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सूनापन

शुक्रवार, 30 जनवरी 2009


माझी तू गीत छेड़ आज एक ऐसा
नदियों के सूने तट गूँज उठें फ़िर से।

पनघट पर छाया ये सूनापन कैसा
विरहन की आँखों में सपनों के जैसा
खेतों खलिहानों में रीतापन कैसा
विघटित संबंधों के ठंढेपन जैसा।

चुप हुई आज क्यों पायल की रुनझुन
पत्तों के बीच छिपे सुग्गों की सुनगुन
चौरे के नीम तले कैसी ये सिहरन
चौपालों में आज नहीं कोई है धड़कन।

पसरे सन्नाटे में भवरों की गुनगुन
कोयल की कूक से तड़प उठा उपवन
विचलित मन भटके यूँ चिटका सा दर्पण
कब तक संजोयेगा यादों की कतरन।

माझी तू गीत छेड़ आज एक ऐसा
नदियों के सूने तट गूँज उठें फ़िर से।
**********
हेमंत कुमार

13 टिप्पणियाँ:

hem pandey 30 जनवरी 2009 को 9:57 am बजे  

'चुप हुई आज क्यों पायल की रुनझुन
पत्तों के बीच छिपे सुग्गों की सुनगुन
चौरे के नीम तले कैसी ये सिहरन
चौपालों में आज नहीं कोई है धड़कन।

पसरे सन्नाटे में भवरों की गुनगुन'

-सुंदर शब्द चयन. सुंदर भाव. साधुवाद.

दर्पण साह 30 जनवरी 2009 को 11:01 pm बजे  

aanchalik bhav liye hui kavita sadev se hi mujhe ahladit karti hai...
tis par shabd sayajon....
vah....
adbhut....
meri priy line:

विचलित मन भटके यूँ चिटका सा दर्पण
कब तक संजोयेगा यादों की कतरन।
may be 'coz it has my name in it. But mainly because it has very deeper meaning.


Aur apki 'Masoom Si Ladki' to aaj kal har 'well maintained colony' main pai jaati hai (bahut samayik aur samvednatmak lekh)....

रश्मि प्रभा... 31 जनवरी 2009 को 12:05 am बजे  

माझी तू गीत छेड़ आज एक ऐसा
नदियों के सूने तट गूँज उठें फ़िर से।..........
पानी की कलकल निनाद ध्वनि आपकी रचना
में गूंज उठी, बहुत बढिया

योगेन्द्र मौदगिल 31 जनवरी 2009 को 6:53 am बजे  

वाहवा... क्या गीत है... बढ़िया क्रियेशन...

पूनम श्रीवास्तव 31 जनवरी 2009 को 10:30 am बजे  

Respected Sir,
vakayee aj chaupalon men koi dhadkan naheen ....bahut bhavpoorna geet.

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: 31 जनवरी 2009 को 11:47 am बजे  

निचवा कै चार लैन अपवा खातिर भेंट बाटे :--
मांझी का गीत ,लहरों की कलकल;
सूने तट पर पवन की सनन-सनन
पनघट पे पायल की रुनझुन ,
छेड़ गयी भावों की सरगम |
अवध-प्रवास पै आवे कै सुकरिया , कुछ कारनन से काम आगे बढाए नाही पाये रहन हई| कओनो सहयोग दै सकेओ तौ जरुर दिह्यो | अनुराग जी असल मा 'अवधी भाषा-प्रेम ' पै लिखत हैंई ; इहाँ लिखब उनकै इछा पै बाटे |

Dr.Bhawna Kunwar 2 फ़रवरी 2009 को 5:29 am बजे  

विचलित मन भटके यूँ चिटका सा दर्पण
कब तक संजोयेगा यादों की कतरन।
kaya pnaktiya likhi hain aapne bahut hi sundar...sadhuvad

बेनामी,  4 फ़रवरी 2009 को 9:34 am बजे  

khoobsoorat panktiya hain...

बेनामी,  4 फ़रवरी 2009 को 10:01 am बजे  

ho sake to blog follow karein taaki aapse maargdarshan milta rahe..

http://merastitva.blogspot.com

अभिषेक मिश्र 4 फ़रवरी 2009 को 7:59 pm बजे  

चुप हुई आज क्यों पायल की रुनझुन
पत्तों के बीच छिपे सुग्गों की सुनगुन
चौरे के नीम तले कैसी ये सिहरन
चौपालों में आज नहीं कोई है धड़कन।

Vaastav mein dhadkan ko jagane wale ek get ki aaj fir jaruat hai.

दिगम्बर नासवा 5 फ़रवरी 2009 को 2:03 am बजे  

bahoot सुंदर कविता abhivyakti और भी सुंदर, धारा pravah है

समीर सृज़न 5 फ़रवरी 2009 को 6:31 am बजे  

बहुत सुन्दर भाव है..आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ.अच्छा लगा..अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा..

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