पिता (दस क्षणिकाएं)
रविवार, 19 जून 2016
(मेरे पिता जी आदरणीय श्री प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव ।जो आज 87 वर्ष की उम्र में भी लेखन में पूरी तरह सक्रिय हैं।ईश्वर आपको दीर्घायु करें।) |
(एक)
पिता
विशाल बाहुओं का छत्र
वट वृक्ष
हम पौधे
फ़लते फ़ूलते
वट वृक्ष की
छाया में।
(दो)
पिता
अनन्त असीमित आकाश
हम सब
उड़ते नन्हें पाखी।
(तीन)
हम
लड़खड़ाते
जब जब भी
सम्हालते पिता
आगे बढ़ कर
बांह पसारे।
(चार)
आंसू
बहते गालों पर
ढाढ़स देता
पिता के खुरदरे
हाथों का स्पर्श।
(पांच)
पिता
बन जाते उड़नखटोला
हम करते हैं सैर
दुनिया भर की।
(छः)
हमारी ट्रेन
खिसकती प्लेटफ़ार्म से
पिता
पोंछ लेते आंसू
पीछे मुड़कर।
(सात)
पिता
बन जाते हिमालय
कोई आक्रमण
होने से पहले
हम पर।
(आठ)
जब भी
आया तूफ़ान कोई
हमारे जीवन में
पिता बन गये
अजेय अभेद्य
दीवार।
(नौ)
पिता
बन गये बांध
समुन्दर को
बढ़ते देख
हमारी ओर।
(दस)
पिता
बन गये बिछौना
हमें नंगी जमीन पर
सोते देख कर।
000
डा0हेमन्त कुमार
2 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-06-2016) को "योग भगाए रोग" (चर्चा अंक-2380)) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया. बिल्कुल सही.
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