छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी
बुधवार, 19 नवंबर 2014
भी एक नन्हें कोमल प्यारे शिशु की
किलकारियां गूंजें। शिशु अपनी अनोखी बाल लीलाओं से उनके सूने घर को गुंजारित करे।
उनका यह स्वप्न पूरा भी होता है।उनके घर जब नन्हें मेहमान का आगमन होता है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता।युवा दम्पत्ति जी जान से उसकी देखभाल में तो जुट ही जाते हैं। साथ ही उसकी बाल
लीलाओं का भी आनन्द उठाते हैं।
इस शिशु के बढ़ने के साथ ही उनकी
खुशियां बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगती हैं। खासकर शिशु के बकैयां चलने से लेकर उसके स्कूल जाने तक की
अवधि हर अभिभावक के लिये बहुत ही ज्यादा जिम्मेदारी वाला समय होता है। इस दौरान
बच्चा घुटनों के बल चलना शुरू करता है,पहले वह थोड़ी ही दूर जाता है। फ़िर घर भर में
इधर उधर भागता है। हर चीज को देखकर, छू कर महसूस करने की कोशिश करता है। घर में
रखे सामानों को बिखराता है। चीजों को फ़ेंकता है। उलट पलट करता है। ऐसी अवस्था में
मां बाप दोनों को शिशु के ऊपर कुछ ज्यादा ध्यान देने और थोड़ा अतिरिक्त सावधानी
रखने की जरूरत पड़ती है। अन्यथा शिशु को हल्के फ़ुल्के नुक्सान से लेकर बड़े हादसे तक
घटित हो सकते हैं।
मैं यहां पहले उन हादसों का
जिक्र करूंगा जिन्होंने बच्चों के मां बाप के साथ ही मुझे भी बहुत गहराई तक झकझोर
दिया था। और जिनकी वजह से ही आज मैं यह लेख लिख रहा हूं। आप खुद भी इन घटनाओं को
पढ़कर समझ सकते हैं कि यदि उस समय थोड़ी सी सावधानी बरती गयी होती तो कुछ अबोध शिशु
असमय मौत के शिकार न हुये होते। ऐसे हादसे जिनकी जिम्मेदारी उनके अभिभावकों की ही
थी। ऐसा नहीं कि उन अभिभावकों ने जानबूझ कर ऐसा किया था बल्कि उनकी थोड़ी सी
असावधानी ने उनके जीवन की तमाम खुशियां छीन लीं।
पहली घटना। आज से बीस साल
पहले की है। इलाहाबाद में मेरे एक पड़ोसी ठेकेदार थे। बहुत खुशहाल परिवार । घटना
उनके एक साल के बहुत सुन्दर सलोने बेटे के साथ हुई। उनकी पत्नी ने कपड़े धोये।
उन्हें निचोड़ा और आंगन में ही गन्दे पानी से भरी बाल्टी छोड़कर छत पर कपड़े फ़ैलाने
चली गईं। पन्द्रह बीस मिनट बाद वो कपड़े फ़ैलाकर वापस नीचे आईं तो आंगन का दृश्य
देखकर चीख पड़ीं। आंगन में उनका एक साल का बेटा बाल्टी में उल्टा पड़ा था। यानि उसका
पैर बाल्टी के बाहर और सिर बाल्टी के अन्दर पानी में। चीख सुनकर घर के लिग इकट्ठे
हुये। बच्चे को तुरन्त अस्पताल लेकर भागे । पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
चिकित्सक बच्चे को नहीं बचा सके। हुआ यह था कि उनके छत पर जाते ही बच्चा वहां आया।
उत्सुकतवश उसने भरी बाल्टी के अन्दर झांकने की कोशिश की। और उसी दौरान वह उसमें
उलट गया। काश कि उनके छत पर जाते समय कोई उनके बच्चे को सम्हाल रहा होता। य वो
बाल्टी का पानी गिराकर गयी होतीं…।
दूसरी घटना।मेरे अपने ही घर
में।मेरी छोटी बहन सपरिवार आई थी।उनका डेढ़ साल का बेटा साथ में था।बैठक में सभी
लोग बातचीत में मशगूल थे।दूसरे कमरे में बच्चे खेल रहे थे।इसी बीच कोई बच्चा चीखा।हम सभी भाग कर अन्दर के कमरे में पहुंचे।वहां मेरी बहन के सुपुत्र पाउडर से पूरे
नहाये हुये चीख रहे थे। उसने ट्रन्सपरेण्ट
डिब्बे में रखे विम पाउडर को कोई खाने की चीज समझ कर अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश की।शायद डिब्बे का ढक्कन ढीला होने के कारण पूरा
विम पाउडर उसके ऊपर।कुछ मुंह और आंख
में भी गया।हम लोगों ने जल्दी से पहले उसे नल के नीचे अच्छी तरह नहलाया फ़िर लेकर
भागे डाक्टर के घर।संयोग से विम पाउडर उसके पेट में नहीं गया था। बस थोड़ा आंखों
और दांतों में लगा था ड़ाक्टर ने दवायें दीं।शाम तक उसे आराम मिल गया।
तीसरी घटना।अभी
2साल पहले मेरे पड़ोस में घटी थी।बच्ची के पिता सरकारी नौकरी में और पत्नी
शिक्षिका।एक बच्ची 4साल की दूसरी बड़ी।उस दिन पिता आफ़िस और बड़ी बेटी स्कूल में
थे।घर पर छुटकी और मां।मां रसोईं में।तभी छुटकी चीखी।मां कमरे में पहुंची तो एक
तरफ़ प्रेस लगा था और छुटकी पड़ी चीख रही थी।हुआ यूं कि छुटकी ने मां को किचेन में
