वह सांवली लड़की
रविवार, 4 दिसंबर 2011
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(चित्र साभार--युनिसेफ़) |
याद आती है अक्सर मुझे
मेरे मोहल्ले की वह साँवली-सी लड़की।
तंग कोठरी में बंद
जिसकी उदास आँखों में
सारा आकाश होता था
मगर सपनों का कहीं कोई रेश नहीं...
न जाने क्यों अनकहे ही मुझे
उसकी चुप्पी सुनाई देती थी बहुत बार।
...जब वह गूंगी आँखों से,
संवाद करती थी हवा और धूप से
और अनायास ठिठक कर,
आकाश में उड़ती किसी पतंग को,
निर्निमेष ताकने लगती थी...
तब पर तोलती-सी लगती थीं उसकी पलकें...
ऐसे में मुझे प्रतीत होता था
उसके सारे रूमानी शब्द भीग गए हैं
उसी के अंदर बहती किसी नमकीन नदी में...।
इच्छा के किसी तरल-से क्षण में
मेरा मन करता था
आकाश के नील में हथेली डुबोकर
उसका फीका-सा जीवन रंग दूँ और-छोर
और मुस्कान की एक सुनहरी तितली
उसके उदास होंठों पर रख दूँ
न जाने कितनी बार उसके लिए
इन्द्रधनुष तोड़ लाया था
आषाढ की नीली संध्या से
मगर कभी उसे दे न सका।
जेब में लिए फिरता रहा
उस क्षण की प्रतीक्षा में
जब वह मेरी तरफ देखेगी
तब मैं थमाऊँगा उसे
वे मुस्कराहट, गीत और स्वप्न
जो अपने हिस्से से उसके लिए,
अब तक बचा रक्खे थे।
मगर ऐसा हो न सका
वह अपने अँधेरे से निकलकर
जिंदगी पर अपना हक़ जताने कभी आ न सकी
और एक दिन ना मालूम खो गयी
अपने सूनेपन में
आहों और आंसुओं की विरासत लिए
ठीक जैसे हमारी लड़कियां
खो जाती है अक्सर
बचपन के आँगन से
ससुराल की जलती अंगीठी में
या फिर अपनी माँ की कोख से...
याद आती है अक्सर मुझे...।
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कवियत्री—जयश्री राय
जयश्री राय हिन्दी की चर्चित कहानीकार हैं।गोवा युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन।हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां,कविताएं प्रकाशित।एक कहानी संग्रह एवम एक कविता संग्रह प्रकाशित एवम तीन पुस्तकें प्रकाशनाधीन।कुछ समय तक अध्यापन कार्य।सम्प्रति स्वतन्त्र लेखन।