कहानी …कहना ---- सुनाना ( भाग – 3)
गुरुवार, 27 अगस्त 2009
मेरे अब तक के पिछले दोनों लेखों से पाठक, अभिभावक, शिक्षक बन्धु यह बात समझ ही चुके होंगे कि कहानी सुनाने में स्वरों के उतार चढाव की क्या भूमिका है? स्वर,गति और लय का क्या महत्व है?
अब मैं आपके सामने कथा वाचन या कहानी कहने का एक तरीका और रख रहा हूं। वह है कहानी को बच्चों से अभिनीत करवाना। इसे कहानी का नाट्य रुपांतरण नहीं कहा जा सकता। क्योंकि किसी कहानी का नाट्य रुपांतरण करते समय हम कथावस्तु का विस्तार भी करते हैं।लेकिन यहां हम सिर्फ़ कहानी में आए पात्रों को बच्चों से अभिनीत करवायेंगे यथावत्…बिना किसी फ़ेर बदल के।
कहानी सुनाने कि या कहने की इस शैली का प्रयोग विशेष रूप से कक्षा शिक्षण के दौरान करना काफ़ी प्रभावकारी रहेगा।इससे बच्चा खुद कहानी के पात्रों से अपना तादात्म्य स्थापित कर सकेगा और उस पात्र की अच्छाइयों बुराइयों को महसूस कर सकेगा। साथ ही कहानी के मूल भाव को समझ सकेगा।
मैं बच्चों की वर्कशाप में अक्सर कहानी कहने की इस शैली का प्रयोग करता हूं।।और नतीजा बहुत आशाजनक निकलता है।सबसे पहला नतीजा तो यह है कि बच्चा तुरंत ही कहानी में इन्वाल्व हो जाता है। दूसरे कहानी सुनाने का यह टू वे कम्युनिकेशन होता है। बच्चा आपकी कहानी का सिर्फ़ श्रोता ही नहीं रह जाता बल्कि आपके साथ बच्चा भी कथा वाचन में एक मुख्य भूमिका के साथ उपस्थित हो जाता है।
कैसे करें यह प्रयोग ?
0 पहला चरण -> मान लीजिये आपको कछुए और खरगोश की दौड़ वाली ही कहानी सुनानी है। तो सबसे पहले आप कक्षा के या श्रोता बच्चों से ही पूछिए कि क्या उन्हें यह कहानी मालूम है?यदि उत्तर नहीं मिले तो आप सबसे पहले संक्षेप में यह कहानी बच्चों को सुना दें।
0 दूसरा चरण -> यदि उत्तर हाँ में मिलता है। यानी बच्चों ने पहले यह कहानी सुनी है। तो उनमें से कुछ बच्चों से आप पहले कछुआ/ खरगोश या अन्य जानवरों के संवाद/बोलियां सुनें। फ़िर उन से कछुए की तरह धीमे धीमे चलने या खरगोश की तरह उछल कर चलने को कहें। आप देखेंगे कि समूह के ज्यादातर बच्चे यह कोशिश जरूर करेंगे। यानि कि उस समय तक बच्चों का पूरा ध्यान इस कहानी की तरफ़ केन्द्रित हो चुका होगा। यही
वह बिन्दु होगा जहां से आप बच्चों को अपने हिसाब से मोड़ सकेंगे।
0 तीसरा चरण -> बस इसी बिन्दु से आप बच्चों को मूल कहानी की तरफ़ ले जाएं। सबसे पहले उन्ही बच्चों में से एक एक से कहानी का वाचन पुस्तक से करवाएं। फ़िर कुछ से मौखिक रूप से कहानी सुनें। उन्हें कहानी में आए कठिन शब्दों के अर्थ बताएं। कठिन शब्दों के सही उच्चारण बताएं। उनसे कहानी के संवाद बुलवाएं। पूरी कहानी की एक बार व्याख्या कर दें। उससे मिलने वाली शिक्षा उन्हें बता दें।
0 चौथा चरण -> फ़िर सबसे अन्तिम चरण के रूप में आप कुछ समय के लिये यह भूल कर कि आप उनके शिक्षक व वे छात्र हैं। उनके साथ घुल मिल जाइए। खेलिये……घमाचौकड़ी करिए। कक्षा के बीच वाली जगह खाली करवाकर उसे मंच बना दीजिए और शुरु कर दीजिए कछुए खरगोश की कहानी अभिनय वाला भाग। हो सकता है कुछ बच्चे शरमाएं। ऐसे में आप सबसे पहले जमीन पर खुद खरगोश की तरह कुलांचे भर कर बच्चों को प्रोत्साहित करिए। निश्चित रूप से कक्षा में अध्यापक को इस तरह उछ्लते देख कर शर्मीले से शर्मीले बच्चे भी आपके इस नाटक में शामिल हो जाएंगे।
अब आप कुछ बच्चों को कछुआ, खरगोश, शेर (निर्णायक), या अन्य जानवरों की भूमिका दीजिए। शेष बच्चों को दर्शक बना दीजिए। अगली बार आप अभिनय करने वाले बच्चों को दर्शक और दर्शक बच्चों को अभिनेता बनाइए। कछुए खरगोश की कहानी के मंचन की इस पूरी प्रक्रिया को पूरे अभ्यास के बाद आप बच्चों से ही पूछिए कि उन्हें कहानी पढाने का कौन सा तरीका पसंद है… सिर्फ़ किताब से पढ्वा देना या इस तरह खेलकूद धमाचौकड़ी वाला……… उत्तर आपको खुद ब खुद मिल जाएगा।
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हेमन्त कुमार
6 टिप्पणियाँ:
बढिया, अभिनव प्रयोग अच्छा लगा इस प्रकार से कहानी सुनाए जाने का कथ्य.
खेलने कूदने के माध्यम से बच्चो के दिलो तक आसानी से पंहुचा जा सकता है |आपकी समझ की पकड़ मजबूत है |
वाह.....एक सही नज़रिया दिया है आपने
अच्छा लगा अभिनव प्रयोग...
इस कोण से सोचा न था। आपके ब्लॉग पोस्ट से नयी दृष्टि मिली। धन्यवाद।
आपने एक नया drishtikon दिया है .......... बहूत sundar ...........
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