लघुकथा-- एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें
शनिवार, 18 जनवरी 2014
(फ़ोटो--गूगल से साभार) |
शहर का एक प्रमुख पार्क।पार्क के बाहर गेट पर बैठा हुआ एक अत्यन्त बूढ़ा
भिखारी।बूढ़े की हालत बहुत दयनीय थी।पतला दुबला, फ़टे चीथड़ों में लिपटा हुआ।पिछले
चार दिनों से उसके पेट में सिर्फ़ दो सूखी ब्रेड का टुकड़ा और एक कप चाय जा पायी
थी।बूढ़ा सड़क पर जाने वाले हर व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करने के लिये हांक
लगाता----“खुदा के नाम पर—एक पैसा इस गरीब को—भगवान भला करेगा”।सुबह से उसे अब तक मात्र दो रूपया मिल
पाया था,जो कि शाम को पार्क का चौकीदार किराये के रूप में ले लेगा।
अचानक पार्क के सामने
एक रिक्शा रुका।उसमें से बाब कट बालों वाली जीन्स टाप से सजी एक युवती उतरी।युवती
कन्धे पर कैमरा बैग भी लटकाये थी।यह शहर की एक उभरती हुयी चित्रकर्त्री थी ।इसे एक
पेण्टिंग के लिये अच्छे सब्जेक्ट की तलाश थी।बूढ़े को कुछ आशा जगी और उसने आदतन
हांक लगा दी----भगवान के नाम पर----
युवती ने घूम कर
देखा।बूढ़े पर नजर पड़ते ही उसकी आंखों में चमक सी आ गयी।वह कैमरा निकालती हुयी तेजी
से बूढ़े की तरफ़ बढ़ी।बूढ़ा सतर्क होने की कोशिश में थोड़ा सा हिला।
“प्लीज बाबा उसी तरह बैठे रहो हिलो डुलो
मत’।और वहां कैमरे के
शटर की आवाजें गूंज उठी।युवती ने बूढ़े की विभिन्न कोणों से तस्वीरें उतारीं।युवती
ने कैमरा बैग में रखा और बूढ़े के कटोरे में एक रूपया फ़ेंक कर रिक्शे की ओर बढ़ गयी।
उसी दिन दोपहर के वक्त—तेज धूप में भी बूढ़ा अपनी जगह मुस्तैद
था।उसे दूर से आता एक युवक दिख गया ।बूढ़ा एकदम टेपरिकार्डर की तरह चालू हो गया।“अल्लाह के नाम पर-------”।
पहनावे से कोई कवि लग रहा
युवक बूढ़े के करीब आ गया था।युवक ने बूढ़े को देखा।उसका हृदय करुणा से भर गया।“ओह कितनी खराब हालत है बेचारे की”।सोचता हुआ युवक पार्क के अन्दर चला
गया।पार्क के अन्दर वह एक घने पेड़ की छाया में बेंच पर बैठ गया।बूढ़े का चेहरा अभी
भी उसकी आंखों के सामने घूम रहा था।उसने अपने थैले से एक पेन और डायरी निकाली और जुट गया एक कविता
लिखने में।कविता का शीर्षक उसने भी भूख रखा।फ़िर चल पड़ा उसे किसी दैनिक पत्र
में प्रकाशनार्थ देने।भिखारी की नजरें दूर तक युवक का पीछा करती रहीं।
जगह वही पार्क का गेट।शाम का
समय।पार्क में काफ़ी चहल पहल हो गयी थी ।भिखारी को अब तक मात्र तीन रूपये मिले
थे।वह अब भी हर आने जाने वाले के सामने हांक लगा रहा था । अचानक भिखारी ने देखा एक खद्दरधारी अपने
पूरे लाव लश्कर के साथ चले आ रहे थे।उसकी आंखो में चमक आ गयी।-----अब लगता है उसके
दुख दूर होने वाले हैं।उसने जोर की हांक लगाई।----खुदा के नाम पर --------
हांक सुन कर नेता
जी ठिठक गये।बूढ़े की हालत देख कर उनका दिल पसीज गया। ‘ओह कितनी दयनीय दशा है देश की----।
उन्होनें तुरन्त अपने
सेक्रेट्री को आर्डर दिया----‘कल के अखबार में मेरा एक स्टेट्मेण्ट भेज दो हमने संकल्प
लिया है देश से भूख और गरीबी दूर करने का। और हम इसे हर हाल में दूर करके रहेंगे।नेता
जी भिखारी के पास गये और उसे अश्वासन दिया ‘बाबा हम जल्द ही तुम्हारी समस्या दूर करने वाले हैं’------उन्होंने बूढ़े भिखारी के साथ कई
फ़ोटो भी खिंचवायी।लाव लश्कर के साथ कार में बैठे और चले गये।बूढ़े की निगाहें दूर
तक धूल उड़ाती कार का पीछा करती रहीं।
अब तक काफ़ी अंधेरा हो
चुका था।पार्क में सन्नाटा छा गया था।बूढ़े ने सुबह से अब तक मिले तीन रूपयों में
से दो रूपया पार्क के चौकीदार को दिया।फ़िर नलके से पेट भर पानी पीकर बेन्च पर सो
गया-----अगली सुबह के इन्तजार में ।
***********
डा0हेमन्त कुमार
5 टिप्पणियाँ:
काश, हमारे भाव सार्थकता से जगें, सतही नहीं।
उफ़ एक कटु सत्य को उजागर करती सशक्त रचना
बहुत सुंदर प्रस्तुति..
आज समाज में संवेदन हीनता इतनी ज्यादा फेली है ही वो उपर से तो संवेदनशील शील है पर अंडर से pure खोखले हैं....
prathamprayaas.blogspot.in-
hane or aapne aah ! ke siva kya kiya ?
So touching..
एक टिप्पणी भेजें