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प्रतिनिधि बाल कविता-संचयन के बहाने--समकालीन हिंदी बाल कविता का अवलोकन

सोमवार, 28 जून 2021

 

पुस्तक समीक्षा


प्रतिनिधि बाल कविता-संचयन के बहाने--समकालीन हिंदी बाल कविता का अवलोकन



                         प्रतिनिधि बाल कविता-संचयन


                       चयन एवं संपादन –दिविक रमेश


प्रकाशक-साहित्य अकादेमी 

पृष्ठ-706,मूल्य-रू-550/-

(पेपरबैक)प्रथम संस्करण-2020

                                          

               हिंदी बाल साहित्य के आज के सम्पूर्ण परिदृश्य को देखने पर एक बात बहुत साफ़ तौर पर नजर आती है-–वह है पूर्व में प्रकाशित और नए प्रकाशित हो रहे हिंदी बाल साहित्य की समीक्षा,शोध और मूल्यांकन की कमी।बाल साहित्य पर आलोचनात्मक और समीक्षात्मक किताबें कम लिखी जा रही हैं।बाल साहित्य पर शोध कार्य भी कम हो रहे हैं।हो भी रहे हैं तो बाल साहित्य की किसी विधा को लेकर,या उसकी सम्पूर्णता को लेकर नहीं बल्कि सिर्फ कुछ लेखकों पर केन्द्रित।चिंता का विषय यह भी है कि कुछ दिग्गज बाल साहित्यकार तो खुद अपने साहित्य पर ही शोध करवाकर उसे अपने ही खर्च से प्रकाशित भी करवा दे रहे हैं।इतना ही नहीं बाल साहित्य पर गंभीरता से सोच विचार करने वाले चिन्तक और लेखक भी कम ही हैं।

   

      


          इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है बाल साहित्य की हर विधा की रचनाओं का बिखराव।यहाँ बिखराव से मेरा तात्पर्य है बच्चों के लिए लिखी जा रही कहानियों,कविताओं,नाटकों या किसी भी विधा के साहित्य का एक जगह एकत्रित न हो पाना।दरअसल होता यह है कि जब भी कोई बाल साहित्य पर काम करने वाला शोधार्थी किसी विधा विशेष पर काम करना चाहता है तो उसे उस विधा की वो रचनाएँ तो मिल जाती हैं जो रचनाकारों के प्रयासों से पुस्तकाकार प्रकाशित हो चुकी हैं लेकिन उसी विधा की ढेरों ऐसी सामग्री जो पत्र-पत्रिकाओं में बिखरी पड़ी हैं उन तक वह शोधार्थी नहीं पहुँच पाता।और यह समस्या बाल कविताओं को लेकर कुछ ज्यादा ही है।

      

  


