प्राथमिक शिक्षा
शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009
घोषित तो बहुत कुछ हुआ लेकिन……
पिछले कुछ महीने प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था के लिए नयी आशाएं लेकर आये हैं.इन महीनों में हमारी सरकार ने प्राथमिक शिक्षा की बेहतरी के लिए कई घोषनाएं कीं.मसलन शिक्षा का अधिकार बिल को संसद द्वारा मंजूरी मिल गयी.चलिए अब देश के हर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा मिलेगी हर कीमत पर,हर हल में.दूसरी अच्छी ख़बर ये की बच्चों के बस्तों का बोझ हल्का होगा.सी.बी.एस.ई.बोर्ड की और से देश भर के स्कूलों को एक सर्कुलर जारी कर के निर्देश दिए गए हैं.इस सर्कुलर में कहा गया है की स्कूलों का प्रबंध तंत्र स्कूली बैग का वजन कम करने की दिशा में कदम उठाये खासतौर से से प्राईमरी स्कूलों के बच्चों का.प्राथमिक स्कूलों के छोटे बच्चों के नाजुक कंधे …..और उन पर बस्ते का भारी भरकम बोझ.कभी कभी बच्चों को इतने भारी बस्ते लाद कर स्कूल जाते देखता हूँ तो मुझे अपने स्कूली दिन याद आ जाते हैं.कितना आरामदायक ,खुशनुमा जीवन था वो भी…..और आज…ज्यादातर बच्चे पीठदर्द,सिरदर्द,कम वजन,भूख न लगने की शिकायत से परेशान.लेकिन अब शायद हमारे शिक्षा तंत्र के संचालकों को बच्चों की ये परेशानी दूर करने की सुध आयी है.चलिए देर आयद दुरुस्त आयद.अब कितने स्कूल बोर्ड के इस निर्देश को मानेंगे वो बात दीगर है.लेकिन निर्णय ये बहुत उचित और स्वागत योग्य है.तीसरा निर्णय प्राथमिक स्कूलों(सरकारी)के शिक्षकों को अच्छा वेतन देने का.इस से कम से कम शिक्षक अपना पूरा ध्यान बच्चों को पढाने पर केंद्रित करेन्गे.(हांलाकि हमारी सरकार ही अक्सर प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों को वोटर लिस्ट बनाने,पल्स पोलियो जैसे अभियानों में लगा देती है.)ये तीनों कदम तो हमारी सरकार ने बहुत अच्छे उठाये.कुछ तो हालत बदलेंगे ही.लेकिन एक मुद्दे पर हमारी सरकार,शासन के लोग क्यों नहीं कुछ ठोस कदम उठा रहे हैं?वो मुद्दा है कम से कम प्रथामिक कक्षा तक के पाठ्यक्रम में एकरूपता लाने का.हमारे देश में प्राथमिक स्तर पर ही कई तरह के स्कूल हैं.सरकारी(परिषदीय)स्कूल,कान्वेंट(शुद्ध मिशनरी कान्वेंट)स्कूल,सेमी कान्वेंट,मदरसे,सरस्वती शिशु मन्दिर वगैरह.जितने तरह के स्कूल उतनी तरह के पाठ्यक्रम.सभी में अच्छा खासा अन्तर.सरकारी स्कूलों में यहाँ की जनसँख्या के बड़े हिस्से के बच्चे जाते हैं.सरकारी स्कूलों में सरकारी किताबें चलती हैं.पढ़ाई का माध्यम हिन्दी है.मिशनरी कान्वेंतो में कुछ सी बी एस सी पैतर्न पर पाठ्यक्रम रखते हैं कुछ आइ सी एस सी के हिसाब से.यहाँ कक्षा एक से ही बच्चों की पीठ पर भारी भारी बस्तों का बोझ भी लाद दिया जाता है.इनकी किताबें अंगरेजी भाषा में हैं.प्रयिवेट प्रकाशकों द्वारा छापी गयी हैं.इनकी पढ़ाई का माध्यम भी अंगरेजी हैं.तीसरी तरफ़ हैं मदरसे,शिशु मन्दिर या अन्य स्कूल.इनका पाठ्यक्रम अलग.मतलब ये की अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग.अब जब पूरे देश के बच्चे शुरू से ही अलग अलग स्तरों पर पढ़ रहे हैं तो जाहिर है उनकी सोच भी अलग अलग होगी .फ़िर ये बच्चे कैसे आगे चल कर कम्पटीशन में,राष्ट्र निर्माण या फ़िर सामाजिक बदलाव में एक स्तर पर एक जैसा प्रदर्शन कर सकेंगे.सरकारी स्कूल का हिन्दी मीडियम से पढ़ा बच्चा ,कान्वेंट के बच्चे के आगे कैसे टिक सकेगा?इस दिशा में अभी तक हमारी सरकार न ही कोई कदम उठा रही है,न ही कोई नीति बना रही है.