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बाल मन को गुदगुदाती “शब्दों की शरारत”

शनिवार, 26 मार्च 2022

 बाल साहित्य समीक्षा


            बाल मन को गुदगुदाती “शब्दों की शरारत”




                    पुस्तक-शब्दों की शरारत


                     कवयित्री-दिशा ग्रोवर


                     प्रकाशक-प्रकाशन विभाग


                      सूचना और प्रसारण मंत्रालय


                          भारत सरकार

   


हिंदी बाल साहित्य में अगर किसी विधा में सबसे ज्यादा लिखा जा रहा है तो वह है बाल कविता।इसके पीछे सबसे बड़ा कारण लिखने वालों का एक बड़ा भ्रम भी है कि किसी विषय को लेकर कुछ भी तुकबंदी कर दी जाय तो वह बाल कविता बन जाती है।दूसरे पात्र पत्रिकाओं के अलावा इंटरनेट द्वारा मुफ्त में दिया गया स्पेस और अभिव्यक्ति के फेसबुक,ब्लाग, व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफार्म।जिनपर कुछ ही सेकंड्स में लिखी गयी रचना आप पूरी दुनिया के सामने परोस सकते हैं।हां यह बात जरूर है कि इन दिनों लिखी जा रही सभी बाल कवितायेँ बाल मन के कितनी अनुरूप हैं,उनमें लिखा गया विषय कितना महत्वपूर्ण है इस बात से रचनाकारों को ज्यादा मतलब नहीं।

    

लेकिन इन सब परिस्थितियों के बावजूद कुछ चुनिन्दा युवा बाल साहित्यकार ऐसे भी हैं जो बेहतरीन बाल कवितायें लिख रहे हैं और लगातार प्रकाशित भी हो रहे हैं।जिन्होंने अपनी बेहतरीन बाल कविताओं के बल पर बाल कविता लिखने वालों की भीड़ में अपनी अलग पहचान बना ली है।ऐसे युवा रचनाकारों में शादाब आलम,फहीम अहमद,निश्चल,पूनम श्रीवास्तव,रोचिका शर्मा,दिशा ग्रोवर,सृष्टि पाण्डेय जैसे कुछ नाम यहाँ रेखांकित किये जा सकते हैं।

        

दिशा ग्रोवर वैसे तो काफी पहले से बाल कवितायेँ लिख रही हैं।देश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं-–बाल भारती,बाल किलकारी,बच्चों का देश,उजाला,देवपुत्र आदि के साथ ही कई अखबारों-–दैनिक ट्रिब्यून,समाज्ञा,बाल भास्कर आदि में दिशा की बाल कवितायें प्रकाशित होती रही हैं और सराही भी जाती रही हैं।इनकी कविताएँ साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित “प्रतिनिधि बाल कविता-संचयन” में भी संकलित हैं।बाल साहित्य की स्वतन्त्र पुस्तक के रूप में दिशा का एक बाल नाटक संग्रह “बाघू के किस्से” भी कुछ दिनों पहले ही प्रकाशित हुआ है और अपनी अलग बुनावट और कहानी और नाटक के सम्मिश्रण की अलग तकनीक के कारण काफी चर्चित भी हुआ है।इस तरह पिछले कुछ समय में ही दिशा ने अपनी बाल साहित्य की रचनाओं के माध्यम से उभरते बाल साहित्यकारों में अपनी अलग पहचान बनानी शुरू कर दी है।

    

लेकिन अभी हाल में ही भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित दिशा ग्रोवर का बाल कविता संग्रह “शब्दों की शरारत” दिशा का पहला बाल कविता संग्रह है।


“शब्दों की शरारत” में दिशा की कुल 52 बाल कवितायें संकलित हैं।मैंने पहले भी पत्र पत्रिकाओं में दिशा ग्रोवर की कवितायेँ पढी हैं।लेकिन इस कविता संकलन के माध्यम से एक बार फिर से दिशा की बाल कविताओं को फिर से पढने और बार बार पढने का अवसर मिला है।दिशा की इन कविताओं में एक नयापन,सम्प्रेषण की एक नयी दृष्टि,शब्दों से सचमुच खेलने की एक नई तकनीक दिखाई पड़ती है जो दिशा की इन बाल कविताओं को भीड़ से अलग करती है और दिशा ग्रोवर को एक अलग पहचान देती है।