                    यहाँ अगर हम तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो संभवतः बाल साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा बाल कवितायें ही सबसे ज्यादा संख्या में लिखी जा रही और पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो रही हैं।लेकिन दूसरी दिक्कत यह भी है कि बाल कविताओं के संग्रह का प्रकाशन भी सबसे ज्यादा कठिन काम है।सरकारी,स्वायत्तशाषी या पूर्णतः प्राइवेट प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित बाल साहित्य की तरफ अगर देखिये तो आपको सबसे अधिक संख्या कहानियों,उपन्यासों की मिलेगी।नाटकों,कविताओं की किताबें या संग्रह कम ही प्रकाशित हो रहे हैं।इनमें भी अच्छे बाल कविताओं के संग्रह तो संख्या में शायद सबसे कम प्रकाशित हो रहे।यद्यपि अगर हम बहुत से बाल साहित्यकारों और कवियों द्वारा लिखे गए और प्रकाशित ऐसे बाल कविता संकलनों को छोड़ दें जिनमें सिर्फ उन्हीं की रचनाएँ संकलित हैं तो ऐसे संग्रह या संकलन संख्या में कम और सिर्फ गिने चुने ही हैं जिनमें देश के प्रतिष्ठित बाल रचनाकारों की कविताएं संकलित हैं।यद्यपि इस दिशा में काम हुए हैं और अच्छे संकलन भी निकले हैं पर उनकी संख्या बहुत कम है।हरिकृष्ण देवसरे द्वारा संपादित “बच्चों की सौ कवितायें”,जयप्रकाश भारती द्वारा संपादित “हिंदी की श्रेष्ठ बाल कवितायेँ”,“बचपन एक समंदर”(संपादक-कृष्ण शलभ),“प्रतिनिधि बालगीत”(सम्पा०डा0श्रीप्रसाद),“एक सौ इक्यावन बाल कवितायेँ”(सम्पा०-ज़ाकिर अली रजनीश),“चुने हुए बालगीत”-दो खंड(सम्पा०-रोहिताश्व अस्थाना),“बच्चों के प्रिय कवि”(सीरीज)-(सम्पा०-प्रकाश मनु),“इब्नबतूता का जूता”-(सम्पा०-प्रभाकिरण जैन)अथवा ऐसे ही कुछ गिने चुने संकलन और भी होंगे जिनमें बच्चों के लिए विभिन्न बाल साहित्यकारों द्वारा लिखे गए बहुत से बाल गीत संकलित हुए हैं।लेकिन इनकी संख्या इतनी नहीं है कि इनके आधार पर कोई शोधार्थी या बाल कविताओं पर काम करने वाला लेखक समीक्षक बाल कविताओं पर काम कर सके।और वह समकालीन बाल कविता के परिदृश्य का मूल्यांकन,आकलन कर सके।क्योंकि इनमें भी सबसे बड़ी समस्या यही है कि जिस समय ये संकलन तैयार होकर प्रकाशित हुए उस समय के बहुत से महत्वपूर्ण बाल कवियों की रचनाएं इनमें नहीं पहुँच सकीं।ऐसे में उन साहित्यकारों की बाल कवितायें अच्छी और महत्वपूर्ण होते हुए भी समीक्षकों,आलोचकों या बाल साहित्य का इतिहास लिखने वाले विद्वानों की नजर में नहीं आ सकीं।          

                

     अब इसके कारण खोजने पर तो बहुत से दिख जायेंगे।लेकिन उन कारणों पर यहाँ बात करना मेरा मकसद नहीं है।यहाँ एक बात और मैं कहना चाहूँगा कि कई बार ऐसा होता है कि बहुत से रचनाकारों की अच्छी बाल कवितायें सिर्फ किसी संकलन में न आने के कारण भी समीक्षकों,आलोचकों या शोधार्थियों की नज़रों में आने से छूट जाती हैं।और उनको कभी नोटिस में ही नहीं लिया जाता।न ही इतिहास में और न ही समीक्षकों के समीक्षात्मक लेखों में।

           


    इस दृष्टि से साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित और हिन्दी के वरिष्ठ कवि,आलोचक और बाल साहित्यकार दिविक रमेश जी द्वारा संपादित “प्रतिनिधि बाल कविता-संचयन” एक बहुत सार्थक और महत्वपूर्ण किताब है।इस कविता संकलन के बारे में कुछ लिखने से पहले मैं हिंदी के वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना जी की एक बात उद्धृत करना चाहूँगा जो नरेश जी अक्सर मंचों पर कहा करते हैं।“एक सफल आलोचक,समीक्षक वही है जो किसी भी रचना,सृजन,काव्यकृति,पेंटिंग, या किसी भी क्रिएटिव रचना की सबसे पहले कोई एक विशेषता बता दे---फिर चाहे वह उस कृति की धज्जियां ही क्यों न उड़ा दे।और हर कृति रचना में कहीं न कहीं एक विशेषता या खूबी जरूर छुपी होती है।”

    


