रिमझिम पड़ी फ़ुहार
बुधवार, 3 अगस्त 2011
भीग उठा बादल के नीचे
पूरा घर संसार।
डूबा आंगन छप्पक छैया
बच्चे ढूंढ़ें छोटी नैया
मेढक कूदें ताल तलैया
इंद्र्धनुष में पंख पसारे
दिखते रंग हजार ।
रिमझिम पड़ी फ़ुहार…।
हल की फ़ाल में साम धराने
धरती का सोंधापन पाने
खाद बीज का जुगत लगाने
बैलों की घंटी सजवाने
निकले सब बाजार ।
रिमझिम पड़ी फ़ुहार-----।
बंसवारी में बोले झींगुर
हंसी दामिनी कड़क कड़क कर
गोरी सहमी घूंघट के भीतर
सपने बादल के पंखों पर
लेके आये बहार ।
रिमझिम पड़ी फ़ुहार
भीग उठा बादल के नीचे
पूरा घर संसार ।
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हेमन्त कुमार
9 टिप्पणियाँ:
Aap to hame bachpan me le gaye!
बहुत प्यारी कविता
kavita padhkar laga ki gaon vapas pahunch gaya hun.
बारिश कि मीठी फ़ुहारों से भिगोती सुन्दर रचना... हम शहर में रहने वाले बच्चों को तो रिम्झिम फ़ुहारों से भीगी ऐसी प्रकृति सिर्फ़ कविता और कहानियों में ही देखने को मिलती है...
सावन सी लहराती, झरने सी बलखाती बाल कविता।
man ki thirakan si kawita .....badhai
बारिश की फ़ुहारो जैसी मनभावन रचना।
बारिश की फुहार जितनी ही हल्की-फुल्की, उछलती-कूदती और अपने आप में मस्त रचना...
आप के लीखे शब्द हमेशा सराहनीय है|
B.K.Sharma
Lucknow
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