बच्चों को समझिये तो
सोमवार, 19 जनवरी 2009
हर बच्चा अपने आप में अनोखा होता है.उसके अन्दर सृजन की,कुछ बनाने,कुछ नया करने की असीम संभावनाएं छिपी होती हैं.किसी में गाने,किसी में अभिनाय तो किसी में लेखन या चित्र बनाने की.कोई खेलने में तो कोई पढ़ने में आगे .किसी बच्चे का मन चीजों को तोड़ फोड़ कर उन्हें नया आकार देने में लगता है.बस जरूरत होती है उनके अन्दर छिपी इस प्रतिभा को उभारने की.अक्सर हम यानी बड़े लोग यहीं पर गलती कर जाते हैं.हम उन्हें ठीक तरह से समझ नहीं पाते.और लादने लगते हैं उनके ऊपर अपने विचारों,अपनी सोचों,अपने अधूरे सपनों की पोटली.
भाई सीधी सी बात है जिस तरह हमारे हाथों की पांचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती,उसी तरह हर बच्चे की सीखने,करने या पढने की क्षमता बराबर नहीं हो सकती.यदि किसी बच्चे को गणित का कोई सवाल देर से समझ में आता है तो कोई उसे चुटकी बजाते हल कर देता है.इसका ये मतलब नहीं होता की देर में समझने वाला बच्चा फिसड्डी हो गया.ऐसे स्लो लर्नर या धीमे सीखने वाले बच्चों पर थोड़ा अलग से ध्यान दे कर उन्हें दूसरे बच्चों के बराबर लाया जा सकता है.
अभी कुछ ही दिनों पहले की घटना है.मैं अपने एक मित्र के साथ उनके एक बड़े अधिकारी के घर गया.अधिकारी महोदय ये जान कर की मैं बच्चों के लिए टी वी कार्यक्रम बनाता हूँ.मुझसे कहने लगे की मैं उनकी छोटी बेटी का कार्यक्रम अपने यहाँ करवा दूँ.मैंने कहा ठीक है करवा दूँगा.उन्होंने तुंरत बच्ची को बुलाया.और उससे कहा की बेटा वो अंकल को कजरारे कजरारे…..वाला गाना गा कर सुनाओ.उनकी बेटी रही होगी ६-७ साल की.पहली बार मेरे सामने आई थी.शर्माने लगी.उसने कहा पापा अभी नहीं गाउगी…..और घर के भीतर भाग गयी.अधिकारी महोदय ने उसे फ़िर बुलाया.बच्ची शर्म के मारे नहीं आई.अधिकारी महोदय घर के भीतर गए और बच्ची को पकड़ कर ले आए.उससे डांट कर बोले सुनाओ गाना.बच्ची थोड़ा डर गयी.मैंने उनसे कहा..भाई रहने दीजिये..फ़िर कभी सुना देगी गाना.मै इसका कार्यक्रम अपने यहाँ करवा दूँगा.
लेकिन अधिकारी महोदय कहाँ मानने वाले थे.कहने लगे देखिये ये गाना कैसे सुनायेगी.इसी बीच उनका बेटा चाय रख गया.अधिकारी महोदय ने स्केल उठा ली और अपनी छोटी सी बच्ची का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचा….लड़की डर कर चीखने लगी.मैं अधिकारी की मंशा भांप चुका था.मैंने फ़ौरन उनका हाथ कस कर पकड़ लिया.(ये भूल कर की वो मेरे मित्र के बास हैं)मैंने उनसे बस इतना कहा की सर अब मुझसे ज्यादा बर्दाश्त नहीं हो रहा है…मैं घर जा रहा हूँ.और मैं तुंरत वहां से चला आया.
आप लोगों को यकीन नहीं होगा की मैं उस रात भर सो नहीं सका.और बराबर यही सोचता रहा की क्या किसी अभिभावक की जिम्मेदारी सिर्फ़ बच्चे पैदा कर देना और उन्हें किसी तरह मार पीट कर परीक्षाएं पास करवा देना ही है?क्या हम उस बच्चे से भी कभी ये जानने की कोशिश करते हैं की वह क्या चाहता है?उसकी अपनी इच्छा क्या है?जब वह खेलना चाहता है तो हम उसे डांट मार कर पढ़ने बैठा देते हैं.जब वह कहानी पढ़ना चाहता है तो हम उससे जबरन गणित के सवाल हल करवाते हैं.वह अगर जमीन पर बैठ कर पढ़ना चाहता है तो हम उसे डांट कर कहेंगे कुर्सी पर बैठो.जब उसका मन पढने का होगा तो हम उसे हुक्म देंगे की जाओ मैदान में और बच्चों के साथ खेलो.यहाँ सीधा सा प्रश्न ये उठता है की क्या बच्चे की अपनी कोई इच्छा,भावना,सोच नहीं है?
