पुस्तक समीक्षा--बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां
रविवार, 2 नवंबर 2014
पुस्तक -बच्चों का
सम्पूर्ण विकास
लेखिका-अर्पणा पाण्डेय
प्रकाशक-किताबघर,
24 /4855,अंसारी रोड,दरियागंज,
नई दिल्ली-110002
मूल्य-140रूपये।
दो-ढाई
दशक
पूर्व तक हिंदी में साहित्य से अलग हटकर ज्ञान-विज्ञानं और जीवन चर्या के विविध
आयामों पर मौलिक एवं सरल भाषा में लिखी पुस्तकें प्राय: कम ही दिखती थीं।इस
तरह की ज्यादातर पुस्तकें अंग्रेजी से अनूदित होकर आतीं थीं,जिनकी सामग्री न
तो हमारी जीवन शैली से मेल खाती थी और न ही उनकी भाषा में कोई खास
आकर्षण या प्रवाह होता था।यह सुखद संकेत है कि विगत कुछ वर्षों में इस तरह के
विषयों पर लिखने वाले न केवल नए-नए लेखक प्रकाश में आये,वरन अच्छे प्रकाशकों ने ऐसी किताबों को महत्व देकर अच्छी साज-सज्जा
के साथ प्रकाशित करने की पहल भी की है।
हाल ही में
प्रकाशित अर्पणा पाण्डेय की पुस्तक “बच्चों
का सम्पूर्ण विकास”एक
ऐसी ही पुस्तक है जिसमें छोटे बच्चों के शारीरिक,मानसिक एवं व्यक्तित्व विकास सम्बन्धी विभिन्न पक्षों पर अत्यंत सरल
एवं संतुलित भाषा में प्रकाश डाला गया है।
प्राय: हम बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारियों को
अत्यंत ही सामान्य ढंग से लेते है,जब कि यह इतना आसान और
सहज नहीं है,अर्पणा पाण्डेय की यह किताब छोटे बच्चों
की माताओं (और पिताओं के लिए भी )एक मार्गदर्शक का तो काम करती ही है,साथ ही उनकी जिम्मेदारियों के प्रति आगाह भी करती है्। लेखिका ने बाइस
छोटे -छोटे आलेखों के माध्यम से बच्चों की स्वाभाविक आदतो,उनके स्वास्थ्य,आहार,खेल क्रियाएं,पठन-पाठन, सामाजिक आचरण,प्रारंभिक शिक्षा,भाषा विकास,योगाभ्यास, संगीत और नाटक के साथ-साथ किस हद तक सेक्स शिक्षा दिए
जाने की आवश्यकता है, जैसे विषयों से
जुडी समस्याओं को बहुत ही व्यावहारिक एवं
तार्किक ढंग से,समाधान की सीमाओं
तक चर्चा की है।इस पुस्तक के माध्यम से उठाई गई बातों का केंद्र बिंदु
हमारा मध्यवर्ग है,भाषा सरल,स्वाभाविक तथा आम बोल-चाल की है।यही दो ऐसे कारण हैं जिससे यह
पुस्तक एक व्यापक पाठक वर्ग की जरूरतों को पूरा करती है।
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० कौशल पाण्डेय
4 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (03-11-2014) को "अपनी मूर्खता पर भी होता है फख्र" (चर्चा मंच-1786) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रोचक। साल भर की है मेरी पोती और ऐसी ही पुस्तक की जरूरत है हम को।
khushi hui,.Hemant ji..106
ऐसी पुस्तकें अभिभावकों को पढ़नी ही चाहिए ।
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