एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम-----
रविवार, 9 मार्च 2014
आदरणीय नेता जी,
सादर चरणस्पर्श।
आशा करता हूं अन्य सभी
प्रत्याशियों की ही तरह आप भी अपने चुनाव की तैयारी में व्यस्त हो चुके होंगे।लोगों
से चन्दा इकट्ठा करने से लेकर हर मुहल्ले,गांव,गली—सभी की यात्रायें आप भी शुरू कर चुके होंगे।घर घर जाकर
लोगों से वोट देने की सिफ़ारिश कर रहे होंगे।आखिर पांच सालों के बाद ही लोगों से
मुलाकात करने का जो मौका मिलता है।यही तो वो अवसर होता है जब आम जनता के साथ आप
अपनी सारी नातेदारियां,सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करते हैं।बस इस अवसर के बाद तो
हमारे मां-बाप,अध्यापक,बड़े बूढ़े,गांव के,शहर के सभी लोग, आपको ढूंढ़ते ही रह जायेंगे---सर्फ़
एक्सेल के दाग की तरह।और आप कहीं नजर ही नहीं आयेंगे।
अगर आप चुनाव जीत गये तो
देश के बहुत सारे महत्वपूर्ण कामों में संलग्न हो जायेंगे।मसलन तरह तरह के घोटाले
करने,देश के विकास के लिये इकट्ठा जनता की खून पसीने की कमाई के धन को अपने बैंक
एकाउण्ट्स में जमा करवाने,अपने विरोधियों को एक एक कर रास्ते से हटाने,समय समय पर
देश के विकास के नाम पर विदेश यात्रायें करने,किसी अबला नारी का शोषण करने और बाद
में उसकी हत्या करवाकर अपनी प्रतिष्ठा बचाने-----ऐसे ढेरों काम होंगे आपके पास।
भला ऐसे में आपको देश की जनता से मिलने,उसकी खैरियत जानने की फ़ुर्सत कहां मिलेगी?
खैर यह तो आपकी और देश की जनता की
आपसी बात है मैं इस पचड़े में क्यों पड़ूं।मैं अब अपने मूल मुद्दे पर आ रहा हूं।
मैं आप सभी को यह चिट्ठी खास
तौर से यह जानने के लिये लिख रहा हूं कि इन चुनावों में कभी हमारे यानि कि बच्चों
की बात को मुद्दा क्यों नहीं बनाया जाता।मुझे बहुत आश्चर्य इस बात पर होता है कि – इस देश में चुनाव जीतने के लिये
हर पार्टी अपना कोई न कोई मुद्दा जरूर
बनाती है।कोई देश से गरीबी खतम करने का तो कोई बेरोजगारी खतम करने का।कोई पूरे देश
में हजारों उद्योग धंधे लगाने को तो कोई गांव गांव तक बिजली,पानी पहुंचाने को।कोई
कहता है हम हरित क्रान्ति ला देंगे,तो कोई चिल्लाता है कि हम हर घर के एक व्यक्ति
को सरकारी नौकरी की गारण्टी लेते हैं।जितने नेता उतने ही मुद्दे।
जब देश के विकास के सारे मुद्दे खतम
तो मन्दिर मस्जिद का मुद्दा,धर्म सम्प्रदाय का मुद्दा,जाति बिरादरी का
मुद्दा,आरक्षण देने का मुद्दा---कहां तक गिनाऊं नेता जी ---आप लोगों के पास तो
मुद्दों का कोई खजाना गड़ा हुआ है।चुनाव आया नहीं कि मुद्दे निकलने शुरू।अब वो
मुद्दे पूरे होंगे या नहीं इस बात की गारण्टी तो न आप लेते हैं न ही आपकी पार्टी।और
फ़िर इनके पूरे होने की जरूरत भी क्या है।ये तो आप लोग सिर्फ़ जनता को रिझाने,उसे
भरमाने के लिये ही अपने चुनावी एजेण्डे में डालते हैं। चुनाव खतम –आप चुन लिये गये –विधायक या मंत्री बन गये –बस इन मुद्दों की बात भी खतम।अगले
चुनाव में फ़िर नये मुद्दे निकाले जायेंगे।
लेकिन मेरे सम्माननीय,आदरणीय
नेता जी लोग आपसे मैं इस भारत देश के सारे
बच्चों की ओर से पूछना चाहता हूं कि किसी भी चुनाव में आप लोग हमें यानि बच्चों को
मुद्दा क्यों नहीं बनाते?क्या हम लोग इस देश में नहीं रहते?या हमारा इस भारत देश
से कोई नाता नहीं है?क्या हम यहां के नागरिक नहीं माने जाते?फ़िर क्यों हमारे साथ
ऐसा व्यवहार किया जा रहा है कि देश का कोई भी नेता चुनाव के समय हमें,हमारी
बिरादरी,हमारे विकास,हमारे बचपन को मुद्दा क्यों नहीं बनाता है?
