शाबाश बाबर
शनिवार, 3 जनवरी 2009
किशोरावस्था में बच्चों का मन पढने के आलावा खेलने कूदने,घूमने,टी.वी.देखने,और हसीं ख्वाबों को संजोने में लगता है। यह स्वाभाविक भी है। इसीलिये वह घर के बहार दीन दुनिया से ज्यादा जुड़ना चाहता है।
इस उम्र के ज्यादातर बच्चे स्कूल के बाद अपना समय खेलकूद,टी.वी.कंप्युटर पर बिताते हैं.लेकिन मैं आपको जिस किशोर के बारे में बता रहा हूँ,वह इन सबसे एकदम अलग है.अलग इस तरह से की जब उसके हमउम्र बच्चे मैदान में,पार्क में,खेलते रहते हैं या टी.वी. पर कोई सीरियल,फ़िल्म कार्टून देखते रहते हैं.उस समय वह छोटे बच्चों को पढाने,शिक्षित करने के अपने मिशन को पूरा करने में लगा रहता है.
जी हाँ,इस किशोर का नाम है बाबर अली.कक्षा ११ का छात्र बाबर अली पश्चिम बंगाल के बरहामपुर जिले का है.२ जनवरी ०९ के टाइम्स अफ इंडिया(लखनऊ संस्करण) में इस बच्चे के बारे में पढ़कर उसके बारे में सोचने और लिखने को मजबूर हो गया.
कक्षाएं खत्म होने के बाद जब बाबर के सारे दोस्त खेलने कूदने,घूमने, टी.वी. देखने में व्यस्त हो जाते हैं तो वह अपने घर के आँगन में छोटे छोटे बच्चों को पढ़ता है.वह भी एक दो को नहीं लगभग ६०० बच्चों को. यानी की एक पूरा स्कूल वह अकेले चलाता है.इन बच्चों को वह ३-४ शिफ्ट(पारियों) में अलग अलग समय पर बुला कर पढाता है.
शिक्षा का अपना यह मिशन बाबर ने ११ साल की उम्र में ही शुरू कर दिया था.कुछ ऐसे अभिभावकों की दशा देख कर जो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते थे बाबर का मन द्रवित हो उठा.उसने उनके बच्चों को ख़ुद पढाने का निर्णय लिया.शुरू में तो कम ही बच्चे आए.पर धीरे धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने के साथ ही उसका कारवां बढ़ता गया.और आज तो उसके छात्रों की संख्या ६०० से भी ऊपर पहुँच गयी है.
बाबर के छात्र आस पास के गावों से आने वाले बच्चे हैं.कुछ तो ४-५ किलोमीटर दूर के गावों से पैदल चल कर उसके पास पढ़ने आते हैं.इससे भी ज्यादा ताज्जुब तो मुझे ये पढ़ कर भी हुआ की पढ़ाई के आलावा इन बच्चों को बाबर हर महीने के अंत में चावल भी बांटता है.बाबर ने ख़ुद कहा की जब हाजिरी तेजी से घटने लगी तो मेरे दिमाग में बच्चों को चावल बाँटने का आइडिया आया.
बाबर के सामने दिक्कत ये भी थी की स्कूल को जब तक मान्यता नहीं मिलेगी उसे बच्चों को बांटने के लिए सरकारी चावल मुफ्त नहीं मिल सकता था.लेकिन बाबर ने अख़बार को यह भी बताया है की सम्बंधित विभाग के सरकारी कर्मचारियों ने उसकी सहायता की और बच्चों को चावल दिया जाने लगा.
बाबर अली का सपना है की उसका स्कूल पूरे प्रदेश और देश में फैले. ऐसी सभी जगहों पर,बस्तियों में जहाँ के बच्चे स्कूल तो जाना चाहते हैं पर आर्थिक तंगी से जा नहीं पा रहे हैं,उसके स्कूल की शाखाएं खुलें.पर अभी वह सिर्फ़ यह चाहता है की कम से कम उसके छात्रों के लिए कक्षाओं (कमरों) का इंतजाम हो जाय.
अब जरा सोचिये एक तरफ़ हमारी केन्द्र,प्रदेश की सरकारें सबको शिक्षित करने के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर रही हैं,दूसरी और बाबर जैसा होनहार किशोर है जो अकेले दम पर यह हिम्मत जुता सका.ऐसे में बाबर का योगदान महत्त्वपूर्ण मन जाएगा या सरकार का?
बाबर के ऊपर हमको,आपको ,सभी को गर्व होना चाहिए.अगर आज हमारे देश में हर किशोर के अन्दर बाबर जैसा ही जज्बा,जोश पैदा हो जाय तो मुझे नहीं लगता की हमारे देश में कोई बच्चा,बूढा,प्रौढ़ निरक्षर रहेगा.बाबर अली का यह स्कूल लगातार आगे…और आगे बढ़ता रहे.उसका सभी गरीब बच्चों को शिक्षित करने का सपना पूरा हो.ये शुभकामना हम सभी को देनी चाहिए.