जबकि कम से कम प्राथमिक स्तर के बच्चों के लिए पूरे देश में एक पाठ्यक्रम,एक स्तर होना चाहिए.प्राथमिक शिक्षा का काम करने वाली देश की सबसे बड़ी संस्था एन.सी. ई. आर.टी. है.यहाँ जो पाठयक्रम बनाकर किताबें छपती हैं,राज्यों में पहुँच कर इस पाठ्यक्रम में एस.सी.ई.आर.टी की तरफ़ से काफी बदलाव कर दिया जाता है.हर राज्य अपने हिसाब से उस पाठ्यक्रम में से कुछ अंश हटा देता है,कुछ नया जोड़ देता है.जब की एन सी ई आर टी को चाहिए की प्राथमिक स्तर पर जो किताबें ,पाठ्यक्रम वो तैयार करवाए वही पूरे देश में लागू हो.उसमें राज्यो द्वारा कोई बदलाव न किया जाए .यदि हमारी सरकार,शिक्षाविद,एन.सी.ई.आर.टी.तीनों की और से इस दिशा में भी कुछ पहल की जाय तो शायद ये प्राथमिक शिक्षा के हित में ,देश के हित में एक अच्छा कदम होगा।
**********************
हेमंत कुमार
11 टिप्पणियाँ:
Respected Hemant Ji,
Hamen apnee prathmik shiksha ko pataree par lane ke liye pathyakram men ek roopata to lanee hee hogee.
बस्ते का बोझ कम करने की बात तो वर्षों से सुनते आ रहे हैं. लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाता है.केवल एक से पाठ्यक्रम से ही शिक्षा में कोई बदलाव नहीं आ सकता.पूरी शिक्षा पद्धति पर ही पुनर्विचार की जरूरत है ताकि बच्चों का बचपन छिनने से बच जाय.
जब तक सरकार कोई रचनात्मक कार्य नही करती तब तक कोई आशा करनी बेकार है।
आपने सिलसिलेवार प्राथमिक शिक्षा पर बहुत ही सारगर्भित विश्लेषण किया है। सच यही है कि जब तक प्राथमिक शिक्षा का स्तर सभी राज्यों में समान नहीं होगा, जब तक बुनियादी ढांचे पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक असमानता की खाई और गहरी होती जाएगी।
hemat sahab aapne prathmik shiksha ke bare me bahut achha likha hai aur khastaur par aapne ending bahut khub di hai.
kabhi waqt mile to mera blog bhi dekhen.
www.sakaamzindadili.blogspot.com
very nice post aapne sahi likha hai
जी, हेमत जी कुछ दिन पहले मै भी यही सोच रही थी पर अपनी सर्वेंट के बच्चे को जब मैं स्कूल डालने गई तो यह देख खुशी हुई कि अब पहली कक्छा से ही अंग्रेजी कि पुस्तक दे दी जाती है ताकि बच्चे अंग्रेजी विषय में कमजोर न हो सकें ये एक अच्छी शुरुआत है...!
अच्छा लेख लिखा आपने, जो थोड़ा भी बदलाव हुआ वो अच्छा हुआ शायद आगे भी कुछ हो जाये,बहुत जरूरत है बदलाव की ताकि इन मासूमों के मानसिक और शारीरिक विकास में सहायता मिले, यहाँ एक बात तो अच्छी है कि हमारे बच्चों को बैग नहीं लादना पड़ता सब कुछ स्कूल के लॉकर में रखते हैं।
घोषित तो बहुत हुआ लेकिन....... बहुत बढियां मुद्दे दमदार हैं,लेकिन बस्ते के बोझ में किताबों के बोझ से बरा है विषयों में निहित अवधारनाओ का बोझ अवधारनो के प्रतिस्तीकरण के तरीके,जिसके के कारन बच्चों में सीखने का बोझ बन जाता है. मुकेश भार्गव लखनऊ
घोषित तो बहुत हुआ लेकिन....... बहुत बढियां मुद्दे दमदार हैं,लेकिन बस्ते के बोझ में किताबों के बोझ से बरा है विषयों में निहित अवधारनाओ का बोझ अवधारनो के प्रतिस्तीकरण के तरीके,जिसके के कारन बच्चों में सीखने का बोझ बन जाता है. मुकेश भार्गव लखनऊ
घोषित तो बहुत हुआ लेकिन....... बहुत बढियां मुद्दे दमदार हैं,लेकिन बस्ते के बोझ में किताबों के बोझ से बरा है विषयों में निहित अवधारनाओ का बोझ अवधारनो के प्रतिस्तीकरण के तरीके,जिसके के कारन बच्चों में सीखने का बोझ बन जाता है. मुकेश भार्गव लखनऊ
एक टिप्पणी भेजें