सूनापन
शुक्रवार, 30 जनवरी 2009
माझी तू गीत छेड़ आज एक ऐसा
नदियों के सूने तट गूँज उठें फ़िर से।
पनघट पर छाया ये सूनापन कैसा
विरहन की आँखों में सपनों के जैसा
खेतों खलिहानों में रीतापन कैसा
विघटित संबंधों के ठंढेपन जैसा।
चुप हुई आज क्यों पायल की रुनझुन
पत्तों के बीच छिपे सुग्गों की सुनगुन
चौरे के नीम तले कैसी ये सिहरन
चौपालों में आज नहीं कोई है धड़कन।
पसरे सन्नाटे में भवरों की गुनगुन
कोयल की कूक से तड़प उठा उपवन
विचलित मन भटके यूँ चिटका सा दर्पण
कब तक संजोयेगा यादों की कतरन।
माझी तू गीत छेड़ आज एक ऐसा
नदियों के सूने तट गूँज उठें फ़िर से।
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हेमंत कुमार
नदियों के सूने तट गूँज उठें फ़िर से।
पनघट पर छाया ये सूनापन कैसा
विरहन की आँखों में सपनों के जैसा
खेतों खलिहानों में रीतापन कैसा
विघटित संबंधों के ठंढेपन जैसा।
चुप हुई आज क्यों पायल की रुनझुन
पत्तों के बीच छिपे सुग्गों की सुनगुन
चौरे के नीम तले कैसी ये सिहरन
चौपालों में आज नहीं कोई है धड़कन।
पसरे सन्नाटे में भवरों की गुनगुन
कोयल की कूक से तड़प उठा उपवन
विचलित मन भटके यूँ चिटका सा दर्पण
कब तक संजोयेगा यादों की कतरन।
माझी तू गीत छेड़ आज एक ऐसा
नदियों के सूने तट गूँज उठें फ़िर से।
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हेमंत कुमार