हेमंत कुमार
इस उम्र के ज्यादातर बच्चे स्कूल के बाद अपना समय खेलकूद,टी.वी.कंप्युटर पर बिताते हैं.लेकिन मैं आपको जिस किशोर के बारे में बता रहा हूँ,वह इन सबसे एकदम अलग है.अलग इस तरह से की जब उसके हमउम्र बच्चे मैदान में,पार्क में,खेलते रहते हैं या टी.वी. पर कोई सीरियल,फ़िल्म कार्टून देखते रहते हैं.उस समय वह छोटे बच्चों को पढाने,शिक्षित करने के अपने मिशन को पूरा करने में लगा रहता है.
जी हाँ,इस किशोर का नाम है बाबर अली.कक्षा ११ का छात्र बाबर अली पश्चिम बंगाल के बरहामपुर जिले का है.२ जनवरी ०९ के टाइम्स अफ इंडिया(लखनऊ संस्करण) में इस बच्चे के बारे में पढ़कर उसके बारे में सोचने और लिखने को मजबूर हो गया.
कक्षाएं खत्म होने के बाद जब बाबर के सारे दोस्त खेलने कूदने,घूमने, टी.वी. देखने में व्यस्त हो जाते हैं तो वह अपने घर के आँगन में छोटे छोटे बच्चों को पढ़ता है.वह भी एक दो को नहीं लगभग ६०० बच्चों को. यानी की एक पूरा स्कूल वह अकेले चलाता है.इन बच्चों को वह ३-४ शिफ्ट(पारियों) में अलग अलग समय पर बुला कर पढाता है.
शिक्षा का अपना यह मिशन बाबर ने ११ साल की उम्र में ही शुरू कर दिया था.कुछ ऐसे अभिभावकों की दशा देख कर जो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते थे बाबर का मन द्रवित हो उठा.उसने उनके बच्चों को ख़ुद पढाने का निर्णय लिया.शुरू में तो कम ही बच्चे आए.पर धीरे धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने के साथ ही उसका कारवां बढ़ता गया.और आज तो उसके छात्रों की संख्या ६०० से भी ऊपर पहुँच गयी है.
बाबर के छात्र आस पास के गावों से आने वाले बच्चे हैं.कुछ तो ४-५ किलोमीटर दूर के गावों से पैदल चल कर उसके पास पढ़ने आते हैं.इससे भी ज्यादा ताज्जुब तो मुझे ये पढ़ कर भी हुआ की पढ़ाई के आलावा इन बच्चों को बाबर हर महीने के अंत में चावल भी बांटता है.बाबर ने ख़ुद कहा की जब हाजिरी तेजी से घटने लगी तो मेरे दिमाग में बच्चों को चावल बाँटने का आइडिया आया.
बाबर के सामने दिक्कत ये भी थी की स्कूल को जब तक मान्यता नहीं मिलेगी उसे बच्चों को बांटने के लिए सरकारी चावल मुफ्त नहीं मिल सकता था.लेकिन बाबर ने अख़बार को यह भी बताया है की सम्बंधित विभाग के सरकारी कर्मचारियों ने उसकी सहायता की और बच्चों को चावल दिया जाने लगा.
बाबर अली का सपना है की उसका स्कूल पूरे प्रदेश और देश में फैले. ऐसी सभी जगहों पर,बस्तियों में जहाँ के बच्चे स्कूल तो जाना चाहते हैं पर आर्थिक तंगी से जा नहीं पा रहे हैं,उसके स्कूल की शाखाएं खुलें.पर अभी वह सिर्फ़ यह चाहता है की कम से कम उसके छात्रों के लिए कक्षाओं (कमरों) का इंतजाम हो जाय.
अब जरा सोचिये एक तरफ़ हमारी केन्द्र,प्रदेश की सरकारें सबको शिक्षित करने के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर रही हैं,दूसरी और बाबर जैसा होनहार किशोर है जो अकेले दम पर यह हिम्मत जुता सका.ऐसे में बाबर का योगदान महत्त्वपूर्ण मन जाएगा या सरकार का?
बाबर के ऊपर हमको,आपको ,सभी को गर्व होना चाहिए.अगर आज हमारे देश में हर किशोर के अन्दर बाबर जैसा ही जज्बा,जोश पैदा हो जाय तो मुझे नहीं लगता की हमारे देश में कोई बच्चा,बूढा,प्रौढ़ निरक्षर रहेगा.बाबर अली का यह स्कूल लगातार आगे…और आगे बढ़ता रहे.उसका सभी गरीब बच्चों को शिक्षित करने का सपना पूरा हो.ये शुभकामना हम सभी को देनी चाहिए.
हेमंत कुमार