हर बारिश में
तुम्हारे
पास होने का एहसास
बुन देता है एक गुंजलक
मेरे चारों ओर।
बंध जाते हैं
मेरे हाथ पांव
कैद हो जाती हैं सांसें
और गुंजलक खुलने पर
मैं पाता हूं कि
बारिश खतम हो चुकी है
और मैं रीता रह गया हूं।
**********
हेमन्त कुमार
© क्रिएटिव कोना Template "On The Road" by Ourblogtemplates.com 2009 and modified by प्राइमरी का मास्टर
Back to TOP
7 टिप्पणियाँ:
bahut hee acchee kavita !gunjalak jaal ko kahate hai kya ?
मनोहारी रचना
---
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
खालीपन का ehsaas ....... बारिश की boondon में bandhi aas ........... laajavaad लिखा है ........
बहुत सुन्दर भाव. अच्छा लगा पढ कर.
इस बार बारिश सिर्फ अहसास में रही ज्यादातर!
सुन्दर कविता है जी।
भावों की गुंजलक...उलझा लेती है खुद में...दे जाती है रीतेपन का अहसास..बहुत खूब!
अच्छी लगी यह सुन्दर ,सरल ,सरस रचना.
behad samvendansheel !!
एक टिप्पणी भेजें