पहली बारिश में
सोमवार, 22 अप्रैल 2013
मौसम की पहली बारिश में जब
जमीन की देह भाप बनकर
उड़ती है
खुशबू से तर हो जाती है हवा
धुआंसा आकाश
खिड़की पे बेचैन उतर आता है।
जमीन की देह भाप बनकर
उड़ती है
खुशबू से तर हो जाती है हवा
धुआंसा आकाश
खिड़की पे बेचैन उतर आता है।
दस्तक देते हैं झकोरे
हल्की टकोर जिस्म को
नदी बना देती है
रसमसाती है इक आदिम चाहना
रगो-रेश में
बेहया इरादे जगते हैं
देर तक।
हल्की टकोर जिस्म को
नदी बना देती है
रसमसाती है इक आदिम चाहना
रगो-रेश में
बेहया इरादे जगते हैं
देर तक।
मेंहदियां गंध में
भींगता है आंगन
उतरकर लहू में
घुलती है शाम
शराब बन जाती है
महुआ सी फूलती है
वर्जित इच्छाएं।
भींगता है आंगन
उतरकर लहू में
घुलती है शाम
शराब बन जाती है
महुआ सी फूलती है
वर्जित इच्छाएं।
अंखुआती है देह पर कोंपलें
अनवरत
पाप के
फरेब के इस मौसम में
मुझे तुम,
बस तुम याद आते हो !
अनवरत
पाप के
फरेब के इस मौसम में
मुझे तुम,
बस तुम याद आते हो !
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कवियत्री—जयश्री
राय
ई-मेल—jaishreeroy@ymail.com
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