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पारिवारिक रिश्तों के बुनावट की कहानियां “एक तलाश अधूरी सी ” ।

बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

 

पुस्तक समीक्षा

पारिवारिक रिश्तों के बुनावट की कहानियां “एक तलाश अधूरी सी ”

          



                   

                    

                   पुस्तक : एक तलाश अधूरी सी



(कहानी संग्रह)



लेखिका :डा०कविता श्रीवास्तव



प्रकाशक :न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन



सी-515,बुद्ध नगर,इन्द्रपुरी



नई दिल्ली-110012

                



डा०कविता श्रीवास्तव का यह प्रिंट रूप में पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है।वैसे तो वो पिछले लगभग चार दशकों से आकाशवाणी इलाहाबाद के विभिन्न कार्यक्रमों के लिए कहानियां लिख रही हैं।लेकिन उन्होंने अभी तक इन कहानियों को कभी प्रकाशित करवाने का प्रयास नहीं किया था।परिवार के सदस्यों के द्वारा काफी कहने पर उन्होंने ये कहानियां संकलन के लिए दिया ।कारण जो भी रहा हो अब उनका यह संग्रह आ चुका है और उसका साहित्य जगत में स्वागत होना ही चाहिए।

    


बताता चलूं कि कविता श्रीवास्तव मूल रूप से गणितज्ञ हैं और उन्होंने इलाहाबाद के कुलाभास्कर डिग्री कालेज में लगभग तीन दशक तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात सेवानिवृत्त हुई हैं।

  


“एक तलाश अधूरी सी” कहानी संग्रह में डा०कविता श्रीवास्तव की कुल 15कहानियां संकलित हैं।“विडम्बना”,“एक अनकहा दर्द”,“अपराध बोध”,“एक तलाश अधूरी सी”,“हौसलों के पंख”,“तमाशा”,“अस्तित्व”,“क्यों नहीं बजता अब कोई फोन”,“नीड़”,“दर्द से सुकून तक”,“कैनवास जिन्दगी का”,“एक मुट्ठी धूप”, “दूरियां-नजदीकियां”,“एक नई इबारत”,“फैसला” ।



इन कहानियों का सम्यक रूप से विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि डा०कविता श्रीवास्तव मुख्य रूप से पारिवारिक रिश्तों,रिश्तों में आ रही दरारों,रिश्तों में समाप्त होती जा रही गर्माहट,सामजिक और मानवीय मूल्यों के विघटन की कथाकार हैं।इन्होंने अपने कहानी संग्रह की शुरुआत में ही “अपनी बात” में लिखा भी है –“कहानियां,जैसा मैं समझती हूं हमारी-आपकी,इनकी-उनकी जिन्दगी के अलग-अलग रंगों का अंकन होती हैं।ये कहीं अलग से नहीं आती । ये तो हमारे आपके बीच से ही पनपती हैं ।सच तो यह है कि हर व्यक्ति अपने आप में जाने कितनी कहानियां समेटे होता है ।इन्हें हम देखते हैं,सुनते हैं,समझते हैं और साझा भी करते हैं ।इसी प्रक्रिया में जब कोई इन्हें महसूस करके,यथार्थ और कल्पना के धागों में पिरो,भावनाओं-संवेदनाओं के रंगों से सजाकर कलमबद्ध करता है,तो जन्म होता है एक कहानी का ।”(एक तलाश अधूरी सी -पृष्ठ-7)

    


वैसे तो इनके इस संग्रह में सभी कहानियां बेहतरीन और पठनीय हैं जो पाठकों से संवाद करती हुई चलती हैं ।लेकिन कुछ कहानियों का उल्लेख यहां विशेष रूप से किया जाना जरूरी है जिससे इस कहानी संग्रह की तासीर या कहें रुख का पता चल सकता है ।



