ओ मां
शनिवार, 9 मई 2009
जब भी मैं बैठता हूं
ढलते सूरज के साथ
बालकनी में कुर्सी
पर अकेला
मेरी आंखों के सामने
आता है कैमरे का व्यूफ़ाइंडर
और उसमें झलकती है
एक तस्वीर
आंगन में तुलसी की पूजा करती
एक स्त्री की
और कहीं दूर से आती है एक आवाज
ओ मां।
जब भी बच्चे व्यस्त रहते हैं
टी वी स्क्रीन के सामने
और मैं बाथरूम में
शेव कर रहा होता हूं
शीशे के सामने अकेला
अचानक मेरे हाथ हो जाते हैं
फ़्रीज
शीशे के फ़्रेम पर
डिजाल्व होता है एक फ़्रेम और
मेरा मन पुकारता है
ओ मां।
जब भी मैं खड़ा होता हूं
बाजार में किसी दूकान पर अकेला
कहीं दूर से आती है सोंधी खुशबू
बेसन भुनने की
आंखों के सामने क्लिक
होता है एक फ़्रेम
बेसन की कतरी
और मेरे अन्तः से आती है आवाज
ओ मां।
जब भी मैं बैठता हूं
देर रात तक किसी बियर बार में
कई मित्रों के साथ पर अकेला
अक्स उभरता है बियर ग्लास में
आटो रिक्शा के पीछे
दूर तक हाथ हिलाती
एक स्त्री का
और टपकते हैं कुछ आंसू
बियर के ग्लास में
टप-टप
फ़िर और फ़िर
चीख पड़ता है मेरा मन
ओ मां।
**********
हेमन्त कुमार
ढलते सूरज के साथ
बालकनी में कुर्सी
पर अकेला
मेरी आंखों के सामने
आता है कैमरे का व्यूफ़ाइंडर
और उसमें झलकती है
एक तस्वीर
आंगन में तुलसी की पूजा करती
एक स्त्री की
और कहीं दूर से आती है एक आवाज
ओ मां।
जब भी बच्चे व्यस्त रहते हैं
टी वी स्क्रीन के सामने
और मैं बाथरूम में
शेव कर रहा होता हूं
शीशे के सामने अकेला
अचानक मेरे हाथ हो जाते हैं
फ़्रीज
शीशे के फ़्रेम पर
डिजाल्व होता है एक फ़्रेम और
मेरा मन पुकारता है
ओ मां।
जब भी मैं खड़ा होता हूं
बाजार में किसी दूकान पर अकेला
कहीं दूर से आती है सोंधी खुशबू
बेसन भुनने की
आंखों के सामने क्लिक
होता है एक फ़्रेम
बेसन की कतरी
और मेरे अन्तः से आती है आवाज
ओ मां।
जब भी मैं बैठता हूं
देर रात तक किसी बियर बार में
कई मित्रों के साथ पर अकेला
अक्स उभरता है बियर ग्लास में
आटो रिक्शा के पीछे
दूर तक हाथ हिलाती
एक स्त्री का
और टपकते हैं कुछ आंसू
बियर के ग्लास में
टप-टप
फ़िर और फ़िर
चीख पड़ता है मेरा मन
ओ मां।
**********
हेमन्त कुमार
10 टिप्पणियाँ:
विरलों को ही मय के गिलास में माँ दिखाई देती है!
ऐसी रचना करनेवाले भी विलक्षण ही होते हैं!
बहुत ही भावोक और संवेदनशील रचना है.............
माँ की याद तो हर पल आती है...........
yeh satya hai maa ke jaane ke baad maa ki yaad bahut aatee hai.
jhallevichar.blogspot.com
जब भी मैं खड़ा होता हूं
बाजार में किसी दूकान पर अकेला
कहीं दूर से आती है सोंधी खुशबू
बेसन भुनने की
आंखों के सामने क्लिक
होता है एक फ़्रेम
बेसन की कतरी
और मेरे अन्तः से आती है आवाज
ओ मां।
.....
अपनी यादों को जीवंत कर दिया....ओ माँ
ओह, माई के बेसन के लड्डू याद आ गये जो हॉस्टल जाते समय साथ बांध कर देती थीं।
अब उनमें वह पौरुख न रहा पर ममता जस की तस है।
मेरी आंखों के सामने
आता है कैमरे का व्यूफ़ाइंडर
और उसमें झलकती है
एक तस्वीर
आंगन में तुलसी की पूजा करती
एक स्त्री की
और कहीं दूर से आती है एक आवाज
ओ मां।
-माँ की याद में बहुत ही बढ़िया कविता..सुन्दर भाव..
o maa इस कविता को अपनी आवाज़ में अपने संशिप्त परिचय के साथ मेरे पास भेज दें rasprabha@gmail.com
मां जब तक जिन्दा होती है ,आभास ही नही होता उसके होने का
\बस वह है तो है एक जरूरी आवश्यक्ता है वह। उस पर लिखने जैसा क्या हैपर वही मां जब हमसे दूर हो जाती है हर क्ष्ण उसका ही ख्याल आता है,उसकी यादों का इक मधुर संसार होता हैऔर मांहमारे लिखने मैंयूंही आजाती है, बिना किसी प्रयास के॥मेरी मांपिछले सितम्बर मेंही गुजरी है और मेंहर क्ष्ण उसे लेकर ही लिखती रहती हूं
मां जब तक जिन्दा होती है ,आभास ही नही होता उसके होने का
\बस वह है तो है एक जरूरी आवश्यक्ता है वह। उस पर लिखने जैसा क्या हैपर वही मां जब हमसे दूर हो जाती है हर क्ष्ण उसका ही ख्याल आता है,उसकी यादों का इक मधुर संसार होता हैऔर मांहमारे लिखने मैंयूंही आजाती है, बिना किसी प्रयास के॥मेरी मांपिछले सितम्बर मेंही गुजरी है और मेंहर क्ष्ण उसे लेकर ही लिखती रहती हूं
माँ की याद में बढ़िया कविता!!!
....ओ माँ
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