कटघरे के भीतर
गुरुवार, 14 जुलाई 2011
खून से रंगी सडकों पर
अपने कदमों के निशान बनाते हुए
निकल पड़े हैं
हजारों लाखों बच्चे
पूरी दुनिया के घरों से.
इनके हाथों में हैं मशालें
चेहरे हैं आंसुओं से तर बतर
मन में समाया है एक खौफ
कानों में गूँज रही है धमाकों की आवाजें
और आँखों में चस्पा हैं तमाम सवाल
जिनका जवाब देना है
हमें/आपको/हम सब को.
इन बच्चों की लाल पड़ गई सूनी ऑंखें
जानना चाहती हैं
अपने पैदा होने का कसूर
की क्यों वे सभी बना दिए गए अनाथ
चंद मिनटों में
कुछ उन्मादियों द्वारा की गयी हैवानियत से
की क्या होगा उनका भविष्य
की कैसे मिटेगा उनके चेहरों पर
छाया हुआ खौफ
की कैसे वे उबर सकेंगे पूरे जीवन भर
रात में दिखने वाले भयावह सपनों के प्रहार से
की कौन बुलाएगा अब उन्हें बेटा कह कर
की किसके आँचल में छुप सकेंगे वे
उनींदी आँखों से भयावह काली आकृतियाँ देख कर
की कैसे वे भी बिता सकेंगे एक सामान्य बच्चे का जीवन.
ये सभी सवाल पूछ रहे हैं
ये सारे बच्चे
हम सभी से
सोचिये जरा सोचिये
कुछ थोड़ा बहुत तो बोलिए
क्या जवाब है आपके हमारे पास
इनके सवालों का?
हम सब खड़े होकर कटघरों में
गीता पर हाथ रख कर
सच बोलने की शपथ तो खा सकते हैं
परन्तु क्या दे सकते हैं
कोई आश्वासन..कोई सबूत..कोई प्रमाण
इन बच्चों को
इनके बचपन को सुरक्षित रखने का.
आप भी जरा विचारिये
डालिए अपने दिमाग पर कुछ जोर
की क्या जवाब देना है इन बच्चों को
कब तक चलता रहेगा
दहशतगर्दी का ये खेल
कब तक बारूद के धमाकों
और संगीनों के साये में
खौफनाक मंजर की तस्वीरों से
आतंकित होते रहेंगे ये बच्चे?
00000000
हेमंत कुमार
अपने कदमों के निशान बनाते हुए
निकल पड़े हैं
हजारों लाखों बच्चे
पूरी दुनिया के घरों से.
इनके हाथों में हैं मशालें
चेहरे हैं आंसुओं से तर बतर
मन में समाया है एक खौफ
कानों में गूँज रही है धमाकों की आवाजें
और आँखों में चस्पा हैं तमाम सवाल
जिनका जवाब देना है
हमें/आपको/हम सब को.
इन बच्चों की लाल पड़ गई सूनी ऑंखें
जानना चाहती हैं
अपने पैदा होने का कसूर
की क्यों वे सभी बना दिए गए अनाथ
चंद मिनटों में
कुछ उन्मादियों द्वारा की गयी हैवानियत से
की क्या होगा उनका भविष्य
की कैसे मिटेगा उनके चेहरों पर
छाया हुआ खौफ
की कैसे वे उबर सकेंगे पूरे जीवन भर
रात में दिखने वाले भयावह सपनों के प्रहार से
की कौन बुलाएगा अब उन्हें बेटा कह कर
की किसके आँचल में छुप सकेंगे वे
उनींदी आँखों से भयावह काली आकृतियाँ देख कर
की कैसे वे भी बिता सकेंगे एक सामान्य बच्चे का जीवन.
ये सभी सवाल पूछ रहे हैं
ये सारे बच्चे
हम सभी से
सोचिये जरा सोचिये
कुछ थोड़ा बहुत तो बोलिए
क्या जवाब है आपके हमारे पास
इनके सवालों का?
हम सब खड़े होकर कटघरों में
गीता पर हाथ रख कर
सच बोलने की शपथ तो खा सकते हैं
परन्तु क्या दे सकते हैं
कोई आश्वासन..कोई सबूत..कोई प्रमाण
इन बच्चों को
इनके बचपन को सुरक्षित रखने का.
आप भी जरा विचारिये
डालिए अपने दिमाग पर कुछ जोर
की क्या जवाब देना है इन बच्चों को
कब तक चलता रहेगा
दहशतगर्दी का ये खेल
कब तक बारूद के धमाकों
और संगीनों के साये में
खौफनाक मंजर की तस्वीरों से
आतंकित होते रहेंगे ये बच्चे?
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हेमंत कुमार