  

दरअसल इस कविता संकलन का शीर्षक “शब्दों की शरारत” ही अपने आप में अलग अनूठा है।शीर्षक ही हमे यह बताता है कि इस संकलन की कविताओं में कवयित्री ने बच्चों के स्तर पर उतर कर उनके मनोभावों के अनुकूल ही शब्दों की शरारत की है और उन्हें अपनी कविताओं में पिरोया है।शरारत का मतलब ही है कुछ चुलबुलापन,कुछ शैतानी,कुछ धमाचौकड़ी,कुछ गड़बड़झाला,कुछ चेंचामेंची और कुछ खिलान्दडापन।और इस संकलन की बाल कविताओं में ये सभी बातें मौजूद हैं जो इन कविताओं को पढ़ते हुए आपको बच्चों के मनोभावों के एकदम नजदीक पहुंचाती हैं।और हमें बाल मन की गहराइयों में उठने वाले प्रश्नों,सवालों,जरूरतों से रूबरू कराती हैं।

  

अगर इस संकलन की शीर्षक कविता “शब्दों की शरारत” की ही बात करें तो कविता की पहली चार पंक्तियाँ ही बच्चों को शब्द शक्ति के बारे में बताती है ---


“शब्दों की क्या ख़ूब शरारत


देते किस्से गढ़ हजार।


कहानी,कविता या कहावत


रचते रहते बार बार।”


ये पंक्तियाँ एक तरह से इस कथन की व्याख्या है कि शब्दों में बहुत शक्ति होती है तभी तो शब्द को काव्यशास्त्र के विद्वानों ने ब्रह्म का दर्जा दिया है।

   

इस कविता संकलन में हमें विषयों की विविधता तो मिलती ही है साथ ही हर विषय की कविता नए प्रयोग भी मिलते हैं।संकलन में एक तरफ सर्दी आई,छमछम बरसे पानी,सुन्दर चन्दा,बूंदों ना ललचाओ,सुबह सुहानी बादल तो हैं दोस्त हमारे जैसी कविताओं के माध्यम से कवयित्री पाठकों को प्रकृति के नजदीक ले जाकर उनका बहुत सूक्ष्मता से दर्शन कराती है तो दूसरी और मेरा परिवार,मां तुम हो या नानी,मां का प्यार,शिक्षक मेरे देव समान,दादी नानी,नानी की चाय,चुटकुले से मामा जी,राखी किसको बांधूं मैं,जैसी कविताओं के माध्यम से पाठक सामाजिक सरोकारों,रिश्तों की गरमाहट और सामाजिक बोधों से मिलता चलता है।एक तरफ — तितली रानी,चिड़िया रानी,जंगल में कोरोना,बन्दर भागा जान बचाकर,मस्तराम हाथी जैसी कविताओं के माध्यम से पाठकों को जीव जंतुओं से मिलवाया गया है,उनके प्रति संवेदना जगाई गयी है तो दूसरी तरफ-- तरह-तरह की गुदगुदी,परछाईं-- जैसे एकदम अनछुए विषयों पर बहुत रोचक बाल कवितायेँ भी कवयित्री ने लिखी हैं।

    

यहाँ मैं कुछ कविताओं की चुनिन्दा पंक्तियों का भी उल्लेख करूंगा जिनसे कवयित्री द्वारा की गयी “शब्दों की शरारत” उभर कर सामने आ जायेगी।“मेरा बस्ता” शीर्षक कविता में कवयित्री की पंक्तिया हैं—


बसते को भी छुट्टी के दिन


क्या आलस मुझसा है भाता?


