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चिल्ड्रेन्स वर्कशाप आन वीडियो प्रोडक्शन……एक अभिनव प्रयोग

गुरुवार, 6 अगस्त 2009


दुनिया का हर बच्चा अपने आप में अलग और अनोखा होता है। हर बच्चे के भीतर कुछ नया करने ,बनाने की ललक के साथ ही कल्पनाओं का एक विशाल भण्डार छुपा रहता है।यदि इन बच्चों को सही दिशा निर्देश मिले तो ये ऐसे काम भी कर सकते हैं ,जिन्हें हम उनकी पहुंच के बाहर मान लेते हैं ।पिछले दिनों बच्चों की सृजनात्मकता को संवरने का एक ऐसा ही अवसर मिला राज्य शैक्षिक तकनीकी सस्थान ,लखनऊ में।
सी आई ई टी ,नई दिल्ली के सहयोग से इस संस्थान ने बच्चों को वीडियो कर्यक्रम निर्माण से परिचित कराने और उन्हें कुछ नया सिखलाने के लिये 20 से 30 जुलाई 09 तक एक कार्यशाला आयोजित की।कार्यशाला का उद्देश्य परिषदीय विद्यालयों के बच्चों की सृजनात्मकता को बढ़ाना था। इस कार्यशाला में कस्तूरबा गांधी विद्यालय माल,मलीहाबाद एव काकोरी के लगभग 15 बच्चों ने हिस्सा लिया।
कार्यशाला का उद्घाटन संस्थान के निदेशक डा0 दलजीत सिंह पुरी ने किया।कार्यशाला के औपचारिक उद्घाटन के बाद सबसे पहले संस्थान की डिप्टी प्रोडक्शन इन्चार्ज श्रीमती ललिता प्रदीप ने बच्चों से दूरदर्शन के विभिन्न धारावाहिकों के बारे में चर्चा करने के साथ ही उन्हें चैनलों के विस्तार के साथ ही मीडिया में आते जा रहे बदलावों के बारे में बताया।सी आई ई टी नई दिल्ली से आये विशेषज्ञ डा0
लाल सिंह एवम श्री पदम सिंह ने भी बच्चों को शैक्षिक फ़िल्मों के बारे में बताया।
राज्य शैक्षिक तकनीकी संस्थान में दस दिनों तक चली इस कार्यशाला में बच्चों को वीडियो कर्यक्रम निर्माण से सम्बन्धित हर पहलू से परिचित कराया गया।उन्हें संस्थान के लेक्चरर प्रोडक्शन डा0हेमन्त कुमार तथा प्रस्तु्तकर्ता श्रीमती मृदुला सुशील ने वीडियो फ़िल्मों की स्क्रिप्ट लिखना सिखलाया तो प्रस्तुतकर्ता राकेश निगम ने समचार बुलेटिन तैयार करना सिखलाया।सीनियर प्रोड्यूसर श्री विनोद धस्माना ने बच्चों को स्टूडियो एवम आउट्डोर शूटिंग के बारे में जानकारियां दीं।संस्थान के सीनियर कैमरामैन श्री दिनेश जोशी एवम श्री चिक्का मुनियप्पा ने इन बच्चों को कैमरा संचालन के साथ ही एडिटिंग एवम साउन्ड रिकार्डिंग की बारीकियों से परिचित कराया।
फ़िल्म निर्माण के प्रति बच्चों के उत्साह को देखते हुये उन्हें दो समूहों में विभाजित कर दिया गया।बच्चों की ही सहमति से यह तय हुआ कि बच्चों का एक समूह समाचारों पर आधारित कार्यक्रम बाल समाचार का निर्माण करेगा तथा दूसरा समूह अपने शिक्षकों की शिक्षण पद्धति पर आधारित एक हास्य नाटक का निर्माण करेगा। इस समूह विभाजन के साथ ही खुल गया बच्चों के दिमाग का पिटारा। और निकलने लगे उनमें से रोचक समाचार,रोचक घटनायें और रोचक कहानियों के प्लाट।
बच्चों ने अपने समूह के साथ मिलकर शुरू कर दिया समाचारों का संकलन,नाटक के दृश्यों और संवादों का लेखन। बच्चों की यह दिमागी कसरत तीन दिनों तक चलती रही। इन तीन दिनों में बच्चों ने बहुत सारे आइडिया प्रस्तुत किये ,उन पर विचार विमर्श किया।उन्हें रद्द भी कर दिया।फ़िर से नये आइडिया, कहानी का प्लाट ढूंढ़ा और अन्ततः फ़ाइनल न्यूज बुलेटिन बाल समाचार और एक हास्य नाटक अद्भुत विद्यालय की स्क्रिप्टें हेमन्त कुमार के दिशा निर्देशन में तैयार हो गयीं।
25-26 जुलाई दो दिनों तक बच्चे जुटे रहे अपने दोनों कार्यक्रमों के गहन रिहर्सल में। और इस काम में उनको दिशा निर्देश मिल रहा था संस्थान की प्रस्तुतकर्ता मृदुला सुशील एवम अमरेन्द्र सहाय से।इन दो दिनों में बच्चों ने सीखा शुद्ध उच्चारण ,संवाद बोलना,संवादों में स्वरों का उतार चढ़ाव तथा शारीरिक अभिनय के साथ चेहरे पर लाये जाने वाले भावों और भंगिमाओं को।
और 27 एवम 28 जुलाई को तो संस्थान परिसर में अजीब नजारा था। हर गैलरी
में बच्चे रंग बिरंगी ड्रेस पहने हुये टहल रहे थे। कहीं बच्चे लाइट,रोल कैमरा,ऐक्शन्……जैसे कमाण्ड बोलते सुने गये।तो कहीं अपने सवादों को दुहराते हुये।27जुलाई को बच्चों ने संस्थान के मिनी स्टूडियो में अपने समाचार बुलेटिन की और 28 को मुख्य स्टूडियो में अपने नाटक अद्भुत विद्यालय की रिकार्डिंग पूरी की।इन दोनों ही दिनों बच्चों के अन्दर एक अलग ढंग का उत्साह दिखाई पड़ा। आखिर उनका फ़िल्म बनाने का स्वप्न जो पूरा हो रहा था।
29 जुलाई को सभी बच्चे इकट्ठा हुये एडीटिंग रूम में। और नान लीनियर एडीटिंग सेटप पर श्री चिक्का मुनियप्पा द्वारा अपनी फ़िल्मों को एडिट होते देख कर आनन्दित होते रहे। अन्ततः तैयार हो गयी उनकी दोनों फ़िल्में बाल समाचार और अद्भुत विद्यालय।
वीडियो प्रोडक्शन सीखने की इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे अनुभवों के विभिन्न
दौरों से गुजरे।कभी लाइट चली गयी कभी कहीं किसी उपकरण का कनेक्शन लूज हो गया।पर इस समय का उपयोग भी उन्होंने गाना गाकर,डांस करके और अभिनय दिखाकर किया।इस वर्कशाप का उद्देश्य बच्चों को वीडियो कार्यक्रमों के निर्माण की पूरी प्रक्रिया से परिचित कराना था न कि उन्हें उसमें निपुण बनाना।इस दृष्टि से यह वर्कशाप पूरी तरह सफ़ल थी।
00000000
हेमन्त कुमार




