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सूनापन

शुक्रवार, 30 जनवरी 2009


माझी तू गीत छेड़ आज एक ऐसा
नदियों के सूने तट गूँज उठें फ़िर से।

पनघट पर छाया ये सूनापन कैसा
विरहन की आँखों में सपनों के जैसा
खेतों खलिहानों में रीतापन कैसा
विघटित संबंधों के ठंढेपन जैसा।

चुप हुई आज क्यों पायल की रुनझुन
पत्तों के बीच छिपे सुग्गों की सुनगुन
चौरे के नीम तले कैसी ये सिहरन
चौपालों में आज नहीं कोई है धड़कन।

पसरे सन्नाटे में भवरों की गुनगुन
कोयल की कूक से तड़प उठा उपवन
विचलित मन भटके यूँ चिटका सा दर्पण
कब तक संजोयेगा यादों की कतरन।

माझी तू गीत छेड़ आज एक ऐसा
नदियों के सूने तट गूँज उठें फ़िर से।
**********
हेमंत कुमार

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मासूम लड़की

शनिवार, 24 जनवरी 2009

जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है।
ये बात हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले कही थी। उस समय यहाँ वास्तव में नारियों की पूजा होती थी। लेकिन समय के साथ सब कुछ बदलता गया। और आज नारियों की पूजा की जगह ले ली है कन्या भ्रूण हत्या ने। आज भी हमारे देश में लड़कियों को दूसरे दर्जे पर माना जाता है।
यहाँ के लोगों की इसी सोच को बदलने के लिए,आज भारत सरकार को राष्ट्रीय बालिका दिवस मानना पड़ रहा है।



मासूम लड़की

वह मासूम
वह भोली सी लड़की।

मुहँ अंधेरे आकर
हमारी
पूरी कालोनी को
जगा देती है
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।

बर्तनों की खड़ भड़
झन झन टनाक टन
नल की टोटी से
तेज धार बहता पानी
इसी में अपने
जीवन का संगीत
ढूँढती है
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।

झाडू की खर्र खर्र
सर्र सर्र
पोंछे की
छपाक छप्प
फर्नीचरों की
उठापटक के बीच
बार बार
माथे के बालों को
पीछे करती
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।

कमरे में बिख्ररे सामानों को
समेटने में ही
अपने भविष्य के
सपनों को
आकर देती
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।

कमरे में मेज पर
बिखरी बच्चों की किताबों
पेंसिलों बस्तों
रैक पर सजे खिलौनों को
बड़ी हसरत से
निहारती
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।

सुबह से शाम तक
आंटियों की डांट डपट
अंकलों की
अल्त्रावाइलेट
रेज वाली
शातिर निगाहों से
नहा कर
सराबोर हो जाती है
वह मासूम
वह भोली सी लड़की ।

जुम्मा जुम्मा
आठ नौ बरस की उमर में ही
पूरी कालोनी की खबरों को
मिर्च मसाला
लगाकर
आंटियों से बतियाती
पूरी दादी अम्मा बन गयी
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
**************
हेमंत कुमार


