मुद्दा--हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य
मंगलवार, 13 जनवरी 2015
आज जब कि प्रचुर मात्रा
में बाल साहित्य लिखा जा रहा है,प्रकाशित भी
हो रहा है।ऐसे में किसी भी सेमिनार,संगोष्ठी साहित्यिक समारोह में बाल
साहित्य की चर्चा न होना इस बात का द्योतक है कि आज भी हिन्दी साहित्य के मठाधीश
बाल साहित्य को साहित्य की श्रेणी में नहीं रखते। इतना ही नहीं आप हिन्दी साहित्य
के इतिहास और आलोचनाओं से सम्बन्धित पुस्तकें उठा कर देखिये उसमें भी कहीं बाल साहित्य की चर्चा
नहीं मिलेगी,या मिलेगी भी तो बहुत नाम मात्र की।
जब कि वास्तविकता यह है कि
खड़ी बोली हिन्दी के आरंभिक काल से ही बाल साहित्य लिखा जा रहा है।सभी बड़े साहित्यकारों ने भी थोड़ा बहुत तो बाल साहित्य लिखा ही है।चाहे वह बच्चों को उपदेश देने के लिये लिखा हो अथवा
मनोरंजन के लिये।महादेवी वर्मा,डा0रामकुमार वर्मा,सुमित्रा नंदन पंत,मुंशी
प्रेमचन्द सभी ने बच्चों के लिये साहित्य लिखा है।लेकिन उनके इस साहित्य को भी
बड़ों के ही साहित्य में ही स्थान दिया गया।
उस समय भी बाल
साहित्य को दोयम दर्जे का साहित्य ही माना जाता था।इतना ही नहीं उस समय बहुत से साहित्यकारों की
यह सोच भी थी कि जो साहित्यकार बड़ों के लिये साहित्य लिखने में असफ़ल हो जाते
हैं वो बाल साहित्य लिखना शुरू कर देते हैं।जबकि वास्तविकता इस तथ्य से कोसों दूर
है।बाल साहित्य लिखना सामान्य साहित्य लिखने की अपेक्षा बहुत कठिन है।बाल साहित्य वही
लिख सकता है जिसे बाल मनोविज्ञान के साथ ही बच्चों की भावनाओं,संवेदनाओं, उनकी रुचियों अरुचियों के साथ ही उनके स्तर की भाषा
की समझ हो।बाल साहित्य लिखने के लिये लेखक को खुद भी बच्चा बनना पड़ता है।
आज की समस्या
यह है कि बाल साहित्य प्रचुर मात्रा में लिखा जा रहा है।प्रकाशित भी हो रहा है।लोगों में बाल साहित्य को लेकर काफ़ी
जागरूकता,उत्सुकता सभी कुछ है। (अब यह जरूर है कि लिखा जा रहा पूरा बाल साहित्य
बच्चों के लिये उपयोगी नहीं है।कुछ बाल साहित्यकार तो बहुत अच्छा साहित्य लिख रहे
हैं कुछ घटिया।और यह स्वाभाविक भी है।)लेकिन---फ़िर भी बाल साहित्य को वह दर्जा
नहीं मिल पा रहा है जो मिलना चाहिये।आज भी बाल साहित्य मुख्य धारा से हटकर हाशिये
पर ही पड़ा है।यह तो हुयी बाल साहित्य को पहचान मिलने की समस्या।
इसके अलावा भी बाल साहित्य के ऊपर कई संकट
हैं।मसलन प्रकाशन,पुस्तकों के आकर्षक उत्पादन और सबसे बढ़ कर बच्चों तक पुस्तकें
पहुंचने की। बच्चों के लिये
प्रकाशित ज्यादातर किताबों का उत्पादन इतने घटिया स्तर का रहता है कि बच्चे उन्हें
पढ़ने के लिये आकर्षित ही नहीं होंगे। ज्यादातर प्रकाशक बाल साहित्य सिर्फ़ सरकारी
खरीद के लिये प्रकाशित करते हैं।
बाल साहित्य को
आगे बढ़ाने की दिशा में नेशनल बुक ट्रस्ट, चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट,और भारत सरकार के प्रकाशन विभाग का
योगदान महत्वपूर्ण है।इनके अलावा कुछ एन जी ओ जैसे प्रथम बुक्स,नालन्दा,एकलव्य आदि
भी बच्चों तक अच्छी आकर्षक और बढ़िया किताबें पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इन
संगठनों द्वारा प्रकाशित बच्चों का साहित्य विषयवस्तु और साज सज्जा दोनों ही