6 टिप्पणियाँ:

Meenu Khare 6 अगस्त 2009 को 7:38 pm बजे  

बहुत अच्छा लगा आपके अभिनव प्रयोग के बारे मे सुन कर. काश मै भी वहाँ होती और बच्चों के साथ मै भी कुछ सीख पाती. शुभकामनाएँ.

Gyan Dutt Pandey 7 अगस्त 2009 को 4:10 am बजे  

यह तो बहुत सुन्दर प्रयोग है। इसको ले कर एक विचार मन में आता है कि अपना लैपटाप और शेष तामझाम ले कर सप्ताह में एक दिन सार्वजनिक स्थल पर लोगों के बीच गुजारा जाये - सीखते सिखाते। विशेषत: बच्चों के बीच!

दिगम्बर नासवा 8 अगस्त 2009 को 2:37 am बजे  

LAJAWAB PRAYAOG HAI HEMANT JI...BACHHON KE VIKAAS KE LIYE AISE PRAYOG JAROORI HAIN.......

हरकीरत ' हीर' 8 अगस्त 2009 को 10:29 am बजे  

बहुत - बहुत बधाई इस प्रयोग के लिए ......!!

sandhyagupta 14 अगस्त 2009 को 5:09 am बजे  

Jaankar bahut achcha laga.Is tarah ke aur prayason ki jarurat hai.

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