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बच्चों को समझिये तो

सोमवार, 19 जनवरी 2009


हर बच्चा अपने आप में अनोखा होता है.उसके अन्दर सृजन की,कुछ बनाने,कुछ नया करने की असीम संभावनाएं छिपी होती हैं.किसी में गाने,किसी में अभिनाय तो किसी में लेखन या चित्र बनाने की.कोई खेलने में तो कोई पढ़ने में आगे .किसी बच्चे का मन चीजों को तोड़ फोड़ कर उन्हें नया आकार देने में लगता है.बस जरूरत होती है उनके अन्दर छिपी इस प्रतिभा को उभारने की.अक्सर हम यानी बड़े लोग यहीं पर गलती कर जाते हैं.हम उन्हें ठीक तरह से समझ नहीं पाते.और लादने लगते हैं उनके ऊपर अपने विचारों,अपनी सोचों,अपने अधूरे सपनों की पोटली.
भाई सीधी सी बात है जिस तरह हमारे हाथों की पांचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती,उसी तरह हर बच्चे की सीखने,करने या पढने की क्षमता बराबर नहीं हो सकती.यदि किसी बच्चे को गणित का कोई सवाल देर से समझ में आता है तो कोई उसे चुटकी बजाते हल कर देता है.इसका ये मतलब नहीं होता की देर में समझने वाला बच्चा फिसड्डी हो गया.ऐसे स्लो लर्नर या धीमे सीखने वाले बच्चों पर थोड़ा अलग से ध्यान दे कर उन्हें दूसरे बच्चों के बराबर लाया जा सकता है.
अभी कुछ ही दिनों पहले की घटना है.मैं अपने एक मित्र के साथ उनके एक बड़े अधिकारी के घर गया.अधिकारी महोदय ये जान कर की मैं बच्चों के लिए टी वी कार्यक्रम बनाता हूँ.मुझसे कहने लगे की मैं उनकी छोटी बेटी का कार्यक्रम अपने यहाँ करवा दूँ.मैंने कहा ठीक है करवा दूँगा.उन्होंने तुंरत बच्ची को बुलाया.और उससे कहा की बेटा वो अंकल को कजरारे कजरारे…..वाला गाना गा कर सुनाओ.उनकी बेटी रही होगी ६-७ साल की.पहली बार मेरे सामने आई थी.शर्माने लगी.उसने कहा पापा अभी नहीं गाउगी…..और घर के भीतर भाग गयी.अधिकारी महोदय ने उसे फ़िर बुलाया.बच्ची शर्म के मारे नहीं आई.अधिकारी महोदय घर के भीतर गए और बच्ची को पकड़ कर ले आए.उससे डांट कर बोले सुनाओ गाना.बच्ची थोड़ा डर गयी.मैंने उनसे कहा..भाई रहने दीजिये..फ़िर कभी सुना देगी गाना.मै इसका कार्यक्रम अपने यहाँ करवा दूँगा.
लेकिन अधिकारी महोदय कहाँ मानने वाले थे.कहने लगे देखिये ये गाना कैसे सुनायेगी.इसी बीच उनका बेटा चाय रख गया.अधिकारी महोदय ने स्केल उठा ली और अपनी छोटी सी बच्ची का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचा….लड़की डर कर चीखने लगी.मैं अधिकारी की मंशा भांप चुका था.मैंने फ़ौरन उनका हाथ कस कर पकड़ लिया.(ये भूल कर की वो मेरे मित्र के बास हैं)मैंने उनसे बस इतना कहा की सर अब मुझसे ज्यादा बर्दाश्त नहीं हो रहा है…मैं घर जा रहा हूँ.और मैं तुंरत वहां से चला आया.
आप लोगों को यकीन नहीं होगा की मैं उस रात भर सो नहीं सका.और बराबर यही सोचता रहा की क्या किसी अभिभावक की जिम्मेदारी सिर्फ़ बच्चे पैदा कर देना और उन्हें किसी तरह मार पीट कर परीक्षाएं पास करवा देना ही है?क्या हम उस बच्चे से भी कभी ये जानने की कोशिश करते हैं की वह क्या चाहता है?उसकी अपनी इच्छा क्या है?जब वह खेलना चाहता है तो हम उसे डांट मार कर पढ़ने बैठा देते हैं.जब वह कहानी पढ़ना चाहता है तो हम उससे जबरन गणित के सवाल हल करवाते हैं.वह अगर जमीन पर बैठ कर पढ़ना चाहता है तो हम उसे डांट कर कहेंगे कुर्सी पर बैठो.जब उसका मन पढने का होगा तो हम उसे हुक्म देंगे की जाओ मैदान में और बच्चों के साथ खेलो.यहाँ सीधा सा प्रश्न ये उठता है की क्या बच्चे की अपनी कोई इच्छा,भावना,सोच नहीं है?
हम जब भी बच्चों को कोई आदेश या हुक्म देते हैं तो उससे पहले बस एक…सिर्फ़ एक क्षण के लिए हमें ऑंखें बंद करके अपना बचपन याद कर लेना चाहिए.क्या हम बचपन में वो हरकतें नहीं करते थे जो अज हमारा बेटा या कक्षा का छात्र कर रहा है.मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ की इस प्रश्न का जवाब हाँ में ही मिलेगा.यानी की हम भी बचपन में चाहते थे की हम अपने काम अपने मन से करें.उसमें बड़ों की ज्यादा दखलंदाजी न हो .फ़िर क्यों हम थोपते हैं अपने विचार बच्चों पर?
बच्चों की आजादी की वकालत करने का मेरा मतलब ये कदापि नहीं है की आप उन्हें स्वतंत्र ,उन्मुक्त छोड़ दें.मेरा कहना ये है की पहले आप उसकी इच्छा अनिच्छा को ,उसके मनोभावों को तो समझिये.जब तक हम बच्चों के मनोभावों को ,उसके विचारों को,नहीं समझेंगे,उसकी रूचि को नहीं जानेंगे.हम एक अच्छे अभिभावक,अच्छे शिक्षक नहीं बन पाएंगे.न ही हम बच्चे को आगे बढ़ा पाएंगे,न ही उसके विकास में योगदान कर सकेंगे.हाँ अपने आदेशों, अपने विचारों को लगातार उसके ऊपर थोप कर उसके कोमल,रचनात्मक,क्रियाशील,संवेदनशील मन और उसके अन्दर छिपी असीम ऊर्जा,शक्ति को कुंठित जरूर करते रहेंगे.
*****************************
हेमंत कुमार

