलीया संजयाक्वार कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर अमावस्या तक शाम ढलने के साथ घर के दालान की दीवार के कोने को ताजे गोबर से लीपकर पतली-पतली रेखाओं पर ताजे फूल की रंग-बिरंगी पंखुड़ियाँ चिपका कर संजा तैयार की जाती है।

विभिन्न आकृतियाँ


     गणेश,चाँद-सूरज,देवी-देवताओं के साथ बिजौरा,कतरयो पान,दूध,दही का वाटका (कटोरी),लाडू घेवर,घुघरो नगाड़ा, पंखा, केले का झाड़, चौपड़ दीवाली झारी, बाण्या की दुकान,बाजूर, किल्लाकोट होता है।मालवा में संजाका क्रम पाँच (पंचमी) से आरंभ होता है।पाँच पाचे या पूनम पाटला से।दूसरे दिन इन्हें मिटाकर बिजौर, तीसरे दिन घेवर, चौथे दिन चौपड़ और पंचमी को पाँच कुँवारेबनाए जाते हैं।लोक कहावत के मुताबिक जन्म से छठे दिन विधाता किस्मत का लेखा लिखते हैं ।जिसका प्रतीक है छबड़ी।सातवें दिन सात्या (स्वस्तिक) या आसमान के सितारों में सप्तऋषि, आठवे दिन अठफूल’, नवें दिन वृद्धातिथिहोने से डोकरा-डोकरी और दसवें दिन वंदनवार बाँधते हैं।ग्यारहवें दिन केले का पेड़ तो बारहवें दिन मोर-मोरनी या जलेबी की जोड़ मँडती है। तेरहवें दिन शुरू होता है किलाकोट, जिसमें 12 दिन बनाई गई आकृतियों के साथ नई आकृतियों का भी समावेश होता है।
पूजा के पश्चात कच्चा दूध, कंकू तथा कसार छाँटा जाता है।प्रसाद के रूप में ककड़ी-खोपरा बँटता है और शुरू होते हैं।
संजा के गीत-
संजा मांग ऽ हरो हरो गोबर संजा मांग ऽ हरो हरो गोबर कासे लाऊ बहण हरो हरो गोबर संजा सहेलडी बजार में हाले वा राजाजी की बेटी।

परम्परागत मान्यता के अनुसार गुलतेवड़ी के फूल सजावट के लिये उपयुक्त समझे जाते हैं।संजा की आकृति को और ज्यादा सुंदर बनाने के लिये हल्दी, कुकुंम, आटा, जौ, गेहूँ का भी प्रयोग किया जाता है|मुख्या रूप से उज्जैन,आगर, महिदपुर,शाजापुर, निमाड़ , खंडवा , धार में काफी लोकप्रिय त्यौहार है संजा
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लेखिका  गीतांजलि गिरवाल
युवा लेखिका गीतांजलि पिछले 15 सालों से रंगमंच में अभिनय और निर्देशन में सक्रिय हैं।कालेज में पढाई के समय से ही साहित्य के प्रति रुझान था तभी से लेखन में सक्रिय।ये हमेशा नारी की समस्याओं उनके जीवन उनके हालातों की चिंता करती हैं।और नारी मन के हर भाव,अंतर्द्वंद्व और पीड़ा  को शब्द देने का प्रयास भी हमेशा करती हैं।हमारे समाज,लोक संस्कृति पर भी गीतांजलि काफी कुछ लिख रही हैं।




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घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का------

