एक ठहरा दिन
उलझनों में जिंदगी की
हो जाता है गुम
जैसे भोर का सपना।
स्वप्नों को बाँध कर
वक्त के कगार पर
काट रहे दिन
जैसे विरह कोई अपना।
संबंधों के दायरे में
टूटते रिश्ते
जैसे बंद कमरों में सिसकती
जिंदगी का घुटना।
वेद की पावन ऋचाएं
दे रहीं आश्वासन
जीवन संगीत का
जैसे सगा कोई अपना।
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हेमंत कुमार
8 टिप्पणियाँ:
वेद की पावन ऋचाएं
दे रहीं आश्वासन
जीवन संगीत का
जैसे सगा कोई अपना।........बहुत ही आत्मीय अभिव्यक्ति..
aakhiri panktiyon mein bahut sadgyaan chhupa tha,,
'वेद की पावन ऋचाएं
दे रहीं आश्वासन
जीवन संगीत का
जैसे सगा कोई अपना।'
- ये आश्वासन ही टूटते रिश्तों और गुम होती जिन्दगी को जीवन संगीत की सुमधुर तान सुना कर नई आशा का संचार करेगा.
स्वप्नों को बाँध कर
वक्त के कगार पर
काट रहे दिन...
Atyant sundar aur prabhavi abhivyakti.Badhai.
संबंधों के दायरे में
टूटते रिश्ते
जैसे बंद कमरों में सिसकती
जिंदगी का घुटना।
बहुत अच्छी पंक्तियाँ........पर ऐसा क्यों.....??
वेद की पावन ऋचाएं
दे रहीं आश्वासन
जीवन संगीत का
जैसे सगा कोई अपना।
दिल को छूने वाली कविता..........पावन अभिव्यक्ति है
swapno bandhkar waaqt ke kagar par kaat arhe din. kya khub likha hai.
agr aap ko asmay mile to mere blog k lie prerna se bhari koi kavita bhejen. www.salaamzindadili.blogspot.com
shamikh.faraz@gmail.com
प्रतीकात्मक और सशक्त रचना।
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