मानस रंजन महापात्र की दो कवितायेँ
गुरुवार, 15 जुलाई 2021
(फोटो-हेमन्त कुमार) |
(1) मैं इस समय बादल में।
सबेरे अब उठकर पढ़ता नहीं अखबार
शुरू से आखरी पन्ने तक
सांझ होते ही बैठता नहीं चाय का प्याला लेकर
इडियट बॉक्स के आगे
भोगता नहीं घंटों तक ट्रैफिक की पीड़ा
दो पैग मार कर जल्द ही लौटती गाड़ी में
पहुँचता नहीं घर।
बादल में रहने से बिसर जाती हैं
पिछले दिनों की यादें
सैंकड़ों मरे हुए शहर
खोई हुई नदियाँ
रास्ता भटक कर किसी अनजान पुल से
भरी नदी में गिरी हुई रेल गाड़ी
नाम भूले लोग सारे
इस समय मेरे साथ बादल में।
एक अजनबी भूखंड के संग सहवास
लिखा था मेरी कुंडली में
बैठे थे बांछानिधि पंडित जी
तब मैंने इसे उड़ा दिया था हँसी में
पर क्या सच कहा था पंडित ने
या यह मेरी नियति थी
या इस जन्म से अगले जन्म तक
मेरी अनंत यात्रा का रूप था
या नित नयी खोज में चिरकालीन भय और रोमांच ?
चारों ओर बादल
क्या बादलों के होते हैं धर्म, जाति, गोत्र
होते हैं उनके बिछौने, कुर्सी, टेबुल
पेड़-पौधे, पवन, पहाड़?
मैं एक विचित्र बादल, ढूंढता रहता
भूले बिसरे एक खोये हुए महल को।
००००
(2) वनभोज
इतना आसान नहीं है जीवन
कि बुलाते ही आ जाए
कुछ मांगो तो हँस-हँस कर
पीठ थपथपा दे।
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
न नींद, न स्वप्न, न कोलाहल, न सहवास
और न ही मौसम,
अच्छा न भी लगे, जीवन को ढूंढो मत
वह काफी परेशान है आजकल।
क्या है तुम्हारे वश में
कई सारी चीजें जो चाही नहीं
पर पाते रहे
चाहकर भी मिले नहीं कई सूत्र
असीमित जीवन के।
बस चलते रहो, बीच रास्ते रुक जाओ तो
टकराएगा कोई पीछे से
क्या जानते नहीं
कारखाने का मुट्ठीभर धुआँ हो तुम
जिसका न बीता हुआ कल था
न आनेवाला कल होगा,
ऐसा जीवन, जो उसका अपना हो।
00000
कवि-मानस रंजन महापात्र
(मूल ओड़िआ से राधू मिश्र द्वारा अनूदित)
मानस रंजन महापात्र –15 जून 1960 को उड़ीसा में जन्मे मानस पिछले कम से कम चार दशक से लिख रहे हैं।ओड़िशा के अत्यंत सुपरिचित एक "अपरिचित" कवि हैं।धरती से आकाश तक है उनकी कविता की व्याप्ति।जिसका आधार है उनकी विश्व दृष्टि।दीर्घ काल से देश, विदेश का भ्रमण कर रहे चिर प्रवासी मानस अपने तेवर के लिए विद्रोही कवि भी माने जाते हैं। जीवन को इन्होंने एक सम्मोहन के रूप में स्वीकार किया है और रोज सवेरे उसके चित्र में डूबे रहते हैं।उनके बंधुओं की संख्या बहुत अधिक है, शत्रुओं की भी।मानस ने ढेर सारी कहानियाँ और एक उपन्यास भी लिखा है।इनके चर्चित काव्य संग्रह हैं : माटिरु आकाश पर्यंत, चित्रकरर सकाल, आमे दुहें समय साम्नारे और सम्मोहनरे जीबन।मानस ने कई पुस्तकों का अनुवाद और संपादन भी किया है।
7 टिप्पणियाँ:
सुंदर कविताएं
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१७-०७-२०२१) को
'भाव शून्य'(चर्चा अंक-४१२८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
दोनों कविताएँ बहुत सुंदर हैं! पढ़ कर बहुत अच्छा लगा! धन्यवाद!
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सर!
बेहतरीन रचनाएं।
बहुत ही अच्छी कविताएं हैं आपकी...।
मन के एहसासों को सुंदर शब्दों में ढाला है।
सुंदर कविताएं।
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