ग़ज़ल
बुधवार, 17 जून 2009
ईमान की इक लाश की कर रहे थे तुम फ़िकर देखो,
यहां लाशों का बस रहा है इक शहर देखो।
लगी थी आग जो शोलों का अब असर देखो,
किसी ने ढा दिया है हम पे ये कहर देखो।
जुबां पे बन्दिश का जमाना गया गुजर देखो,
मीठी बातों का मिल रहा है अब जहर देखो।
कहा था तुमने मुहैय्या करेंगे सबको मकां,
हो रहा है अब आसमां तले बसर देखो।
कहा था तुमने कि लाश न गिरेगी एक यहां,
अब तो लाशों से पट रहा है ये शहर देखो।
0000000
हेमन्त कुमार
यहां लाशों का बस रहा है इक शहर देखो।
लगी थी आग जो शोलों का अब असर देखो,
किसी ने ढा दिया है हम पे ये कहर देखो।
जुबां पे बन्दिश का जमाना गया गुजर देखो,
मीठी बातों का मिल रहा है अब जहर देखो।
कहा था तुमने मुहैय्या करेंगे सबको मकां,
हो रहा है अब आसमां तले बसर देखो।
कहा था तुमने कि लाश न गिरेगी एक यहां,
अब तो लाशों से पट रहा है ये शहर देखो।
0000000
हेमन्त कुमार
6 टिप्पणियाँ:
जुबां पे बन्दिश का जमाना गया गुजर देखो,
मीठी बातों का मिल रहा है अब जहर देखो।
बहुत खूब!
ग़ज़ल के सभी शेर आज के समाज की दयनीय स्थिति बता रहे हैं.
कहा था तुमने मुहैय्या करेंगे सबको मकां,
हो रहा है अब आसमां तले बसर देखो।
बहूत खूब हेमंत जी........... आज के हालत का सजीव चित्रं है आपकी ग़ज़ल में...........
कहा था तुमने कि लाश न गिरेगी एक यहां,
अब तो लाशों से पट रहा है ये शहर देखो।
....aaj kee sthiti ko ujaagar karti rachna
bahut hi acchi rachana hai......
bahut achchi ghazal hai ..aaj ke haalat par likhi huyi
आज के हालातों का सजीव चित्रण करने में आप सफल नजर आते हैं!!
बधाई!!
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