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जाडा पकने लगा

गुरुवार, 15 जनवरी 2009




जाडा अब पकने लगा
फूल उठी सरसों
गेंदे की गंध से
महक उठा हर घर ।

नए नए पत्तों में
सुग्गों की सुन गुन
चिहीं चिहीं बोल उठी
छोटी सी मुनमुन ।

ढोलक की थाप पर
पायल की रुनझुन
बुलबुल भी गा उठी
गीतों की तान सुन ।

खपरैले पर लौकी के
बीच छिपी गौरैया
रेशमी मुलायम धूप
देख कर बोल उठी
जाडा अब पकने लगा
फूल उठी सरसों ।
००००००
हेमंत कुमार

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जाड़े के दोहे

रविवार, 11 जनवरी 2009


अलसाये से दिन हुए , कुम्हलाई अब शाम।
शरमाई सी चांदनी , नाचे अपने धाम॥

चौपालों में चल रही , चर्चा सुबहो शाम।
सूरज जम गया शीत से , कैसे निकले घाम॥

बुढऊ तापनी बारते , बुढिया जपती राम।
बूढा सुग्गा टेरता , बस अपना ही नाम॥

बिरहिन का दुःख देख के , रातें हुईं उदास।
चिठिया ढाढस दे रही , जिन छोड़ मिलन की आस॥
००००००००००००
हेमंत कुमार

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पराया धन

बुधवार, 7 जनवरी 2009



भाई के जन्मदिन पर
कितने उत्साह में होती हैं बहनें
भाई को नहलातीं
साबुन से मल-मल कर।

कपड़े पहनातीं स्वच्छ-सबसे सुंदर
तेल , कंघी , क्रीम , पाउडर
तिलक लगातीं और टीका काजल का
बेमिसाल होती हैं बहनें
मां रसोई संभाल रही होती हैं
और बहन हुक्म बजाने को तत्पर।

बिस्तर ठीक किया , परदे बदले
टेबुल , कुर्सी ,मेजें
कापी ,किताबें ,पत्र-पत्रिकाएं
ओर जाने क्या क्या
करीने से सजाये।

भाई निश्चिंत
खेल मैं मस्त
कैसे इतनी समझदार
हो जाती हैं बहनें।

भाई से पूछो
तो वो कहेगा-
‘पता नहीं’
पिता से पूछो
तो वो कहेंगे-
‘मैं कैसे बताऊँ’।

माँ से पूछो
तो वह कहेंगी-
काम काज तो सीखना ही होगा
धीरे धीरे
बिटिया जो ठहरी
‘पराया धन!’
और तभी
भीग उठेंगे
सबकी आँखों के कोर।
*********
कवि
:शैलेन्द्र
प्रभारी संपादक
जनसत्ता
(कोलकाता संस्करण)
हेमंत कुमार द्वारा प्रकाशित