हम जब भी बच्चों को कोई आदेश या हुक्म देते हैं तो उससे पहले बस एक…सिर्फ़ एक क्षण के लिए हमें ऑंखें बंद करके अपना बचपन याद कर लेना चाहिए.क्या हम बचपन में वो हरकतें नहीं करते थे जो अज हमारा बेटा या कक्षा का छात्र कर रहा है.मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ की इस प्रश्न का जवाब हाँ में ही मिलेगा.यानी की हम भी बचपन में चाहते थे की हम अपने काम अपने मन से करें.उसमें बड़ों की ज्यादा दखलंदाजी न हो .फ़िर क्यों हम थोपते हैं अपने विचार बच्चों पर?
बच्चों की आजादी की वकालत करने का मेरा मतलब ये कदापि नहीं है की आप उन्हें स्वतंत्र ,उन्मुक्त छोड़ दें.मेरा कहना ये है की पहले आप उसकी इच्छा अनिच्छा को ,उसके मनोभावों को तो समझिये.जब तक हम बच्चों के मनोभावों को ,उसके विचारों को,नहीं समझेंगे,उसकी रूचि को नहीं जानेंगे.हम एक अच्छे अभिभावक,अच्छे शिक्षक नहीं बन पाएंगे.न ही हम बच्चे को आगे बढ़ा पाएंगे,न ही उसके विकास में योगदान कर सकेंगे.हाँ अपने आदेशों, अपने विचारों को लगातार उसके ऊपर थोप कर उसके कोमल,रचनात्मक,क्रियाशील,संवेदनशील मन और उसके अन्दर छिपी असीम ऊर्जा,शक्ति को कुंठित जरूर करते रहेंगे.
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हेमंत कुमार
9 टिप्पणियाँ:
बहुत बड़ी सच्चाई है.......बहुत सही विषय
चयन !
एक कड़वी सच्चाई लिखी है आपने। ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों में अपने सपनों की तस्वीर देखना चाहते हैं। यही दुर्भाग्य है।
बहुत ही सार्थक आलेख है आगे भी ऐसे आलेख का इन्त्जार रहेगा बधाई
अच्छा लेख है, मेरी एक बेटी है २ साल की ..... मैंने बच्चो के विषय पर पहली मर्तबा पढ़ा......अच्छा लगा, कोशिश करूँगा मैं एक अच्छा पिता बनूँ.....
हाँ अपने आदेशों, अपने विचारों को लगातार उसके ऊपर थोप कर उसके कोमल,रचनात्मक,क्रियाशील,संवेदनशील मन और उसके अन्दर छिपी असीम ऊर्जा,शक्ति को कुंठित जरूर करते रहेंगे
"बच्चों के विकास और उनके मनोभावों को बहुत सरल शब्दों में आपने खूबसूरती से व्यक्त किया है....पढ़कर अच्छा भी लगा और बहुत कुछ सीखा भी...."
Regards
सही है पूत के लक्षण पालने में /
क्षमता की तुलना करने से बच्चों में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है /
बच्चों को दूसरों के मनोरंजन का साधन नहीं बब्नाया जाना चाहिए /बच्चों को बुलाया जाता है अंकल को पोइम सुनाओ ,गलती करने पर बाद में बच्चों को डाटा फटकारा जाता है यह संस्क्रती कहाँ से पनपी ,इसकी जड़ में भी जाना चाहिए /टाई लगा कर ,अर्थ न जानते हुए भी अंग्रेजी कविताओं का रटवाना और बच्चे को प्रदर्शन की वस्तु बनाना यह परिपाटी आम हो चुकी है ,मिटना चाहिए /एक तो बेचारे बच्चों का बचपन वैसे ही खो गया है ऊपर से यह दबाव /
बच्चा पैदा करना दुनिया का सबसे आसान काम है और इसे सीखना भी नहीं पड़ता पर बच्चे को संस्कारों के साथ पालना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है और इसे सीखना भी पड़ता है....
Respected Hemant Ji,
Ap apne blog par bachchon ke bare men itnee achchhee jankariyan dete rahte hain.ise to har mata pita ko padhna chahiye.shubhkamnayen.
hamant jee
sach hai bachchon par apnee ichchhaayen thopneen naheen chaahiye . aapne likhaa ki bachchon ke kyaa apnee soch,samajh
naheen hotee. par bachchon kee soch samajh pedaa hote hee to naheen aajaayegee ,jab tak ve maan-baap, achche caritron va uttam vichaaron ko sunege, samjhenge,padenge naheen to unke vichaar, bhaav aadi kaise banenge.
atah bachchon ke liye aachaar sanhitaayen bhee likhanaa atyavashyak hai. ve maan- baap kee aagyaa maane va sune.
sirf harjagah, har baar maa- baap ko hee galat na thahrayen, jo ki aaj kee paschimee soch ke kaarn prayh ham kahte rahte hain jo bachchon ko lagaataar uddand banaate jaa rahe hain.
ham gahraaee se sochen.
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