कब तक
रविवार, 9 नवंबर 2008
कब तक ?
आठ नवम्बर को फ़िर एक मासूम बोरवेल में गिर गया.यह अभागा बच्चा राजीव कन्नौज शहर के भंवर gaddhaगाँव का है.और मुश्किल ये की ८० फीट गहरे बोरवेल में गिरा राजीव मंद बुद्धि है.जिसका परिणाम यह की उसे बचाने की जो भी कोशिशें होंगी उसमें वो शायद ही कुछ रिस्पौंस दे पाये.राजीव पास की ही प्राइमरी पाठशाला में मिड दे मील खाने जा रहा था .इश्वर करे राजीव सकुशल बाहर आ जाए.
पूरे देश मैं पिछले तीन चार सालों में मासूमों के बोरवेल में गिरने की यह कम से कम पच्चीसवीं घटना होगी (संख्या और भी ज्यादा हो सकती है) .इनमें कुछ बच्चों को अथक प्रयासों से बच्चा लिया गया . कुछ अभागे नही बच सके.
लेकिन सवाल यह है की मासूम बच्चों के बोरवेल मैं गिरने की ये दुर्घटनायें कब तक होती रहेंगी? कब तक ये ८०,९०,२०० फीट गहरे बोरवेल अबोध बच्चों को निगलते रहेंगे ?इन्हें रोकने की कोशिश क्यों नही की जा रही?
मुझे जहाँ तक याद है बोरवेल मैं किसी बच्चे के गिराने की पहली दुर्घटना लखनू के पास किसी गाँव में हुई थी.बोरवेल का दूसरा शिकार प्रिंस हुआ था.उसके बाद से हर दूसरे-तीसरे(कभी कभी हर माह)एक बच्चे के बोरवेल में गिराने की ख़बर अखबार या चैनलों में आ जाती है.
हमारे देश की सरकार और प्रशासन उन्हें रोकने के लिए कठोर कदम क्यों नहीं उठा रही हैं?जबकि इसका उपाय बहुत आसान है.
० बोरवेल खोदने के बाद उसके चारों और कोई मजबूत रोक लगाई जाए जिससे बच्चे वहाँ तक न पहुँच सकें .
० बोरवेल के पास किसी व्यक्ति / व्यक्तियों की ड्यूटी तब तक के लिए लगाई जाए जब तक बोरवेल का काम ख़त्म न हो जाए .
० बोरवेल से यदि पानी नहीं निकला है तो उसे तुंरत बंद कर दिया जाए.
० ऐसा न करने वाले ठेकेदार / इंजिनियर /फ़र्म को कठोर आर्थिक दंड दिया जाए.
० यदि किसी बोरवेल में फ़िर कोई मासूम गिरे तो उस बोरवेल की खुदाई करने वाले ठेकेदार / इंजिनियर के विरुद्ध वही प्रक्रिया अपनाई जाए जो हत्या के अपराधी के लिए अपनाई जाती है .
पर क्या हमारे देश में ऐसा सम्भव है
आठ नवम्बर को फ़िर एक मासूम बोरवेल में गिर गया.यह अभागा बच्चा राजीव कन्नौज शहर के भंवर gaddhaगाँव का है.और मुश्किल ये की ८० फीट गहरे बोरवेल में गिरा राजीव मंद बुद्धि है.जिसका परिणाम यह की उसे बचाने की जो भी कोशिशें होंगी उसमें वो शायद ही कुछ रिस्पौंस दे पाये.राजीव पास की ही प्राइमरी पाठशाला में मिड दे मील खाने जा रहा था .इश्वर करे राजीव सकुशल बाहर आ जाए.
पूरे देश मैं पिछले तीन चार सालों में मासूमों के बोरवेल में गिरने की यह कम से कम पच्चीसवीं घटना होगी (संख्या और भी ज्यादा हो सकती है) .इनमें कुछ बच्चों को अथक प्रयासों से बच्चा लिया गया . कुछ अभागे नही बच सके.
लेकिन सवाल यह है की मासूम बच्चों के बोरवेल मैं गिरने की ये दुर्घटनायें कब तक होती रहेंगी? कब तक ये ८०,९०,२०० फीट गहरे बोरवेल अबोध बच्चों को निगलते रहेंगे ?इन्हें रोकने की कोशिश क्यों नही की जा रही?
मुझे जहाँ तक याद है बोरवेल मैं किसी बच्चे के गिराने की पहली दुर्घटना लखनू के पास किसी गाँव में हुई थी.बोरवेल का दूसरा शिकार प्रिंस हुआ था.उसके बाद से हर दूसरे-तीसरे(कभी कभी हर माह)एक बच्चे के बोरवेल में गिराने की ख़बर अखबार या चैनलों में आ जाती है.
हमारे देश की सरकार और प्रशासन उन्हें रोकने के लिए कठोर कदम क्यों नहीं उठा रही हैं?जबकि इसका उपाय बहुत आसान है.
० बोरवेल खोदने के बाद उसके चारों और कोई मजबूत रोक लगाई जाए जिससे बच्चे वहाँ तक न पहुँच सकें .
० बोरवेल के पास किसी व्यक्ति / व्यक्तियों की ड्यूटी तब तक के लिए लगाई जाए जब तक बोरवेल का काम ख़त्म न हो जाए .
० बोरवेल से यदि पानी नहीं निकला है तो उसे तुंरत बंद कर दिया जाए.
० ऐसा न करने वाले ठेकेदार / इंजिनियर /फ़र्म को कठोर आर्थिक दंड दिया जाए.
० यदि किसी बोरवेल में फ़िर कोई मासूम गिरे तो उस बोरवेल की खुदाई करने वाले ठेकेदार / इंजिनियर के विरुद्ध वही प्रक्रिया अपनाई जाए जो हत्या के अपराधी के लिए अपनाई जाती है .
पर क्या हमारे देश में ऐसा सम्भव है
हेमंत कुमार