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शाबाश बाबर

शनिवार, 3 जनवरी 2009

किशोरावस्था में बच्चों का मन पढने के आलावा खेलने कूदने,घूमने,टी.वी.देखने,और हसीं ख्वाबों को संजोने में लगता हैयह स्वाभाविक भी हैइसीलिये वह घर के बहार दीन दुनिया से ज्यादा जुड़ना चाहता है
इस उम्र के ज्यादातर बच्चे स्कूल के बाद अपना समय खेलकूद,टी.वी.कंप्युटर पर बिताते हैं.लेकिन मैं आपको जिस किशोर के बारे में बता रहा हूँ,वह इन सबसे एकदम अलग है.अलग इस तरह से की जब उसके हमउम्र बच्चे मैदान में,पार्क में,खेलते रहते हैं या टी.वी. पर कोई सीरियल,फ़िल्म कार्टून देखते रहते हैं.उस समय वह छोटे बच्चों को पढाने,शिक्षित करने के अपने मिशन को पूरा करने में लगा रहता है.
जी हाँ,इस किशोर का नाम है बाबर अली.कक्षा ११ का छात्र बाबर अली पश्चिम बंगाल के बरहामपुर जिले का है. जनवरी ०९ के टाइम्स अफ इंडिया(लखनऊ संस्करण) में इस बच्चे के बारे में पढ़कर उसके बारे में सोचने और लिखने को मजबूर हो गया.
कक्षाएं खत्म होने के बाद जब बाबर के सारे दोस्त खेलने कूदने,घूमने, टी.वी. देखने में व्यस्त हो जाते हैं तो वह अपने घर के आँगन में छोटे छोटे बच्चों को पढ़ता है.वह भी एक दो को नहीं लगभग ६०० बच्चों को. यानी की एक पूरा स्कूल वह अकेले चलाता है.इन बच्चों को वह - शिफ्ट(पारियों) में अलग अलग समय पर बुला कर पढाता है.
शिक्षा का अपना यह मिशन बाबर ने ११ साल की उम्र में ही शुरू कर दिया था.कुछ ऐसे अभिभावकों की दशा देख कर जो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते थे बाबर का मन द्रवित हो उठा.उसने उनके बच्चों को ख़ुद पढाने का निर्णय लिया.शुरू में तो कम ही बच्चे आए.पर धीरे धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने के साथ ही उसका कारवां बढ़ता गया.और आज तो उसके छात्रों की संख्या ६०० से भी ऊपर पहुँच गयी है.
बाबर के छात्र आस पास के गावों से आने वाले बच्चे हैं.कुछ तो - किलोमीटर दूर के गावों से पैदल चल कर उसके पास पढ़ने आते हैं.इससे भी ज्यादा ताज्जुब तो मुझे ये पढ़ कर भी हुआ की पढ़ाई के आलावा इन बच्चों को बाबर हर महीने के अंत में चावल भी बांटता है.बाबर ने ख़ुद कहा की जब हाजिरी तेजी से घटने लगी तो मेरे दिमाग में बच्चों को चावल बाँटने का आइडिया आया.
बाबर के सामने दिक्कत ये भी थी की स्कूल को जब तक मान्यता नहीं मिलेगी उसे बच्चों को बांटने के लिए सरकारी चावल मुफ्त नहीं मिल सकता था.लेकिन बाबर ने अख़बार को यह भी बताया है की सम्बंधित विभाग के सरकारी कर्मचारियों ने उसकी सहायता की और बच्चों को चावल दिया जाने लगा.
बाबर अली का सपना है की उसका स्कूल पूरे प्रदेश और देश में फैले. ऐसी सभी जगहों पर,बस्तियों में जहाँ के बच्चे स्कूल तो जाना चाहते हैं पर आर्थिक तंगी से जा नहीं पा रहे हैं,उसके स्कूल की शाखाएं खुलें.पर अभी वह सिर्फ़ यह चाहता है की कम से कम उसके छात्रों के लिए कक्षाओं (कमरों) का इंतजाम हो जाय.
अब जरा सोचिये एक तरफ़ हमारी केन्द्र,प्रदेश की सरकारें सबको शिक्षित करने के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर रही हैं,दूसरी और बाबर जैसा होनहार किशोर है जो अकेले दम पर यह हिम्मत जुता सका.ऐसे में बाबर का योगदान महत्त्वपूर्ण मन जाएगा या सरकार का?
बाबर के ऊपर हमको,आपको ,सभी को गर्व होना चाहिए.अगर आज हमारे देश में हर किशोर के अन्दर बाबर जैसा ही जज्बा,जोश पैदा हो जाय तो मुझे नहीं लगता की हमारे देश में कोई बच्चा,बूढा,प्रौढ़ निरक्षर रहेगा.बाबर अली का यह स्कूल लगातार आगेऔर आगे बढ़ता रहे.उसका सभी गरीब बच्चों को शिक्षित करने का सपना पूरा हो.ये शुभकामना हम सभी को देनी चाहिए.
हेमंत कुमार

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लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. 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