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

         
स्कूलों में जाकर अक्सर अभिभावक यह शिकायत करते हैं कि उनके बच्चे का मन पढ़ाई में लगता ही नहीं है। या कि मास्साब आप कैसे पढ़ाते हैं कि इसे कुछ याद ही नहीं रहता।कभी कभी यह भी शिकायत करते हैं कि आप इसे होमवर्क नहीं देते इसीलिये यह घर पर कुछ पढ़ता ही नहीं। कुछ अभिभावकों को मैंने यह भी कहते हुये सुना है कि अरे फ़लां स्कूल---अब तो बेकार हो चुका हैकभी होती थी वहां भी अच्छी पढ़ाई--- अब तो बस उस स्कूल का नाम भर रह गया है।
   यानी कि बच्चा घर में पढ़े न,उसका मन पढ़ने में न लगे,वह हमेशा टी0वी0 से चिपका रहे,खेलता रहे -----इन सब की जिम्मेदारी स्कूल की और मास्साब की। अभिभावक ने ले जाकर स्कूल में नाम लिखा दिया और उनकी जिम्मेदारी खत्म।अब बच्चे के पढ़ने,विकसित होने,अच्छे नंबर लाने सबका दारोमदार मास्टर जी के ऊपर।
          यहां सवाल यह उठता है कि क्या बच्चों के पढ़ाने,लिखाने की अभिभावक या मां बाप की कोई जिम्मेदारी नहीं है?क्या उनकी जिम्मेदारी बस बच्चे को स्कूल तक पहुंचाने की है?जबकि बच्चा स्कूल में 24घण्टों में से सिर्फ़ 5-6 घण्टे रहता है। बाकी के 18घण्टे वो आपके साथ बिताता है। स्कूल तो एक जगह भर है जहां उसे शिक्षा का एक रास्ता बताया जाता है। सीखने सिखाने की एक प्रक्रिया से परिचित करा कर ज्ञान के एक अथाह समुद्र की तरफ़ बढ़ाया जाता है। ज्ञान के इस समुद्र में बच्चे को तैरना सिखाया जाता है। अब इस अथाह समुद्र के नये तैराक को एक कुशल,बेहतरीन तैराक बनाने में शिक्षकों के साथ अभिभावकों की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है। जब तक वो अपनी भी जिम्मेदारियां नहीं निभायेंगे बच्चा ज्ञान के सागर का एक कुशल तैराक नहीं बन पायेगा।
पढ़ने लिखने में आगे नहीं बढ़ सकेगा।