दिन भर कैसे-कैसे यह भी,


सोते-सोते अरे बिताता।

---अब इन पंक्तियों को पढ़ कर बाल पाठकों को लगेगा अरे मेरा बस्ता भी दिन भर सोता है?और निश्चित ही वो इस कल्पना मात्र से आनंदित होगा।इसी तरह “उलटम-पलटम” कविता की ये पंक्तियाँ भी बच्चों को आनंदित करेंगी---


उलटम-पलटम जब हो जाए


शेर घास से भोज बनाए।


छेड़े राग संग जूं जूं जूं


राजा मच्छर रौब जमाए।


अब यहाँ देखिये बच्चा इस कविता को पढ़ कर ही प्रफुल्लित होगा कि शेर घास का खाना बना रहा,मच्छर जंगल का राजा बन गया---मतलब उस जंगल में सबकुछ उलटा पुलटा हो गया है।अब बाल मन को कल्पना के घोड़ों पर उड़ाने वाली अनुभूति को “जी चाहे जब मजे से”—कविता की इन पंक्तियों में देखा जा सकता है—


मछली के समंदर में


घर मेरा भी होता,


जी चाहे जब मजे से


झूल लहर पर जाता।

      


एक बात का मैं यहाँ और उल्लेख करना चाहूँगा जो सभी प्रतिष्ठित और नवोदित बाल साहित्यकारों के लिए एक सन्देश भी है।दिशा ग्रोवर ने इस संकलन के शुरू में “कुछ बातें:अपनों से अपनी-सी” शीर्षक से लिखे गए अपने वक्तव्य में लिखा है ----“मैं मानती हूँ की बाल साहित्य बच्चों के साथ-साथ बड़ों के लिए भी होता है।सो बड़ों को भी जरूर पढ़ना चाहिए।”कवयित्री का यह सन्देश सभी रचनाकारों के साथ ही अभिभावकों और शिक्षकों के लिए भी इसलिए महत्वपूर्ण है कि अगर वो भी बाल साहित्य—कहानियां,कवितायें, नाटक, उपन्यास नहीं पढेंगे तो अपने बच्चों को पढने के लिए प्रेरित कैसे करेंगे।और फिर बालसाहित्य में बड़ों,अभिभावकों के लिए भी बहुत कुछ मनोरंजक सीख देने वाले तत्व मौजूद रहते ही हैं।इस दृष्टि से कवयित्री की “सुबह सुहानी” शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ भी बहुत सार्थक और महत्वपूर्ण हैं----


बूढों को भी सुबह सुहानी


आस दिलाती है जीने की।


जैसे छलकें प्याले में से


बूंदें भैया अमृत की सी।

 

     


कुल मिलाकर रंग-बिरंगे चित्रों से सजा हुआ दिशा ग्रोवर का यह बाल कविता संकलन निश्चित रूप से बाल पाठकों को शब्दों की नयी नयी शरारतों से तो मिलवायेगा है,उनके मन को जगह-जगह आंदोलित करेगा,उन्हें गुदगुदायेगा,उनके अन्दर उत्साह भरेगा,उनका मनोरंजन करेगा तो दूसरी ओर उनके भीतर सामजिक रिश्तों,परिवार,घर के बीच संबंधों की मिठास भी घोलेगा।प्रकृति के नजदीक ले जाएगा तो जीव जंतुओं के प्रति संवेदनशील भी बनाएगा।देश,मातृ-भूमि के प्रति सजग बनाएगा तो उन्हें एक बेहतर इंसान भी बनाएगा।दिशा ग्रोवर का यह बाल कविता संकलन निश्चित रूप से हिन्दी के बाल साहित्य को समृद्ध करेगा।

                    

                                    ००००


समीक्षक:


हेमन्त कुमार


        

                     

2 टिप्पणियाँ:

How do we know 9 जुलाई 2022 को 2:22 pm बजे  

अरे ये पुस्तक हमने अभी कुछ दिन पहले ली थी पर पढ़ नहीं पाए थे। अब और भी अच्छा लगेगा पढ़ना।

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. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अपराध अपराध कथा अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? 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