तितलियां
गुरुवार, 19 जून 2014
बड़े सबेरे
आंख खुलते ही
मेरे कमरे की
खिड़की से बाहर दिखने
लगता है नन्हीं नन्हीं
कोमल पंखों वाली
रंग बिरंगी तितलियों का
हुजूम।
नीले पीले हरे लाल रंगों
वाले युनिफ़ार्म
कन्धों पर टंगे कुछ हल्के
कुछ भारी थैलों में बन्द
उंची उड़ान भरने के सपने
आंखों में फ़ूलों की
रंगीन घाटियों की तलाश
चेहरों पर कुछ कर गुजरने की तमन्ना
और अटूट आत्मविश्वास भी
बढ़ाता है इन कोमल तितलियों
का सौन्दर्य।
सुबह की नर्म धूप के
फ़ाहों के बीच से
देखते हुये इन नन्हीं सुंदर
तितलियों को
मन में पैठ जाता है एक
डर अनजाना सा
कभी कभी
कहीं कोई गिरगिट बिसखोपड़ों
या फ़िर शिकारी पक्षियों का
निरंकुश झुंड घात न लगाये हो
इन मासूम कोमल तितलियों के लिये।
उनके सारे कोमल
सुन्दर प्यारे सपनों और भावनाओं
दूर असीमित नीले आकाश में
उड़ने की तमन्ना को
कुचल देने को आतुर
तीक्ष्ण पैनी खुरदुरी
लपलपाती जीभ
लाल जलती हुयी आंखों वाले
खतरनाक
बिसखोपड़ों और गिरगिटों का झुंड।
पर इन तितलियों की
आंखों में चस्पा
एक पूर्ण आत्मविश्वास की झलक
मात्र करती है आश्वस्त
कि
अब पैने कर लिये हैं
इन मासूमों ने भी
अपने नन्हें कोमल पैरों को
और जहरीले पौधों से उधार लेकर
अपने रंगीन पंखों को
बना लिया है जहरीला और तीक्ष्ण
जिनका स्पर्श मात्र
कर देगा नेस्तनाबूद
इन खतरनाक
जीभ लपलपाते गिरगिटों के झुंड को।
इसी लिये
सिर्फ़ इसी लिये तो
अपनी बालकनी में शान्त बैठा हुआ मैं
इन कोमल तितलियों की ऊंची उड़ान
को निहार रहा अपलक अपलक ।
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डा हेमन्त कुमार