कैंसर-दर-कैंसर(लघुकथा)
गुरुवार, 22 अगस्त 2019
लड़की भागदौड़ से पस्त होकर बरामदे में निढाल
बैठी थी।अन्धेरा भी हो चला था।भगेलू ने बड़ी दयनीय और मरी सी आवाज में उससे
डाक्टरों की हड़ताल के लिए पूछा ...पर लड़की क्या जवाब देती ..बस उसने भगेलू से अपने आंसू
छुपाने के लिए मुंह दूसरी ओर घुमा लिया।इसी बीच भगेलू फिर दर्द से चीख पड़ा।लड़की रोती
हुयी उसका सर सहलाने लगी।
इसी बीच एक वार्ड ब्वाय वहां आकर दोनों की
तरफ देखने लगा।लड़की की निगाहें जैसे ही उसकी और गयीं वह दोनों के और करीब आ गया।शायद
वो बात करने का बहाना ढूँढ़ रहा था।
“क्या दादा को तकलीफ ज्यादा है क्या?”वार्ड ब्वाय
ने पूछा।
“भैया ----”लड़की के आगे
के शब्द रुलाई में दब गए।
“क्या बतायें..ई
डाक्टरों की हड़ताल को...लेकिन घबराओ हम बात करेंगे एक डाक्टर साहेब से।”वार्ड
ब्वाय ने उसे सांत्वना दी।
“भैया क्या आप किसी
डाक्टर को जानते हैं क्या?” लड़की ने पूछा।
“हम इसी अस्पताल के बड़े
डाक्टर साहब को जानते हैं और उन्हें दिखा भी देंगे लेकिन.....” कहते हुए वार्ड
ब्वाय बहुत कुटिलता से मुस्कराया।
“लेकिन....लेकिन क्या
भैया ...मैं बापू को दिखाने के लिए जितना रुपया कहोगी दे दूंगी...”
“मुझे रुपया पैसा नहीं
चाहिए भाई...बस ज़रा ..थोड़ी देर के लिए मेरे साथ अस्पताल के एक कमरे में चलना होगा
तुम्हें ....”कहते हुए वार्ड ब्वाय ने लड़की के उभारों पर एक बींधती हुई निगाह डाली
और हौले से मुस्कराया।
लड़की युवा थी ...उसकी
निगाहों का अर्थ समझ गयी उसका चेहरा तमतमा गया।लड़की के हाथ की मुट्ठियाँ भी क्रोध
से भींच गयीं।
उसका यह रूप देख कर
वार्ड ब्वाय थोड़ा घबराया,“नहीं कोई जबरदस्ती नहीं...मैंने तो सोचा भाई कि तुम
लोगों की तकलीफ कुछ कम हो जाय...तुम अपने बाप को ऐसे ही तड़पा कर मारना चाहती हो
तो...ठीक है मैं चला...”कहकर वार्ड ब्वाय वहां से चलने को हुआ।
लड़की संज्ञाशून्य हो कर
अपने बाप को देख रही थी...कभी उसकी निगाह उस वार्ड ब्वाय पर जाती कभी तड़प रहे बाप
पर।तभी उसका पिता फिर दर्द से चीख पडा।उसकी दर्द भरी चीख से आहत लड़की ने बस एक
सेकण्ड में निर्णय कर लिया।उसने झट अपने आंसू पोंछे और बाप का सर एक बार सहला कर
वार्ड ब्वाय के साथ अस्पताल की भीड़ में खो गयी।
लगभग आधे घंटे बाद लड़की अस्त व्यस्त सी बहुत
धीरे धीरे चलते हुए पिता की ओर बढ़ रही थी।वार्ड ब्वाय ने उसे समझाया था कि वो दस
मिनट में स्ट्रेचर का इंतजाम करके आ रहा है।फिर डाक्टर के पास उसके पिता को ले
चलेगा। लड़की बाप के पास पहुंची तो कई लोग
वहां इकट्ठे होकर उसे देख रहे थे।पिता के बंद होठों से खून रिस रहा था उसकी आँखें
फटी फटी सी आसमान देख रही थीं।शायद वो कैंसर के दर्द की आखिरी सीमा से मुक्त हो
गया था।लड़की के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली वो धम्म से पिता की लाश के बगल में
बैठ गयी।
०००००
डा० हेमन्त कुमार
3 टिप्पणियाँ:
मार्मिक कथा।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 22/08/2019 की बुलेटिन, " बैंक वालों का फोन कॉल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत मार्मिक
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