दृष्टियों से बेहतरीन कहा जा सकता है।
कुछ प्राइवेट प्रकाशक भी बच्चों
की अच्छी किताबें छाप रहे हैं।लेकिन दिक्कत वही है इन किताबों की पहुंच बच्चों तक नहीं
हो पा रही है।ये किताबें भी या तो सरकारी खरीद में जाकर पुस्तकालयों की आल्मारियों
में बन्द हो जा रही हैं या फ़िर महंगी होने के कारण बच्चों के अभिभावकों की जेब से
बाहर हैं।
यद्यपि बच्चों तक
किताबें पहुंचाने की दिशा में नेशनल बुक ट्रस्ट का बाल साहित्य केन्द्र(एन सी सी एल) काफ़ी
प्रयास कर रहा है।इसकी तरफ़ से देश भर में स्कूलों के साथ ही मुहल्लों में भी पाठक
मंचों की स्थापना करवाई जा रही है। तथा उन केन्द्रों को एन बी टी अपने प्रकाशनों
के साथ ही दूसरे प्रकाशकों की भी बच्चों की अच्छी किताबें सस्ते मूल्य पर उपलब्ध करा रहा
है।साथ ही कई एन जी ओ भी गांवों के साथ ही झुग्गी,झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिये बाल साहित्य
उपलब्ध कराने की दिशा में सक्रिय हैं।फ़िर भी सरकारी स्तर पर इन कार्यक्रमों को और
गति देने की जरूरत है।
मेरे विचार से
हिन्दी बाल साहित्य को हाशिये पर से उठा कर साहित्य की मुख्य धारा में लाने के लिये सरकारी स्तर पर
निम्न लिखित प्रयास होने चाहिये।
0 बाल साहित्यकारों को भी साहित्य की मुख्य धारा में स्थान
दिलवाना।
0 अच्छा बाल साहित्य लिखने के लिये उचित प्रशिक्षण की
व्यवस्था।
0 लिखे जा रहे श्रेष्ठ बाल साहित्य के आकर्षक उत्पादन एवम
प्रकाशन की व्यवस्था।
0 चूंकि बच्चों की किताबों की डिजाइनिंग,ले आउट, और उत्पादन
पर ज्यादा खर्च आता है।इसलिये
बाल साहित्य के प्रकाशकों को बढिया स्तर का कागज सस्ते मूल्य
पर उपलब्ध कराने,सस्ती दरों पर किताबों के छपाई की व्यवस्था ---अथवा बच्चों के
लिये आकर्षक किताबें छापने वाले प्रकाशकों के लिये
सरकार की तरफ़ से सब्सीडी देने की व्यवस्था।
0 और सबसे अन्तिम
और मह्त्वपूर्ण बात यह कि प्रकाशित अच्छे बाल साहित्य को बच्चों के हाथों तक
पहुंचाने की व्यवस्था।
0 इस सन्दर्भ में अभिभावकों को भी यह समझाना कि वो अपने ऐशो आराम के खर्च में से कुछ अंश बचा कर अपने बच्चों के लिये अच्छा साहित्य,बाल
पत्रिकाएं आदि खरीदने पर भी लगाएं।
यदि हमारी सरकार के साथ ही सामाजिक विकास
से जुड़े कार्यकर्ता,शिक्षक,अभिभावक भी इन बिन्दुओं पर कुछ ध्यान दें तो सम्भवतः
हिन्दी के बाल साहित्य को उचित दिशा और स्थान मिल सकेगा।
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डा0हेमन्त कुमार
6 टिप्पणियाँ:
अच्छा और उपयोगी आलेख
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-01-2015 को चर्चा मंच पर दोगलापन सबसे बुरा है ( चर्चा - 1859 ) में दिया गया है ।
धन्यवाद
हिन्दी बाल साहित्य को हाशिये पर से उठा कर साहित्य की मुख्य धारा में लाने के लिये सरकारी स्तर पर किये जाने वाले आपके लिखे प्रयास स्वागतयोग्य व अनुकरणीय हैं ....
इस हेतु ब्लॉग ही नहीं पत्र के माध्यम से भी सरकार से भी पत्राचार किया जाए तो कुछ बात बने ..
मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!
मकर संक्रान्ति की शुभकामनायें
सुन्दर प्रस्तुति
bhut accha likhte ho g if u wana start a best blog site than visit us
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