मशगूल पाया, उसने सोचा कि मैं भी अपनी बड़ी बहन की तरह फ़्राक पर प्रेस कर लूं।वह
प्रेस लायी,उसे लगा कर आन किया और पहनी हुई फ़्राक पर प्रेस करने की कोशिश में अपना
पैर जला बैठी।
उसे भी इन्जेक्शन,डाक्टर और अस्पताल की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।
अब आप बताइये इन तीनों
घटनाओं में उन अबोध शिशुओं की क्या गलती थी? अगर उनकी गतिविधियों पर मां बाप या
किसी बड़े का ध्यान रहा होता तो शायद ये हादसे न होते। इसीलिये इस उम्र के बच्चों
की देखभाल में,लालन पालन में बहुत अधिक सावधानी रखने की जरूरत है। ऐसा नहीं कि कोई
मां बाप अपने बच्चे के लिये जानबूझकर ऐसी स्थितियां पैदा करता है। वह क्यों करेगा
ऐसा? ये तो अनजाने में हुयी थोड़ी सी असावधानी ऐसी परिस्थितियों को जन्म देती है।
आइये अब देखते हैं कि इन छोटी
उम्र के बच्चों के लालन पालन के दौरान हम किस तरह की सावधानियां अपनाकर उनका जीवन
सुरक्षित रख सकते हैं। मैंने पहले ही कहा है कि जब तक बच्चा गोद में ,पालने या
बिस्तर पर रहता है तब तक वह आपके सहारे ही घर में इधर उधर जा सकता है। लेकिन जैसे
ही वह घुटनों के बल या बकैयां चलना शुरू
करता है वह पूरे घर में घूमने लगता है। और उसकी इस क्रिया से उसके साथ आप भी आनन्दित होते हैं। इस समय बराबर उसके ऊपर ध्यान देने की जरूरत रहती है।
0 क्या करें?
* सबसे
पहले अपने घर में नीचे की तरफ़ लगे हुये सभी इलेक्ट्रिक प्लग प्वाइण्ट बन्द करवा दें। या उन्हें थोड़ा ऊंचाई
पर शिफ़्ट करवा दें। क्योंकि इनके खुले रहने पर उत्सुकतावश बच्चा उनके छेदों में
उंगलियां डालने की गलती कर सकता है।
*घर की आल्मारियों में नीचे के खानों में कोई भी जहरीला, खतरनाकपदार्थ(फ़िनायल,तेजाब,मिट्टी का
तेल,हार्पिक्स,विम एवम डिटर्जेण्ट पाउडर इत्यादि) न रखें।इन वस्तुओं को ऐसी जगह रखें जो
आपके शिशु की पहुंच से दूर हो।
*अपने घर के इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्ट्रिकल उपकरणों को शिशु की पहुंच से दूर थोड़ा ऊंचाई पर रखें।
*घर में मौजूद दवायें हमेशा बच्चों की पहुंच से दूरऽअल्मारी के ऊपरी खानों में रखें।ताकि बच्चे उन्हें छू न सकें।
*बाथरूम का दरवाजा हमेशा बन्द रखें।क्योंकि वहां प्रायः ही किसी न किसी बर्तन में पानी भर कर रखा ही जाता है।वहां
अकेले जाना बच्चे के लिये घातक हो सकता है।
*जब भी बच्चे को फ़र्श पर छोड़ें,ध्यान रखें उसके आस पास कोई ऐसी वस्तु न हो जिसे वह मुंह में डालने की कोशिश
करे। अच्छा होगा कि ऐसे समय मां बाप या कोई बुजुर्ग शिशु के साथ रहें।
*यदि आपका शिशु आंगन में खेल रहा है तो ध्यान रखें कि वह गमलों तक न पहुंचने पाये।वह गमलों की मिट्टी या
किसी जहरीले पौधे की पत्ती तोड़कर मुंह में डाल सकता है जो कि उसके लिये हानिकर
होगी।
*यदि
ऊंचे बेड पर शिशु बैठा हो तो उस प्पर नजर रखें कि वह बिस्तर से गिर कर चोटिल न हो जाय।
*शहरों में परिवार एक या दो कमरों के छोटे मकानों में रहते हैं।उन्हीं दो कमरों में पूरी गृहस्थी का सारा सामान।ऐसी
स्थिति में घर का सामान शिशु के रहने के हिसाब से व्यवस्थित करें।
*शिशु को कभी रसोई के अन्दर न जाने दें।वहां वह गैस,फ़्रिज़ आदि छूने की कोशिश करके नुक्सान उठा सकता है।
*अक्सर मां शिशु को बुरे सपनों से बचाने के लिये उसके बिस्तर के नीचे चाकू,कैंची रखती हैं।इन्हें ऐसी जगह रखें कि
बच्चा उन्हें न छू सके।
*और सबसे अन्तिम बात बकैयां चलना शुरू करने से लेकर स्कूल जाने की अवस्था आने तक मां बाप में से कोई एक हमेशा
शिशु का ध्यान रखे।ताकि कभी भी वह गलती से कोई ऐसी क्रिया न कर बैठे जो
उसके लिये घातक हो।
ये कुछ ऐसी छोटी छोटी
बातें हैं जिनपर ध्यान देकर आप अपने नन्हें,सुकोमल शिशु का जीवन सुरक्षित रखने के
साथ ही अपने परिवार को खुशहाल
रख सकते हैं।
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डा0हेमन्त कुमार
1 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (22-11-2014) को "अभिलाषा-कपड़ा माँगने शायद चला आयेगा" (चर्चा मंच 1805) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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