खतरा अस्तित्व का
बुधवार, 11 फ़रवरी 2009
एक बादल का टुकड़ा
खरगोश के छौने जैसा
फुदक रहा है
इन काले पहाडों के ऊपर
बरसने को आतुर
पर सहम जाता है
बार बार
पहाडों की कठोरता
और उनके बीच से
निकलती हुयी
लपटों को देखकर
की कहीं वे
उसका अस्तित्व
ही न समाप्त कर दें।
--------------
हेमंत कुमार
खरगोश के छौने जैसा
फुदक रहा है
इन काले पहाडों के ऊपर
बरसने को आतुर
पर सहम जाता है
बार बार
पहाडों की कठोरता
और उनके बीच से
निकलती हुयी
लपटों को देखकर
की कहीं वे
उसका अस्तित्व
ही न समाप्त कर दें।
--------------
हेमंत कुमार
12 टिप्पणियाँ:
आपकी पंक्तियाँ पढ़ कर अच्छा लगा!!!!
kitni khubsurti se bhay ko shabdon me dhaal diya......khatra astitw ka aur sashankit baadal- bahut khoob
Respected Hemant ji,
lekhon kee tarah apkee kavitayen bhee kafee bhavpoorn hain.badhai.
अतुकांत कविताओ का भी अपना मज़ा होता है. आपने बहुत सुंदर तरीके से अपनी बात कह दी . अच्छी लगाती है, ऐसी कविताये भी. नई कविताओ को यही तो चाहिए.
साधुवाद .
अपने बादल से कहिए -
वह डरना छोड़ दे,
क्योंकि
पहाड़ों में ऐसा कुछ भी नहीं है,
जो उसका अस्तित्व मिटा दें!
उसको बरसना ही होगा,
पहाड़ों की कठोरता
और
उनके बीच से निकलती हुई लपटों को
समाप्त करने के लिए!
आपकी भावाभिव्यक्ति लाजवाब है, किंतु विचारों के लिए जिस प्रकार की टिप्पणि देना चाहता था वैसी टिप्पणि भाई रावेन्द्र कुमार रवि ने अत्यन्त सुंदर शब्दों में दे दी. साधुवाद आपके लिए और टिप्पणिकार भाई रावेन्द्र कुमार रवि के लिए.
अपने बरखा से कहिए कि वह आसमान की उंचाई तक बिना डर के विचरण करें । खासकर पहाड़ की उंचाई से डरने की कोई बात ही नही है । साहित्य से अभिभूत सुन्दर रचना । शुक्रिया
आपकी अन्य रचनाओं से अलग
मार्मिक कविता . अच्छा काम कर रहे हैं आप बच्चो पर .
एक बादल का टुकड़ा
खरगोश के छौने जैसा
फुदक रहा है
इन काले पहाडों के ऊपर
बरसने को आतुर
पर सहम जाता है
बार बार
पहाडों की कठोरता
और उनके बीच से
निकलती हुयी
लपटों को देखकर
की कहीं वे
उसका अस्तित्व
ही न समाप्त कर दें......
लाजवाब ...!!
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