संग्रह की पहली ही कहानी “विडम्बना”की बात अगर हम करें तो उसमें दो वर्गों का प्रतिनिधित्व हमें दिखाई देता है ।एक निचले तबके का और दूसरा मध्य वर्ग का ।निचले तबके का प्रतिनिधित्व  बढ़ई बिरजू कर रहा और मध्य वर्ग का एक कार वाला परिवार ।दोनों ही वर्गों के परिवारों की अपनी मजबूरियां हैं ।दोनों परिवार के पिताओं की अपनी जरूरत है,जिसके इर्द-गिर्द इस कहानी का ताना बाना बुना गया है ।बढ़ई बिरजू गाँव घर छोड़ कर शहर में अपने हुनर से कुछ पैसा कमा कर परिवार का पेट पालने आया है ।उसकी झोपड़ी के सामने एक दिन एक चमचमाती कार रूकती है और उसका मालिक आकर उसके पास में ही खेल रहे छोटे बच्चे की तीन पहिये वाली लकड़ी की गाड़ी का दाम पूछता है । बिरजू उससे कहता भी है कि यह गाडी तो बहुत पुरानी है वह उनके लिए दूसरी नई गाड़ी बना देगा।लेकिन वो व्यक्ति उसी समय वही गाड़ी लेना चाहता था । बिरजू उसका दाम तीन सौ कहता है तो वह व्यक्ति तुरंत उसके हाथ पर तीन सौ रुपये रख देता है ।लेकिन उसका छोटा बच्चा गाड़ी न देने की जिद पकड़ लेता है ।उधर जब उस व्यक्ति से पता चलता है कि उसका बेटा चार साल का हो चुका है और किसी बीमारी के कारण अभी भी वो खड़ा भी नहीं हो सकता । तो बिरजू अपने रो रहे बच्चे से गाड़ी छीन कर उसे पकड़ा देता है और वो लोग चले जाते हैं ।

     


मात्र इतनी छोटी सी घटना को लेकर लेखिका ने जितनी खूबसूरती से इस कहानी का ताना बाना बुना है वह काबिले तारीफ़ है ।दोनों पिताओं की अपनी मजबूरियां हैं ।मध्यवर्गीय (कार वाले )पिता की मजबूरी कि उसका बेटा किसी तरह गाड़ी के सहारे खडा होकर चलने लगे ।उसकी विडम्बना ये है कि इतना धन दौलत पास में होने के बावजूद उसका बच्चा चल नहीं सकता ।वहीं दूसरी तरफ बिरजू की मजबूरी यह कि उसने सिर्फ कुछ रुपयों के लालच में अपने प्यारे बेटे की प्यारी गाड़ी बेच दी ।

     


इसी संकलन की दूसरी कहानी है “अपराध बोध” ।इस कहानी में एक परिवार में वृद्ध व्यक्ति के अकेलेपन और उसके नौकरी पेशा बेटे से उसके वैचारिक और मानसिक अंतर्विरोधों को बखूबी दर्शाया गया है ।वृद्ध केशव प्रसाद वर्मा की पत्नी का निधन हो चुका है और वो दूसरे शहर में नौकरी करने वाले अपने बेटे के परिवार के साथ रहने लगते हैं ।सर्दियों के दिन में किसी दिन बिस्तर पर बैठे बैठे चाय पीते समय उनके हाथों से चाय बिस्तर पर गिर जाती है ।इस पर उनका बेटा उन्हें ताने देता है और खरी खोटी सुना देता है । यद्यपि उसकी पत्नी और बच्चे उसे आफिस भेज कर बिस्तर सुखा देते हैं लेकिन केशव वर्मा जी के अंदर यह घटना एक अपराध बोध बन कर ठहर सी जाती है ।



वृद्ध केशव वर्मा की मानसिक पीड़ा और उदासी को लेखिका ने बहुत खूबसूरती के साथ इन शब्दों में व्यक्त किया है—“चाय पीते प्रकट में सहज दिख रहे बाबू जी का मन उदास था ।यह पहली बार था कि बाबू जी यहां बेटे के घर आए थे और पत्नी साथ नहीं थी ।यहां क्या उनकी पत्नी का साथ हमेशा हमेशा के लिए छूट गया था ।-----सो अब उनका साथ न होना पल-पल ही सता रहा था बाबू जी को ।”(पृष्ठ-24)

     


वृद्ध केशव प्रसाद की पीड़ा,अकेलेपन और पत्नी से बिछुड़ जाने के दर्द को लेखिका ने इन शब्दों में व्यक्त किया है—“धूप अच्छी निकल आई थी ।पर उनके संतप्त मन को यह गुनगुनी धूप भी सुकून न दे सकी ।बार-बार आंखें भर आ रही थीं ।याद आ रहा था अपना घर ।पत्नी की बहुत-बहुत याद आ रही थी --- ।”(पृष्ठ-27)

   


यह दरअसल एक अकेले केशव प्रसाद वर्मा की ही कहानी नहीं है ।उस पात्र के माध्यम से लेखिका ने हमारे समाज के लाखों ,करोड़ों परिवारों में रहने वाले एकाकी अथवा पत्नी के साथ रह रहे बुजुर्गों की पीड़ा,मानसिक अवसाद और संत्रास को अभिव्यक्ति दी है ।

