तलाश एक द्रोण की
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
मैं जानता हूं कि आज
द्रोण मर चुका है
फ़िर भी मुझे
रहती है तलाश/हर चेहरे में एक द्रोण की।
मैं तलाशता हूं उसे
सुबह से शाम तक
शाम से रात तक
दोपहर की चिलचिलाती धूप में
बरसात के थपेड़ों के बीच
कि शायद कहीं वह----।
मैं उसे तलाश करता हूं
विद्या मन्दिरों के विध्वंसित होते
खंडहरों के बीच
शिक्षालयों की टुटपुंजिया और
लिजलिजी राजनीति के बीच
दिग्भ्रमित एकलव्यों के एक लम्बे
हुजूम के बीच
कि शायद कहीं वह----।
मेरी जिन्दगी की हर शाम
उस द्रोण की तलाश में
काफ़ी हाउस के शोर में
चौराहों के नुक्क्ड़ नाटकों के बीच
बन्द कमरों की गोष्ठियों में
एक शब्दवेधी सन्नाटे के मानिन्द
सरक जाती है
और रात गहरी होने के साथ
मेरे और द्रोण के बीच का
यह शब्दवेधी सन्नाटा
और घना होता जाता है।
मेरे और द्रोण के बीच
बचे हुये सम्पर्क की एक
पतली डोर भी
मेट्रो बार के शोर में
जामों की टकराहट और
सिगरेट के धुयें के बीच
खामोश हो कर
निरन्तर लम्बी होती चली जाती है
और मैं फ़िर अकेला निकल पड़ता हूं
अंधेरी सड़क पर
एक द्रोण की तलाश में।
********
हेमन्त कुमार
द्रोण मर चुका है
फ़िर भी मुझे
रहती है तलाश/हर चेहरे में एक द्रोण की।
मैं तलाशता हूं उसे
सुबह से शाम तक
शाम से रात तक
दोपहर की चिलचिलाती धूप में
बरसात के थपेड़ों के बीच
कि शायद कहीं वह----।
मैं उसे तलाश करता हूं
विद्या मन्दिरों के विध्वंसित होते
खंडहरों के बीच
शिक्षालयों की टुटपुंजिया और
लिजलिजी राजनीति के बीच
दिग्भ्रमित एकलव्यों के एक लम्बे
हुजूम के बीच
कि शायद कहीं वह----।
मेरी जिन्दगी की हर शाम
उस द्रोण की तलाश में
काफ़ी हाउस के शोर में
चौराहों के नुक्क्ड़ नाटकों के बीच
बन्द कमरों की गोष्ठियों में
एक शब्दवेधी सन्नाटे के मानिन्द
सरक जाती है
और रात गहरी होने के साथ
मेरे और द्रोण के बीच का
यह शब्दवेधी सन्नाटा
और घना होता जाता है।
मेरे और द्रोण के बीच
बचे हुये सम्पर्क की एक
पतली डोर भी
मेट्रो बार के शोर में
जामों की टकराहट और
सिगरेट के धुयें के बीच
खामोश हो कर
निरन्तर लम्बी होती चली जाती है
और मैं फ़िर अकेला निकल पड़ता हूं
अंधेरी सड़क पर
एक द्रोण की तलाश में।
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हेमन्त कुमार