एक तरफ़ तो आप बड़े लोग यह भी कहते हैं कि बच्चे ही हमारे देश के भविष्य
हैं,इन्हीं के कन्धों पर कल राष्ट्र का भार आना है,ये ही हमारे देश का नाम रौशन
करेंगे---और दूसरी तरफ़----चुनाव के समय हम पूरी तरह से गायब।न ही आप हमारे किसी
हित को मुद्दा बना रहे,न ही हमारे भविष्य की बात कर रहे,नही हमारी शिक्षा,हमारे
स्वास्थ्य,हमारे अधिकारों,को चुनावी मुद्दा बना रहे।आखिर माजरा क्या है?कहीं यह
हमारे खिलाफ़ कोई साजिश तो नहीं रच रहे आप लोग?इसलिये कि हम अबोध हैं,हम आपकी तरह
खुद को स्थापित करने के लिये हर तरह के हथकण्डे नहीं अपना सकते,हम कमजोर हैं,हम
सच्चे और पवित्र दिल,आत्मा वाले कहे जाते हैं?
आदरणीय नेता जी,एक अनुरोध मैं
सभी बच्चों की तरफ़ से आपसे और करना चाहूंगा कि—आप भले ही हम बच्चों को अपने चुनाव का मुद्दा न बनायें।यह
हमें मंजूर है। लेकिन चुनाव जीत जाने,विधायक या मंत्री संत्री बन जाने के बाद कम
से कम आप लोग इतना तो कर ही सकते हैं कि---
(1) हमारी शिक्षा के लिये
आवंटित धन का कुछ हिस्सा तो हमारी शिक्षा पर ही खर्च करवायें।बाकी को अपना बैंक
बैलेंस बढ़ाने,विभाग के अधिकारियों से लेकर सभी हाकिम हुक्कामों की ऐयाशी पर खर्च
करें।।
(2) मुझे आशा है कि आप हमारे
स्वास्थ्य की रक्षा के लिये आवंटित कुल धन का सिर्फ़ पचास प्रतिशत ही हमारे ऊपर
खर्च करके लाखों की संख्या में मरने वाले हमारे भाई बहनों को जरूर बचा सकते हैं।बाकी
का सारा धन आप कहीं भी खर्च करने के लिये स्वतन्त्र हैं।उससे चाहे अपनी कोठियां
बनवाइये या फ़िर फ़ार्म हाउस खरीदिये।
(3) सुना है—विश्व बैंक के अलावा भी
युनिसेफ़,यु एन डी पी,डब्ल्यू एफ़ पी, जैसी विश्व स्तर की कई एजेंसियां भी हम बच्चों
के विकास,शिक्षा,स्वास्थ्य आदि के लिये बहुत ढेर सारा रूपया देती हैं।आप चुनाव
जीतने के बाद जरा पता करियेगा कि आखिर वो सारा रुपया जाता कहां है?कहीं ऐसा तो
नहीं कि आपके ही हाकिम हुक्काम लोग सारा धन आपस में ही बांट लेते हों और आपको खबर
भी न लग पाती हो?क्योंकि उस पैसे से जितना विकास हम बच्चों का होना चाहिये वो तो
हो नहीं रहा। फ़िर जाता कहां है वो धन?
(4) माननीय नेता जी,ये तो आप
भी जानते होंगे कि शिक्षा ही किसी देश के विकास की असली सीढ़ी है।फ़िर देश की आजादी
के इतने बरस बीत जाने के बाद भी आप भारत में पूर्ण साक्षरता क्यों नहीं लागू कर
पाये?आज भी देश में इस शिक्षा के लिये तरह तरह के अभियान चलाने की जरूरत क्यों पड़
रही है?
(5) या कहीं ऐसा तो नहीं कि
आपके मन में यह डर कहीं छिपा बैठा हो कि अगर देश के सारे लोग पढ़ लिख लेंगे,अपना
भला बुरा समझने लगेंगे,सफ़ेद स्याह का अन्तर जान जायेंगे तो इस देश की हुकूमत आप
लोगों के हाथों से निकल जायेगी?यहां कि जनता आपसे आपके द्वारा किये गये एक एक
कार्य का हिसाब मांगने लगेगी।
(6) महोदय, मैं आपको आश्वस्त
करना चाहता हूं कि अभी इस देश में ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला जो आपकी हुकूमत छीन
सके।बस आप लोग किसी तरह ऐसा पुख्ता बन्दोबस्त कर दें कि इस देश का विकास
अगले सौ सालों तक इसी गति से हो जिस गति से आप चाहें।बस आपका काम पूरा।न लोग
जागृत होंगे न ही उनमें समझ पैदा होगी न ही आपका राज पाट छीनेगा।
माननीय महोदय,आशा करता हूं कि आप मुझ अबोध की बातों पर अवश्य ध्यान देंगे। और अगर इस अबोध ने आपके सम्मान में कुछ गलत कह दिया हो तो उसे भी आप एक शिशु की
नादानी समझ कर माफ़ कर देंगे।अपनी अगली चिट्ठी में मैं आपसे कुछ और भी बातें
करूंगा।सादर।
आपके गांव का
एक बच्चा
0000
ड़ा0हेमन्त कुमार
5 टिप्पणियाँ:
सटीक!!
बच्चा ही तो ठहरा ,जो लगा बोल बैठा और सही समय पर - समय ने समझदार जो बना दिया !.
बच्चे की सच्ची बात..
बहुत सही पोस्ट! बच्चों को भी मताधिकार हो!
सारी बातों को एक ही चिट्ठी में पिरो दिया , बहुत बढ़िया
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