      मैं वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना जी के इस कथन से पूरी तरह से सहमत हूँ।और इस दृष्टि से अगर इस बाल कविता संचयन का विश्लेषण किया जाय तो इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें एक साथ वरिष्ठ और एकदम नवोदित रचनाकारों की रचनाएं एक साथ संकलित हैं।आमतौर पर होता यही है कि जब भी ऐसे किसी संकलन की बात आती है तो प्रायः सम्पादक या संकलनकर्ता उन्हीं रचनाकारों से संपर्क करने की कोशिश करते हैं जिनकी कवितायें पर्याप्त मात्रा में प्रकाशित हो चुकी हों या जो काफी चर्चित हो चुके हों।एकदम से नवोदित रचनाकारों की रचनाएं अच्छी श्रेष्ठ होते हुए भी वो संकलन में उन्हें लाने का खतरा नहीं उठाना चाहते।खतरा इस सन्दर्भ में कि आलोचकों,समीक्षकों द्वारा वरिष्ठतम रचनाकारों की कविताओं के साथ एकदम से नए रचनाकारों को भी संकलन में रखने के औचित्य पर उठने वाले सवालों का खतरा।

   


      इस दृष्टि से निश्चित रूप से इस संकलन के सम्पादक दिविक रमेश जी बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इस संकलन में श्रीनाथ सिंह,द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,जयप्रकाश भारती,भवानी प्रसाद मिश्र जैसे दिग्गज साहित्यकारों के साथ ही सृष्टि पाण्डेय,नूरेनिशा,दिशा ग्रोवर,मोनिका अग्रवाल,रोचिका शर्मा जैसी एकदम नवोदित रचनाकारों की कवितायें शामिल करने का खतरा उठाया है।इस सन्दर्भ में दिविक जी ने इस संकलन के सम्पादकीय में लिखा भी है कि—“नामी रचनाकारों के नामों की महिमा मात्र के स्थान पर उनकी रचनाओं को खंगालकर मतलब की रचनाओं को ही चुनने और फिलहाल कम जाने,अपरिचित और नए से नए रचनाकार की भी रचनाओं से भरसक पूरी तरह गुजरते हुए उचित रचनाओं के चयन की चुनौती को स्वीकार करने का संकल्प लिया।इस क्रम में किसी रचनाकार के रह जाने या उसकी तथाकथित प्रचलित रचना के छूट जाने की चुनौती थी।वस्तुतः कहीं न कहीं मन में अधिक से अधिक नए रचनाकारों और उनकी सुयोग्य रचनाओं को स्थान देने की प्रबल इच्छा मन में थी ताकि बाल साहित्य के वर्तमान परिदृश्य के बारे में आकलन हो सके कि वह कितना समृद्ध है अथवा कितना कमजोर है।”(पृष्ठ-5)

   


      बाल कविता के वर्तमान परिदृश्य को जानने समझने के लिए दिविक रमेश जी का नये रचनाकारों के प्रति यह दृष्टिकोण निश्चित रूप से सराहनीय कदम है।क्योंकि बाल साहित्य की किसी भी विधा में जब भी ऐसे संकलनों को किसी बड़ी प्रतिष्ठित संस्था द्वारा प्रकाशित करने की योजना बनती है तो अक्सर संकलनकर्ता या सम्पादक का यही प्रयास रहता है कि वह उस संकलन को बेहतर बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा बहु-प्रतिष्ठित,बहु-चर्चित रचनाकारों की ही रचनाएँ शामिल करें ताकि उस भारी-भरकम संकलन को अधिक से अधिक प्रतिष्ठा मिले।लेकिन उस वक्त संभवतः वो इस बात की तरफ ध्यान नहीं देते कि जिस संकलन को वो तैयार करने जा रहे वह उनके समसामयिक बाल साहित्य को प्रतिबिंबित भी करेगा।वो संकलन बाल साहित्य के इतिहास में भी दर्ज होगा।और भविष्य में उस संकलन के माध्यम से शोधार्थी,बाल साहित्य के अध्ययनकर्ता तत्कालीन बाल साहित्य का आकलन मूल्यांकन भी करेंगे।इसलिए उसमें निश्चित रूप से बहुत प्रतिष्ठित रचनाकारों के साथ ही उन रचनाकारों को भी स्थान देना चाहिए जिन्होंने अभी पिछले पांच-सात सालों से ही बाल साहित्य की और कदम बढ़ाया है।जिनकी अभी बहुत कम रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुयी हैं।इस दृष्टि से भी यह संकलन बाल साहित्य में एक बेहतरीन काम है।

  


