विश्व फोटोग्राफी दिवस
शनिवार, 19 अगस्त 2017
विश्व फोटोग्राफी दिवस
आज विश्व
फोटोग्राफी दिवस के मौके पर मैंने भी सोच लाओ अपने खजाने के अनमोल रत्नों की झाड
पोंछ कर उनकी सफाई तो कर ही ली जाय।(वैसे अपने
कैमरों की सफाई मैं दो तीन माह में कर ही लेता हूँ।)मैंने पहला कैमरा इस्तेमाल किया था पिता जी का– “कोडक” का बाक्स कैमरा
।फिर कहीं से मिला—“अग्फा आइसोली 100”—फिर आया हाट शाट का स्नैपर—55... ।
1983 के आस पास मेरे मित्र प्रदीप सौरभ(वर्त्तमान में एक स्थापित पत्रकार
और उपन्यासकार)ने बार बार मुझे कैमरा
खरीदने की सलाह देते रहे।मेरे फोटोग्राफी के शौक को देखते हुए मेरे पिता जी ने
मुझे एक सेकेण्ड हैण्ड एस एल आर कैमरा ---“पेंटेक्स के 1000” शायद 1983 में खरीद कर दिया था।ये मेरे पास लगभग 6 महीने
रहा।इस पर कुछ अभ्यास किया।फिर उसे बेच कर थोडा और मंहगा कैमरा “मामिया” का (माडल याद नहीं) ले लिए जो मेरे एक मित्र डा०अनुपम आनंद
के पास आज भी सुरक्षित है।इस दौरान मैंने एक ब्लैक एंड व्हाईट इन्लार्जर(अग्फा का)
भी खरीद लिया था।उसी दौरान मेरी मुलाक़ात बड़े भाई अजामिल जी से हुयी।उनको मैं अपना
फोटोग्राफी का गुरु भी मानता हूँ।प्रदीप सौरभ और अजामिल जी से मुझे फोटोग्राफी के
बहुत से गुर सीखने को मिले।कुछ समय बाद मेरे एक मित्र के स्टूडियो के मार्फ़त मैंने
शादियों में भी कुछ दिन फोटोग्राफी की जिससे डाक्टरेट करके भी बेरोजगारी के दंश से
बचा रहूँ और मेरी पाकेट मनी भी निकलती रहे। 1986 में शैक्षिक दूरदर्शन,लखनऊ की
नौकरी में आने और लेखन में ज्यादा वक्त देने के बाद भी मैंने फोटोग्राफी का दामन
नहीं छोड़ा।1988 में पिता जी ने फिर मुझे एक और नए एस एल आर कैमरे “मिनोल्टा X 300” किट भी खरीद कर दे दी।लेकिन जैसे जैसे डिजिटलीकरण होता गया
मेरे फिल्म कैमरा मिनोल्टा का इस्तेमाल
मंहगा होता गया।
फिर पिछले चार पांच सालों से मैंने 2 एम् पी से 8 एम् पी के मोबाइल कैमरे
का सहारा ले रखा था।और अभी पिछले दिनों मेरी बड़ी बेटी ने मुझे “सोनी” का“साइबर शाट” दिया तो लगा की
अब फिर फोटोग्राफी के शौक को जारी रखा जा सकता है।
इस बीच फोटोग्राफी की दुनिया में बहुत कुछ बदल गया।पहले अगर आपको याद हो तो
हर स्टूडियो में एक व्यक्ति बैठ कर ब्लैक एंड व्हाईट निगेटिव की री-टचिंग करता
था।एक व्यक्ति फोटोग्राफ्स की टचिंग।और ये दोनों ही काम फोटोग्राफी में बड़ी
विशेषज्ञता के माने जाते थे।एक निगेटिव य फोटो री-टचिंग करने वाले एक्सपर्ट के पास
कई स्टूडियोज के काम रहते थे।अब डिजिटल की दुनिया ने सभी कुछ बदल दिया।वो डार्क
रूम्स के अँधेरे में फिल्म को डेवलप करना,कभी कभी हरी सेफ लाईट जला कर निगेटिव
देखना,लाल लाईट जला कर प्रिंट बनाना,---फिर कलर लब्स का ज़माना ----और अब मोबाइल से
लेकर डी एस एल आर का ज़माना।फोटोग्राफी की दुनिया में मशहूर फिल्म कंपनी कोडक का
बंद होना (शायद2013 में) एक बड़ी घटना थी।
इस डिजिटलीकरण के दौर में पूरी दुनिया में लाखों करोडो की संख्या में मंहगे
से मन्हंगे फिल्म कैमरे लोगों की आलमारियों में बंद पड़े हैं उनका क्या भविष्य
है।सूना है कुछ कम्पनियाँ उन फिल्म कैमरों में कोई डिवाइस लगाकर उसे डिजिटल मोड़
में कन्वर्ट करने की दिशा में भी कुछ काम कर रही हैं।शायद फिर कभी उन कैमरों को
आलमारियों से बाहर निकल कर दुनिया देखने दिखाने का मौक़ा मिल सके इस उम्मीद के साथ
आप सभी को विश्व फोटोग्राफी दिवस की हार्दिक बधाई।
0000
डा०हेमन्त कुमार