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फ़ेसबुक---शेरो शायरी,गिले शिकवे से कर लत्तम पैजार तक------

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

            
(फ़ेसबुक से साभार)
आज पूरी दुनिया में फ़ेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगभग नब्बे करोड़ से ऊपर और हमारे अपने देश भारत में लगभग नौ करोड़ से अधिक हो चुकी है।फ़रवरी 2004 में शुरू हुई इस सोशल नेटवर्किंग साइट के संस्थापक संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने उस समय इस वेबसाइट की इतनी बड़ी लोकप्रियता की कल्पना भी नहीं की होगी।
            आज फ़ेसबुक पर आपको बूढ़े,युवा,बच्चे,किशोर,किशोरियां,गृहस्थ,प्रोफ़ेशनल्स,मीडिया के लोग,अभिनेता  -----सभी मिल जाएंगे। लोगों ने अपनी अपनी पसंद के हर तरह के समूह बना लिये हैं। आपको पढ़ने और देखने के लिये गंभीर से गंभीर साहित्य और सतही से सतही साहित्य मिल जाएगा। गीत,गज़ल, कविताएं मिलेंगी तो कुछ गंभीर विषयों पर लेख भी मिलेंगे।आपको फ़िल्मों के पुराने से पुराने मधुर गीत शेयर किये मिल जाएंगे तो आज का कानफ़ाड़ू संगीत भी मिलेगा। लोगों के अच्छे विचार मिलेंगे तो कुछ के मन से निकली भड़ास भी मिलेगी।लोगों द्वारा बनाए गये आपसी घरेलू रिश्तों के संबोधन दिखेंगे तो गाली गलौज और जुत्तम पैजार भी मिलेगा। यानि कि फ़ेसबुक आज अन्तर्जाल पर खुला हुआ एक ऐसा जादुई पिटारा है जिसमें आप जो भी ढूंढेंगे मिलेगा ---अब किस्मत आपकी। 
           जहां तक समाज पर प्रभाव की बात है तो हर माध्यम का समाज पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह का प्रभाव पड़ता है।चाहे वह प्रिण्ट हो या फ़िर इलेक्ट्रानिक।प्रिण्ट से ही पढ़ कर लोग ऊंचे से ऊंचे ओहदों पर पहुंच जाते हैं। और प्रिण्ट के ही सस्ते सड़क छाप साहित्य के लपेट में आकर बहुत सारे बच्चों ने अपनी डिवीजन खराब कर ली। यही बात रेडियो,टी वी,और फ़िल्म माध्यमों के साथ रही है। और यही अन्तर्जाल  सबसे लोकप्रिय पोर्टल फ़ेसबुक के बारे में भी कही जा सकती है।
         आज फ़ेसबुक का इस्तेमाल ज्यादातर लोग शुद्ध मनोरंजन, या फ़िर समय बिताने के लिये कर रहे हैं।कुछ इसका इस्तेमाल अपना(व्यावसायिक)प्रचार करने के लिये कर रहे।कुछ रचनात्मक कर्म से जुड़े नवोदित रचनाकारों को एक अच्छा खासा मंच मिल गया है अपनी रचनाओं को लोगों तक पहुंचाने का। गृहणियां जो अब तक सिर्फ़ चूल्हे चौके में व्यस्त थीं अब इस मंच के माध्यम से लोगों से बोल बतिया रही हैं। लोग अपने तमाम भूले बिछड़े दोस्तों से मिल गये।लोगों के नए नए मित्र बन गये।(अब उसमें कितने सच्चे कितने झूठे यह कौन जनता है?) बहुत सारे पुराने साहित्यकारों,लेखकों को भी एक अच्छा माध्यम मिल गया एक दूसरे से सम्पर्क में रहने और विमर्श करने का। ये सब तो कुछ इस मुख पुस्तक(फ़ेसबुक) के सकारात्मक प्रभाव हैं हीजो हमें प्रत्यक्ष रूप से दिख रहे हैं।इसके अलावा भी बहुत सारे  सकारात्मक पहलू हैं जिनका उल्लेख किया जा सकता है।
          इनके साथ ही बहुत सारे नकारात्मक पहलू भी हैं जिन पर हमें सोचना ही होगा---और उनका कोई ठोस उपाय भी खोजना होगा जिससे इस असरदार मंच का कुछ सदुपयोग हो सके।
0सबसे बड़ी बात यह है कि यह एक पूरी तरह आभासी दुनिया है जहां यह पता लगा सकना काफ़ी कठिन है कि ---जो आपका मित्र बन रहा/रही है ---वो कोई वास्तविक व्यक्ति है या फ़ेक आई डी वाला। फ़ेसबुक टीम द्वारा यह तो संभव नहीं कि हर एकाउण्ट का वेरीफ़िकेशन कर सकेक्या हमारी सरकार इसके सम्बन्ध में कोई निर्णय ले सकती है?जिस तरह बैंक एकाउण्ट के लिये औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैंवैसा ही कुछ यहां भी हो?
0अक्सर छद्म नाम वाले व्यक्ति आपसे नजदीकी बढ़ा कर आपकी व्यक्तिगत जानकारियां लेकर उनका दुरुपयोग करते हैं।इस मामले में खासकर युवतियों और गृहणियों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।यद्यपि इसके लिये पुलिस विभाग में साइबर क्राइम सेल बने हैं पर लोग वहां जाते ही कहां हैं?
0एक बात पर  और विमर्श की जरूरत है जो पिछले दिनों बहुत चर्चा में रहीवो है इस नये मीडिया पर सेंसर की---तो भाई सीधी सी बात है कि जब हम सेंसर की हुई फ़िल्में देखते हैं तो यहां सेंसर से परहेज क्यों?क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी का यही मतलब है कि किसी को कभी भी कुछ भी कह दें?या एक निःशुल्क मिले माध्यम पर किसी की कोई भी तस्वीर या पोर्न वीडियो पोस्ट कर दें?
0चोरी या कटिंग पेस्टिंग के झगड़े तो फ़ेसबुक पर आम हो चुके हैं।किसी न किसी की कोई न कोई रचना रोज चोरी होकर किसी और के नाम से छप जाती है और फ़िर शुरू होता है लत्तम पैजार का हंगामा----।इसका भी कोई हल खोजना होगा।
  इन खामियों के बावजूद मेरा यही मानना है कि आज की तारीख में अन्तर्जाल पर फ़ेसबुक से अधिक असरदार अभिव्यक्ति का माध्यम दूसरा नहीं है।यदि इसका सही ढंग से इस्तेमाल किया जाय तो यह हमारी शिक्षा व्यवस्था से लेकर राजनीति,समाज,संस्कृति सभी के विकास में सहयोग देने वाला एक प्रभावशाली माध्यम(टूल) साबित हो सकता है।
                             000

डा0हेमन्त कुमार

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी,  9 फ़रवरी 2015 को 4:00 am बजे  

फेसबुक ना हो तो क्या ज़िन्दगी चल नहीं सकेगी ... फेसबुक की लत्त छोड़े नहीं छुटती है साहब ....अब क्या करे हम सभी फेसबूकिये बन गये है जैसे किसी को नशे की लत्त लग जाती है , उसी तरह आजकल फेसबुक की लत्त है , इससे बचना आसान नहीं है , फेसबुक अच्छा भी है और थोडा-बहुत बुरा भी कहा जा सकता है , लेकिन जो भी हो फेसबुक को छोड़े बिना नहीं रहा जा सकता है .. मेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.

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