लौटना
शनिवार, 31 अक्तूबर 2009
आसमान पर
दौड़ रहे हैं
हाथी घोड़े हिरण
बादलों के साथ
चल रही है
सूरज की लुकाछिपी।
दौड़ रहे हैं
बच्चे
स्कूल की ओर
मचाते शोर
देखो देखो
हो रही है
सियार की शादी।
उसी वक्त
ठीक उसी वक्त
सफ़ेद बालों वाला
एक पथिक
लौट जाता है
छुटपन के दिनों में
वह मन्द मन्द
मुस्कराता है
और आंखों तक
दायां हाथ ले जाता है।
00000000
कवि:शैलेन्द्र
प्रभारी सपादक ‘जनसत्ता’
कोलकाता संस्करण
मोबाइल न—09903146990
हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित।
दौड़ रहे हैं
हाथी घोड़े हिरण
बादलों के साथ
चल रही है
सूरज की लुकाछिपी।
दौड़ रहे हैं
बच्चे
स्कूल की ओर
मचाते शोर
देखो देखो
हो रही है
सियार की शादी।
उसी वक्त
ठीक उसी वक्त
सफ़ेद बालों वाला
एक पथिक
लौट जाता है
छुटपन के दिनों में
वह मन्द मन्द
मुस्कराता है
और आंखों तक
दायां हाथ ले जाता है।
00000000
कवि:शैलेन्द्र
प्रभारी सपादक ‘जनसत्ता’
कोलकाता संस्करण
मोबाइल न—09903146990
हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित।
6 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुन्दर आपने छुटपन मे लौटना जब .......चान्द सितारे सुर्य सब एक साथ हो तब ......अतिसुन्दर !बधाई!
सुंदर प्रतीकों का उपयोग..........
उत्तम कविता का सृजन...........
__मुबारक !
बहुत अच्छा लगा इस रचना का अंत ......... उस अवस्था में हर कोई लौट जाता है उस दौर में ......
आपकी कलम बच्चों की पसंद की है, उनके लिए सही, सरल अभिव्यक्तियाँ सँजोकर लेट हैं आप
.............
उसी वक्त
ठीक उसी वक्त
सफ़ेद बालों वाला
एक पथिक
लौट जाता है
छुटपन के दिनों में
वह मन्द मन्द
मुस्कराता है
और आंखों तक
दायां हाथ ले जाता है।
क्या बात है शैलेन्द्र जी ! मार्मिक! अति मार्मिक.
बधाई हेमंत जी.
kavi shilendra ji ki likhi yah kavita sach mein adbhut lagi.
bacchon mein ho bachpan dhoondhte hain ham bhi...
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