भजन-(7)-सीता का त्याग
सोमवार, 4 मई 2015
माता को पुत्र कैसे निर्जन में छोड़ आये, बिनती हमारी नाथ ऐसा ना कीजै।
चैदह बरस दिन कांटों में बीता है, फिर घूमें वन वन प्रभु ऐसा ना कीजै।।
ऐसा विधाता खेल कैसे तू खेलता है, इतना निठुर हिया कैसे हो जाता है,
फूलों में रहने वाली काटों में सोये, कहते हुए हिय
कांप नहीं जाता है,
नन्हीं
चिनगारी कहीं अवध को जला न जाये,अवसर अभी है विचार प्रभु कीजै।
माता को पुत्र कैसे निर्जन में छोड़ आये, बिनती हमारी नाथ ऐसा ना कीजै।।
राजा है आप मुझे मृत्यु दंड दे दें,लेकिन मैं ऐसा आदेश
नहीं मानूंगा।
गंगा समान मां ममतामयी को साथ ले,जंगल में छोड़नें ना
जाऊँगा॥
दया की भीख आज सेवक को दे दें नाथ, मैया सिया के साथ
ऐसा ना कीजै।
चौदह बरस दिन कांटों में बीता है, फिर घूमें वन वन प्रभु ऐसा ना कीजै।।
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राजेश्वर मधुकर
शैक्षिक दूरदर्शन लखनऊ
में प्रवक्ता उत्पादन के पद पर कार्यरत श्री राजेश्वर मधुकर बहुमुखी प्रतिभा के
धनी हैं।मधुकर के व्यक्तित्व में कवि,लेखक,उपन्यासकार और
एक अच्छे फ़िल्मकार का अनोखा संगम है।“सांझ की परछांई”(बौद्ध दर्शन पर आधारित
उपन्यास),“आरोह स्वर”(कविता संग्रह),“घड़ियाल”(नाटक), “छूटि गइल अंचरा के दाग”(भोजपुरी नाटक) आदि इनकी
प्रमुख कृतियां हैं। इनके अतिरिक्त मधुकर जी ने अब तक लगभग एक दर्जन से अधिक
टी वी सीरियलों का लेखन एवं निर्देशन तथा “सांवरी” नाम की भोजपुरी फ़ीचर
फ़िल्म का लेखन,निर्देशन एवं
निर्माण भी किया है।आपके हिन्दी एवं भोजपुरी गीतों के लगभग 50 कैसेट तथा कई वीडियो एलबम भी बन चुके
हैं।
मो0
9415548872
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