क्या जिम्मेदारियां हैं एक अच्छे अभिभावक की----- ?
                                            बच्चे को पढ़ने लिखने के लिये सबसे जरूरी चीज है अच्छे और खुशनुमा माहौल की। स्कूल में भी और घर पर भी। खुशनुमा माहौल का मतलब है ऐसा माहौल जिसमें बच्चा सहज ढंग से शान्तिपूर्ण वातावरण में पढ़ लिख सके। उसके ऊपर किसी तरह का मानसिक दबाव न हो। वह संकुचित या भयभीत न रहे। वह अपने मन में उठने वाले प्रश्नों को आपसे बिना किसी संकोच के पूछ सके। माना कि ऐसा वातावरण उसे स्कूल में अध्यापकों की कृपा और सहयोग से मिल जाता है। लेकिन क्या हम उसे घर पर ऐसा माहौल दे पा रहे हैं? अगर दे रहे हैं तो बहुत अच्छा है। यदि नहीं तो क्यों? और साथ ही हमें यह भी विचार करना पड़ेगा कि हम अपने घर का कैसा माहौल बनायें जिसमें बच्चा अच्छे ढंग से पढ़ लिख सके। यहां मैं कुछ ऐसे ही महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर इंगित करूंगा जिन पर ध्यान देकर आप घर का वातावरण बच्चों की पढ़ाई के अनुकूल बना सकते हैं।
शान्तिपूर्ण माहौल
 बच्चों को पढ़ने के लिये सबसे जरूरी शन्तिपूर्ण माहौल होता है। बच्चों की पढ़ाई के  समय उनके पढ़ने की जगह पर तेज आवाज में बातचीत न करें। टी0वी0,रेडियो धीमी आवाज में बजायें। यदि उनके पढ़ने के समय में घर में कोई मेहमान आ जाता है तो कोशिश करें कि बच्चे की पढ़ाई डिस्टर्ब न हो। मेहमानों को आप दूसरे कमरे में बैठा कर उनका स्वागत कर सकते हैं।
समय का निर्धारण---
  स्कूल के अलावा बच्चे 18घण्टों का जो समय आपके साथ बिताते हैं उनका सही उपयोग करना बच्चों को आप ही सिखला सकते हैं। इसके लिये यह जरूरी है कि आप अपने बच्चे के लिये एक संक्षिप्त टाइम टेबिल बनायें। जिसमें उसके सुबह उठने,स्कूल जाने,खेलने कूदने,मनोरंजन ,पढ़ाई और सोने का समय निर्धारित हो। यह जरूरी नहीं कि आपका बच्चा एकदम उसी समय सारिणी पर चले। जरूरत पड़ने पर उसमें आप या बच्चा फ़ेर बदल भी कर सकते हैं। लेकिन इससे उसके अंदर काम को समय पर और सही ढंग से करने की आदत पड़ेगी।
टी0वी0,कम्प्युटर का समय निश्चित करें---
      आजकल बच्चों का ध्यान सबसे ज्यादा टी0वी0,वीडियो गेम्स और कम्प्युटर में लगता है। आप इससे उन्हें पूरी तरह रोक नहीं सकते।क्योंकि आज तो इलेक्ट्रानिक माध्यमों का ही युग है। इनके बिना वह बहुत सारे ज्ञान और सूचनाओं से वंचित रह जाएगा। लेकिन इस पर बहुत ज्यादा समय देना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं है। इसलिये अपने बच्चों को इन माध्यमों के फ़ायदों और हानियों से परिचित करा दें।
तथा इनके उपयोग का समय भी तय कर दें। जिससे वह अपना समय अन्य गतिविधियों को भी दे सके।
खुद भी पढ़ें---
   बच्चों को पढ़ाई के लिये उचित माहौल देने के लिये यह बहुत जरूरी बिन्दु है। क्योंकि बच्चे बहुत सी बातें अनुकरण से भी सीखते हैं। आप को कोशिश यह करनी चाहिये कि आप बच्चों के पढ़ने के समय में खुद भी अपनी रुचि की कोई पुस्तक,पत्रिका या अखबार पढ़ें। आपको पढ़ता देखकर बच्चे के अंदर भी पढ़ाई के प्रति रुचि जागृत होगी। उसे यह महसूस होगा कि मेरे पिता या मां भी मेरे साथ पढ़ रहे हैं।
कुछ बाल पत्रिकाएं और रोचक बाल साहित्य बच्चों को दें----
       हर भाषा में आजकल हर उम्र के बच्चों के लिये बहुत सी पत्रिकाएं बाजार में उपलब्ध हैं। आप अपने बच्चे की आयु के अनुरूप कुछ बाल पत्रिकाएं घर में लायें। उनसे बच्चों का मनोरंजन तो होगा ही,उनके ज्ञान में बढ़ोत्तरी भी होगी। क्योंकि इन पत्रिकाओं में सिर्फ़ कहानी,कविता ही नहीं बल्कि बच्चों के लिये ढेरों सामग्री रहती है। जैसे चित्रों में रंग भरने,वर्ग पहेली,च्त्र देखकर कहानी लिखने,वाक्य पूरा करने,आदि के अभ्यास इनसे बच्चे की बुद्धि तीव्र होने के साथ उसका मनोरंजन भी होगा। और पत्रिकाओं में सामग्री की विविधता के कारण उसकी पढ़ने में रुचि भी  जागृत होगी।
          यहां कुछ अभिभावक यह प्रश्न उठा सकते हैं कि बच्चों के ऊपर वैसे ही बस्ते का इतना बड़ा बोझ है। उसमें ये पत्रिकायें या बाल साहित्य---?उनके प्रश्न का सीधा सा जवाब यह है कि जैसे आप आफ़िस में अपने काम से ऊबने लगते हैं तो क्या करते हैं?दोस्तों से गप शप,टहलना घूमना।फ़िर तरोताजा होकर अपना काम शुरू कर देते हैं। ठीक वैसे ही बच्चों की ये पत्रिकाएं या बाल साहित्य,बच्चों के लिये थोड़े समय का मनोरंजन का काम करेगा। यानि कि वो कुछ समय के लिये कोर्स की किताबों से हट कर ज्ञान के ऐसे संसार में जायेंगे जहां उन्हें ज्ञान और मनोरंजन दोनों मिलेगा।जहां उनकी कल्पनाओं के भी पंख लगेंगे। उन्हें आनन्द की अनुभूति होगी।
बच्चों को घर पर ही कभी कभी रोचक शैक्षिक फ़िल्में दिखाएं---
   आज तो पढ़ाई में भी इलेक्ट्रानिक माध्यमों का वर्चस्व होता जा रहा है। पत्रिकाओं की ही तरह बाजर में हर कक्षा,हर विषय की पाठ्यक्रम आधारित या पूरक कार्यक्रमों की सी0डी0 उपलब्ध हैं। यद्यपि इनकी संख्या अभी उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिये। आज हर घर में टी0वी0 और सी0डी0प्लेयर भी मौजूद हैं। आप बच्चों के लिये उनकी कक्षा के अनुरूप शैक्षिक फ़िल्मों या इण्टरैक्टिव(ऐसे कार्यक्रम जिसमें बच्चे के लिये भी काफ़ी कुछ करने की गुंजाइश रहती है।) कार्यक्रमों की सी0डी0
लाकर बच्चों को दिखायें। इनसे भी बच्चों  के अंदर पढ़ने की रुचि पैदा होगी।
         ये कुछ ऐसी छोटी छोटी बातें हैं जिन पर ध्यान देकर इन्हें अपनाकर आप अपने घर का माहौल बच्चों की पढ़ाई लिखाई के अनुरूप बना सकते हैं बच्चों के अंदर पढ़ने लिखने की रुचि जगा सकते हैं। उन्हें यह महसूस करा सकते हैं कि उनके पढ़ने की जगह सिर्फ़ स्कूल में ही नहीं बल्कि घर पर भी है।
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डा0हेमन्त कुमार

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लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. 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