परिवार में बच्चा
रविवार, 1 मार्च 2009
किसी भी समाज की पहली इकाई परिवार है.दुनिया के हर समाज में परिवार को महत्व दिया गया है.हाँ इसका स्वरूप अलग अलग जगहों पर अलग तरह का है.परिवार कहीं छोटे तो कहीं बड़े हैं.कहीं पर परिवार में मां पिता और एक बच्चा ही है.कहीं पर पिता, मां,बच्चों और बाबा दादी को मिलाकर परिवार बना है.सम्मिलित परिवार में सब तरह के रिश्ते और उम्र के लोग होते हैं.
भारत में खासकर गांवों में परिवार बड़े हैं.लेकिन शहरों में परिवार छोटे हैं.शहरों में बच्चे को मां बाप के साथ छोटे से मकान में रहना पड़ता है.कुछ परिवारों में बच्चा अपने चाचा,चाची,मां,पिता के साथ रहता है.परन्तु इन सभी परिवारों में मां बच्चे के बीच सबसे अधिक नजदीकी रिश्ता है.बच्चे के विकास में भी मां की ही सबसे ज्यादा बड़ी भूमिका रहती है.
बच्चे के विकास पर उसके परिवार तथा वातावरण का बहुत ज्यादा असर पड़ता है.कुछ खास बातें ऐसी हैं जो हर परिवार में पाई जाती हैं चाहे वह छोटा हो या बड़ा परिवार.और इन बातों का असर बच्चे के पूरे व्यक्तित्व,उसके विकास पर सीधे पड़ता है.इन बातों का परिवार के आर्थिक स्तर,गरीबी अमीरी से कोई मतलब नहीं है.
बड़े या संयुक्त परिवार के फायदे:
१-बड़े परिवार में बच्चे को भरपूर प्यार और स्नेह मिलता है.यही स्नेह,प्यार बच्चे के अन्दर सुरक्षा की भावना को बढाता है.उसके अन्दर संसार को देखने जानने की उत्सुकता बढ़ती है.
२-बच्चे का परिवार में एक अलग स्थान बन जाता है.उसे केवल एक समूह का हिस्सा नहीं माना जाता.हर व्यक्ति उसका खास ध्यान रखता है.इस तरह बच्चा परिवार के हर व्यक्ति का आत्मीय बन जाता है.
३-परिवार के साथ रह कर ही बच्चा चीजों को देखना,परखना सीखता है.उसे नयी बातें सीखने के अवसर मिलते हैं.वह धीरे-धीरे अपने कामों को समझने लगता है.इतना ही नहीं वह अपनी उम्र के मुताबिक जिम्मेदारी भी उठाना सीखता है.
४-बड़े परिवार में हर उम्र के लोग होते हैं.चूंकि बच्चा हर समय देखता और सीखता रहता है.इसलिए हर उम्र के लोगों के साथ रहना उसके लिए फायदेमंद होता है.उसे परिवार में तरह तरह के लोगों से मिलने,खेलने तथा सीखने के अवसर मिलते हैं.
५-बच्चा हर समय और हर जगह सीखता रहता है .इसलिए उसे सिखाने या समझाने का कोई खास समय या स्थान नहीं बनाना चाहिए.
६-बच्चा परिवार में कई लोगों से घिरा रहता है जो उसमें रूचि लेते हैं.और जीवन की गाड़ी चलाने में उसके मार्गदर्शक बनते हैं.बच्चा उनके ही व्यवहार से अलग अलग उम्र के लायक बातें सीखता है.साथ ही अनुशासित होना भी सीखता है.
७-बच्चा अपने परिवार में बोलचाल की भाषा सुनता है और नक़ल करके,उसे बोलने की कोशिश करता है.इस प्रकार तरह तरह के प्रयोगों द्वारा परिवार में ही बोली का अभ्यास भी होता रहता है.
८-बच्चा नक़ल करके,देखकर,सुनकर सीखता है.अतः परिवार के साथ रहने पर उसे बहुत कुछ अपने आप ही आ जाता है.
९-परिवार में रहने से बच्चे की कल्पना एवं रचना शक्ति बढ़ती है.वह अक्सर दूसरे बच्चों के साथ मां पिता की नक़ल करता है.बाबा दादी बनकर खेलता है.इस तरह वह परिवार,समाज की तरह तरह की भूमिकाएं निभाना सीखता है.
परिवार बच्चों को सीखने या आगे बढ़ने के जो अवसर देता है,वह उसे किसी भी जगह नहीं मिल सकते.किसी स्कूल में एक अध्यापक के साथ बच्चों का पूरा समूह होता है.वह हर बच्चे पर पूरा पूरा ध्यान नहीं दे सकता.इसलिए बच्चे को विकसित होने के लिए परिवार जैसा अच्छा माहौल कहीं नहीं मिल सकता.
संभवतः बड़े या संयुक्त परिवार के इन्हीं फायदों को ध्यान में रखते हुए ,१९९४ को अंतर्राष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित किया गया था.आज मैं ये लेख इसीलिये लिख रहा हूँ की हम, आप सभी मिल कर फ़िर परिवार के महत्व,बच्चों के विकास में परिवार की भूमिका के बारे में सोचें.और संयुक्त परिवार की ख़त्म होती जा रही परम्परा को बचाएं.अपने लिए न सही कम से कम बच्चों के ही लिए.
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हेमंत कुमार