एक टिप्पणी --“आदिज्ञान”--एक आध्यात्मिक यात्रा के दो दशक।
सोमवार, 26 अगस्त 2019
"आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर,2019 अंक
मुंबई से
प्रकाशित भारतीय संस्कृति के उच्च मूल्यों के लिये
समर्पित रही यह पत्रिका अपने प्रकाशन के दो दशक पूरे करने जा रही है।मुझे प्रसन्नता है कि भाष,साहित्य,कला, दर्शन,धर्म और
आध्यात्मिक मूल्यों से जुड़े साहित्य के साथ प्रकाशन मेँ स्तरीयता से समझौता न करने
वाली इस पत्रिका से मैं इसके प्रकाशन के
शुरुआत से ही एक लेखक और पाठक के रूप मे जुड़ा रहा हूं।भारतीय परम्परा में दर्शन और अध्यात्म का क्षेत्र इतना व्यापक है
कि विद्वान और मनीषी अपनी तरह से इसकी व्याख्या करते आ रहे हैं।कुछ विद्वानों ने
धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों की भाषा को इतना जटिल बना दिया है कि सामान्य पाठक इससे दूर होता चला गया। मुझे यह कहने मेँ कतई संकोच नहीँ है कि आदिज्ञान ने आम बोल-चाल की भाषा मे लिखने वाले विद्वानों को एक मंच पर लाकर धर्म और अध्यात्म,यहाँ तक कि तंत्र-मन्त्र के बारे मेँ फैली भ्रांतियों को दूर
करके एक वैज्ञानिक सोच के साथ पाठकों के सामने रखा है।इस नये अंक की सामग्री में इन सब बातों को देखा-समझा
जा सकता है।
हमारा ब्रह्मांड सदैव
से ही एक कौतूहल का विषय रहा है।धरती समूचे ब्रह्मांड का
तीर्थस्थल है(मुरलीधरचांदनीवाला),भारतीय परम्परा में पृथ्वी(श्रीकृष्ण जुगनू),मनुष्य और प्रकृति का आदिकालीन अन्त:सम्बंध(डा0अमर सिंह
बधान),मृत्यु जीवन की सहचरी
है(डा0कमल प्रकाश
अग्रवाल),विज्ञान सम्मत हैं हिन्दू पर्व और मान्यतायें(लव
गडकरी) जैसे आलेख पाठकों में धर्म और अध्यात्म के प्रति एक
वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने का काम करते
हैं।कुछ अन्य आलेख हमारे लोक जीवन से सीधे जुड़े हुए हैं,चाहे वह दिया-बाती की परम्परा हो या फिर नववर्ष के विभिन्न रूपों
की बात।अन्य आलेख भी अपनी समसामयिकता और व्यापक पहुंच के कारण पठनीय बन पड़े
हैं।अंक की कविताएं भी अपनी स्तरीयता बनाये हुए हैं।
आज के इस कठिन साहित्यिक दौर में इस तरह की लघु पत्रिका निकालना निश्चित ही एक दुस्साहस और जोखिम भरा काम है।इस दुस्साहस के लिये पत्रिका के सम्पादक श्री जीत सिंह चौहान निश्चित ही
बधाई के पात्र हैं।
०००००
कौशल पांडेय
1310 ए,बसंत विहार,
कानपुर-208021
मो0---9532455570
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