 


इसी तरह यहां मैं लेखिका की एक और कहानी का उल्लेख करना चाहूँगा । जिसमें दिखाया गया है कि आज भौतिकता की अंधी दौड़ में कोई व्यक्ति किस हद तक गिर सकता है ।इस कहानी का शीर्षक है “अस्तित्व” ।कहानी एक पति रजत और पत्नी हेमा की है ।रजत एक बेहद महत्वाकांक्षी व्यक्ति है।पैसा, नौकरी,नौकरी में प्रमोशन की उसके अन्दर इतनी बड़ी महत्वाकांक्षा है कि वह एक दिन अपने बॉस को घर पर डिनर के लिए बुलाता है और अपनी पत्नी हेमा को अपने बॉस के सामने परोसने की कोशिश करता है ।अब मानवीय रिश्तों और मानवीय मूल्यों का इससे बड़ा पतन ,यथार्थ और क्या हो सकता है कि एक पति अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने अधिकारी से अपनी पत्नी को शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए मजबूर करने की कोशिश करता है ।मजबूर पत्नी के सारे दर्द और फ्रस्ट्रेशन को लेखिका ने कहानी के अंत में कुछ इस प्रकार दर्ज किया है--- “रजत ने उसे झिंझोड़ा तो झटक दिया उसने रजत का हाथ ।---शेरनी सी बिफर पड़ी वह –हाथ मत लगाना मुझे तुम । शर्म आ  रही है कि तुम मेरे पति हो ।मेरे रक्षक।सौदा कर डाला तुमने मेरा । धिक्कार है तुम्हें ---”कहती हुई हेमा रो पड़ी ।उसकी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी ।इन आंसुओं में दर्द था,पीड़ा थी,अथाह व्यथा थी ।पर इन्हीं आंसुओं में जन्म ले रही थी उसके अंतर में सोई पड़ी वह शक्ति जो उसे अपने अस्तित्व को चुनौती देने वाले हर प्रहार को परास्त करने का हौसला दे रही थी ।”(पृष्ठ-51)

    


जैसा मैंने ऊपर शुरू में ही कहा है कि डा० कविता श्रीवास्तव मुख्य रूप से पारिवारिक रिश्तों,रिश्तों में आ रही खटास ,परिवारों में दरक रहे रिश्तों की रचनाकार हैं ।उनकी हर कहानी हमारे सामने परिवार और उसके विघटन,रिश्तों की दरारों को जिस खूबसूरती के साथ पेश करती है वह अद्भुत है ।हर कहानी अपने में एक अलग ढंग से पारिवारिक रिश्तों के इस विघटन को रेखांकित करती है ।इस दृष्टि से इनकी हर कहानी बेजोड़ है ।

   


जहां तक भाषा और शैली का प्रश्न है।इन कहानियों की भाषा इतनी सरल, सहज और प्रवाहमय है,साथ ही हर कहानी की बुनावट और कहन का ढंग इतना अद्भुत है जो निश्चित ही पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित करेगा और उन्हें बाँध कर रखेगा ।

   


एक बात अवश्य मैं जो कविता श्रीवास्तव का पहला कहानी संग्रह होने के नाते -- उन्हें एक सलाह के तौर पर देना चाहूँगा -- वो यह कि परिवार और रिश्तों के विघटन के साथ ही हमारे समाज में और भी बहुत कुछ घटित हो रहा है –मसलन—विश्वविद्यालयों की राजनीति,अध्यापकों की खेमेबाजी,देश की दलगत राजनीति और वर्त्तमान राजनीतिज्ञों के चेहरों पर लगे तरह तरह के मुखौटे ...एक नहीं अनेकों तरह के—धार्मिक,राजनैतिक,सामाजिक ।भ्रष्टाचार में लिप्त अदृश्य मुखौटे भी---या ऐसे ही और भी बहुत से विषय हो सकते हैं कहानियों के ।इन विषयों पर भी वो अपनी कलम चलाएं तो हिंदी कथा साहित्य को निश्चित रूप से वो एक नई दिशा प्रदान कर सकने में पूरी तरह सक्षम होंगी ।

                      


०००००



समीक्षक : हेमन्त कुमार



लेखिका :डा० कविता श्रीवास्तव 



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लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अक्षत अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अपराध अपराध कथा अभिनव पाण्डेय अभिभावक अमित तिवारी अम्मा अरुणpriya अर्पण पाण्डेय अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कलाकार कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? 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