        एक बात और जो इस संकलन को बेहद महत्वपूर्ण बनाता है वह है विषयों की विविधता और संकलित रचनाओं का नयापन।संकलन में एक तरफ प्रकृति के विविध रंग हैं,पेड़,पौधे,फूल,बादल,पहाड़,नदियाँ और सागर हैं तो दूसरी और चिड़ियों,पाखियों और अन्य जीवों की बातें हैं।मनुष्य जीवन के विविध रंग हैं तो बच्चों की किलकारियां और खिलौने भी हैं।यातायात के विभिन्न साधन ट्रेन,बस,साइकिल,रिक्शा, बैलगाड़ी है तो ऊपर उड़ते हवाई जहाज भी हैं।बच्चों को आश्चर्यचकित करने वाले कम्प्यूटर,मोबाइल हैं तो उन्हें घुमाने वाले चिड़ियाघर,पार्क बाग़ बगीचे भी हैं।यानि बाल मन की कल्पनाएँ जहां जहां तक विचरण कर सकती हैं वो सारे विषय कविता के रूप में इस संकलन में मौजूद मिलेंगे।

   


       “प्रतिनिधि बाल कविता-संचयन” के संदर्भ में मैं एक बिंदु की तरफ और ध्यान दिलाना चाहूँगा वो यह एक ही विषय पर अलग- अलग समय के कवियों द्वारा लिखी गयी बाल कवितायें और उनकी अभिव्यक्ति।यह बात तो निश्चित रूप से एकदम साफ़ है कि किसी एक विषय या वस्तु को देखने परखने का हर व्यक्ति का दृष्टिकोण,हर रचनाकार का एंगिल अलग होगा और वह उस विषय या वस्तु पर अपने हिसाब से लिखेगा।इस दृष्टिकोण,विजन या देखने के ढंग में और साफ़ अंतर हम तब देख सकते हैं जब किसी विषय पर अलग अलग समय के रचनाकारों ने सृजन किया हो।इस कविता संकलन में से ऐसे ही कुछ उदाहरण मैं यहाँ दूँगा।

  


      अब बच्चों के लिए छुट्टी का मतलब और आनंद क्या होता है ये आप इस संकलन के तीन रचनाकारों की कविताओं में अलग-अलग रूपों में देख सकते हैं।चंद्रपाल सिंह यादव मयंक अपनी कविता “छुट्टी का दिन” में लिखते हैं –“हफ्ते में जब हो रविवार/मौज मजा आता तब यार/विद्यालय में छुट्टी रहती/मचती मौज मजे की धूम—(पृष्ठ-68)अब इसी छुट्टी विषय को लेकर कृष्ण शलभ की कविता “छुट्टी नहीं मनाते”में बाल मनोभावों की अलग ही अभिव्यक्ति दिखती है---“सूरज जी तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो/लगता तुमको नींद न आती/और न कोई काम तुम्हें/ज़रा नहीं भाता क्या मेरा/बिस्तर पर आराम तुम्हें।”(पृष्ठ-243)इसी छुट्टी को लेकर हेमन्त कुमार ने बच्चों की एकदम अलग ऎसी कल्पना को पंक्तिबद्ध किया है जो बच्चों के साथ बड़ों को भी हंसा देगी।हेमन्त कुमार अपनी कविता“आज हमारी छुट्टी है” में लिखते हैं—“आज हमारी छुट्टी है/स्कूल से हो गयी कुट्टी है/सब कुछ उलटा पुल्टा घर में/झाडू पोंछा बर्तन पल में/अब पापा निपटायेंगे/मां की हो गयी छुट्टी है।(पृष्ठ-433)अब एक ही विषय पर तीन अलग अलग अभिव्यक्ति वाली कविता निश्चित ही बच्चों को आनंदित करेगी।

    


