रंगबाजी करते करते ---- रंगों की अद्भुत अनंत यात्रा पर चला गया मेरा दोस्त राजीव मिश्रा
बुधवार, 28 मई 2025
रंगबाजी करते करते ---- रंगों की अद्भुत अनंत यात्रा पर चला गया मेरा दोस्त राजीव मिश्रा
पंडित राजीव मिश्र ---जिन्हें मैं प्यार से पंडिज्जी कहता था।बहुत नामचीन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के रंगबाज।जब देखो तब रंग बाजी—सुबह—दोपहर-शाम रंगबाजी हम उनको बहुत समझाते कि भैया हर वक्त की रंगबाजी अच्छी नहीं तो बोलते कुछ नहीं मुस्कुरा भर देते। पर उनकी वही कातिलाना मुस्कराहट ही तो बड़ी बड़ी लैलाओं को घायल कर देती थी और बड़े से बड़े मजनूं उनके मुरीद हो जाते ।आखिर उन्होंने इश्क भी किया था रंगों से और जिन्दगी भर रंगबाजी करने की कसम खाई थी।
राजीव से मेरी मुलाक़ात एजूकेशनल टी वी में आने के बाद हुई।और ऐसी हुई कि सुबह दोपहर शाम रात की दोस्ती।उनकी हर पेंटिंग एक्जीबिशन देखता, कभी कभी समीक्षा भी लिखता।और वो मेरी कहानियों,कविताओं,लेखों की धज्जियाँ उड़ाते । दोपहर में निशातगंज की तीसरी गली में राकेश की चाय की दूकान पर अड्डेबाजी होती।चाय पीते वक्त खूब बहस मुबाहिसा होता ,झगड़े होते कभी कभी झगड़े इतने बढ़ते कि बोलचाल बंद हो जाती।पर दो दिन बाद फिर वो मुस्कुराते हुए आते और कहते – “भाई डाक्टर साहब ये मेहरारू की तरह काहे रूठे हो –चलो हजरतगंज में बढ़िया लस्सी पिला कर लाते हैं---।”और मैं स्कूटर उठाकर चल पड़ता उनके साथ हजरत गंज लस्सी पीने ।
एक बार का वाकया बताएं — हम लोग चाय पीने निशातगंज गये थे।दोपहर का वक्त गरमी के कारण सड़कों पर सन्नाटा।मैंने कहा यार ये तो मरघट हो गया है शहर। पँडित राजीव बोले गुलजार कर दूं अभी? मैंने कहा कर दो भैया। पंडित जी ने तपाक से एक जेब से एक फ़ुलस्केप कागज निकाला –इंक पेन निकाली और चाय वाले को बोले कुर्सी पर बैठ जाओ।वो उनकी शकल देखने लगा। और पंडित जी चालू हो गए एक किताब पर कागज रख कर उसका लाइव पोर्ट्रेट बनाने में।मैं देखने लगा।चाय के सारे ग्राहक देखने लेगे उनका काम।थोड़ी देर में साइकिल,रिक्शा और पैदल वाले भीड़ लगा लिए। अन्ततःट्राफ़िक जाम—मच गयी पों—पों—टीं—टीं। और निशतगंज पुलिस चौकी से दीवान जी दौड़े आए।क्या मामला—भीड़ काहे की—देखा यहां तो पंडितजी की रंगबाजी चल रही।कुछ बोले नहीं बेचारे—पहले डंडा फ़टकारा भीड़ हटाई—फ़िर संकोच से बोले साहब एक मेरा भी पोर्ट्रेट बना दें ड़राइंग रूम की शोभा बढ़ेगी।----तो ये तो एक छोटा सा नमूना पेश किया मैंने पंडित राजीव मिश्र की रंगबाजी का।
राजीव जी एक प्रतिष्ठित चित्रकार,संगीतकार,मूर्तिकार होने के साथ ही एक बेहतरीन इन्सान भी थे।चित्रकारी की हर विधा में उनकी अच्छी पकड़ थी। जिसको कहते हैं साधना ---उन्होंने पेण्टिंग के हर माध्यम—वाश,एक्रेलिक,क्रेयान्स,पेन इंक,कलर पेंसिल,डाट पेन,आयल कलर से हजारों की संख्या में पेंटिंग्स बनाई हैं।राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पेण्टिंग की प्रदर्शनियां हुई हैं।उनकी पेंटिंग्स की सीरीज में वाश शैली में ही “हार्स”(घोड़े),”चांद”, ”क्लाउड्स”(बादल) की कई सीरीज के साथ ब्लैक डाट पेन से बनी “न्यूड्स”,“मूड्स”, “फेसेज” जैसी सीरिज बहुत सराही गई हैं ।मेरा सौभाग्य कि मुझे राजीव मिश्रा जी की कई सीरीज की फोटोग्राफी करने का सौभाग्य मिला है ।बहुत कम लोग जानते होंगे कि राजीव एक अच्छे मूर्तिकार भी थे।उन्होंने बहुत सी मूर्तियाँ भी बनाई थीं।हालांकि वो सभी कच्ची मिटटी की ही थीं और उन्हें पकाने,रंगने का समय उन्हें नहीं मिल सका।
राजीव ने मेरी कुछ किताबों के साथ ही कई अन्य लेखकों की किताबों का कवर बनाया।प्रसिद्ध साहित्यकार शैलेन्द्र सागर के सम्पादन में लखनऊ से निकलने वाली प्रसिद्ध कथा त्रैमासिक “कथाक्रम” के कई अंकों के कवर राजीव ने बनाए थे।कई अंकों के अन्दर के चित्र भी राजीव ने बनाए।कथाक्रम के वार्षिक आयोजन से वो बहुत गहराई से जुड़े थे।
मेरे साथ तो उनका दिन रात का साथ था।शहर के तमाम साहित्यिक ,सांस्कृतिक आयोजनों में हम साथ ही जाते थे।एक दूसरे के सुख दुःख में हर वक्त साथ खड़े रहते।साहित्यिक ,सांस्कृतिक ,कलात्मक आयोजनों के अलावा रोज दोपहर में चाय पीना,अच्छे फलों की तलाश में निशातगंज की फल मंडी में भटकना,सर्दियों में कभी कभी गाजर चुकंदर का जूस पीने पैदल ही हजरतगंज में लीला टाकिज के सामने वाले जूस कार्नर पहुंच जाना,पूडियां खाने कभी बाजपेयी या कभी और आगे अमीनाबाद पहुंच जाना ---हम लोगों की घुमक्कड़ी का अंदाज था।साथ में कला,साहित्य ,संस्कृति पर चर्चा होना तो इस घुमक्कड़ी का एक जरूरी हिस्सा होता था।
बहुत सारी यादें,बहुत सारे किस्से हैं राजीव के साथ बिताए पलों के।सब जेहन में कुलबुला रहे बाहर आने को।–समय समय पर राजीव मिश्रा की यादों के किस्सों को कलमबद्ध भी करता रहूँगा।पर फिलवक्त तो मन बहुत दुखी है ----कि अब राजीव मिश्रा की रंगबाजी नहीं देख पाऊँगा कभी ।क्योंकि राजीव मिश्रा तो रंगबाजी करते करते --- प्रकृति द्वारा बनाई गई रंगों और कैनवास की एक खूबसूरत दुनिया की अनंत यात्रा पर निकल गए कभी वापस न आने के लिए।
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डा०हेमन्त कुमार
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