      इसी तरह पतंग विषय को लेकर सीताराम गुप्त की कविता-“उड़ चली गगन छूने पतंग”,शकुन्तला कालरा की“पतंग और डोरी”,रावेन्द्र कुमार रवि की“उस पतंग को ख़ूब छाकाएं”,प्रीति प्रवीण खरे की कविता “पतंग”,और मधु माहेश्वरी की कविता“पतंग रानी”---इन सभी पांच कविताओं के रचनाकारों का समय अलग-अलग,परिवेश अलग-अलग –और पतंग को लेकर बच्चों के मनोभावों को इंगित करती कविताओं की अभिव्यक्ति का ढंग भी अलग-अलग है।इस बिंदु का उल्लेख यहाँ करने का मेरा मकसद सिर्फ यह इंगित करना है कि भविष्य के शोधार्थियों,आलोचकों को इस संकलन में ऎसी एक ही विषय पर अलग ढंग की अभिव्यक्ति वाली और भी कवितायेँ मिलेंगी और इस विषय पर भी शोधार्थी आगे काम कर सकते हैं।वो इन कविताओं के माध्यम से उनके रचनकारों के समय,काल उनके समय प्रचलित शब्दों के साथ ही उस समय की परम्पराओं,संस्कृतियों पर भी दृष्ट डाल सकते हैं।

    


          इस ढंग के किसी भी संकलन,संग्रह के लिए रचनाओं का चयन करते समय संकलनकर्ता का दृष्टिकोण क्या है?वह संकलन को क्या दिशा देना चाहता है यह बात भी बहुत महत्वपूर्ण है।जैसा की पहले ही लिखा जा चुका है कि दिविक जी की सोच इसे मात्र एक संकलन तैयार करने की न होकर इसे समकालीन बाल साहित्य का प्रतिबिम्ब भी बनाने की थी।साथ ही उनका एक दृष्टिकोण यह भी था कि कवितायें विज्ञानिक सोच वाली हों।उन्होंने संकलन की भूमिका में लिखा भी है कि-–“मेरी निगाह में कविताएं वैज्ञानिक सोच,प्रतिकूल मूल्यों और अंश्विश्वासों से मुक्त,कल्पना और जिज्ञासा को प्रेरित करने वाली लेकिन शैली में विश्वसनीयता की बुनियाद पर टिकी,नए प्रयोगों और नए ट्रीटमेंट से समृद्ध हों।कविताएं पहले की तरह सीधे-सीधे उपदेशात्मक शैली की न हों।समझ पिरोई हुयी हो सकती है।”(पृष्ठ संख्या-7) निश्चित रूप से दिविक जी ने अपनी इसी सोच और दृष्टिकोण के अनुरूप ही इस कविता संचयन में बाल कविताओं को संकलित किया है।इस संकलन को तैयार करने,संपादित करने और उसे प्रकाशन की पूर्णता तक पहुंचाने के लिए दिविक जी और साहित्य अकादेमी को ढेरों बधाई शुभकामनाएं।

   


         लगभग 195 कवियों की 518 बाल कविताओं वाले इस संकलन की इतनी विशेषताओं के साथ ही इसे औरबेहतर बनाने के लिए मेरे कुछ सुझाव भी हैं।जिनकी तरफ भी साहित्य अकादेमी द्वारा संकलन के आगे के संस्करण में ध्यान दिया जाना जरूरी है।पहली बात इसके हर पृष्ठ पर न सही कम से कम कुछ पृष्ठों पर कविता से सम्बन्धित रेखांकन अगर करवाया गया होता तो ये किताब थोड़ा और आकर्षक तो बन ही जाती।इसके पन्ने पलटते हुए भी पाठक को यह अहसास होता कि यह बाल कविताओं का संकलन है।जबकि कुछ पृष्ठों पर तो बहुत सारा स्पेस खाली और व्यर्थ ही गया।दूसरी बात इस महत्वपूर्ण और वृहत संकलन में इस बात की भी गुंजाइश थी कि संकलन में शामिल किये गए रचनाकारों का बहुत संक्षिप्त (अधिकतम 6-8 पंक्तियों का) परिचय और एक छोटा चित्र भी दिया जा सकता था।साहित्य अकादेमी चाहे तो इस संकलन के आगे के संस्करण में इन दो सुझावों पर विचार कर सकती है।

                                ००००००



समीक्षक--डा0 हेमन्त कुमार

1 टिप्पणियाँ:

Divik Ramesh 28 जून 2021 को 2:53 am बजे  

हार्दिक धन्यवाद हेमंत जी। आपने सम्यक दृष्टि और पूरे मन से लिखा है।

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