हर चौराहा बन गया,अब नाटक का मंच।
अभिनय उस पर कर रहे ,बगुले बन सरपंच॥
बिका चाय पर आदमी, जला रहा है आंत।
अन्धकार के बीच वह,बीन रहा है तांत॥
पेट सभी भट्ठी हुये,सुलग रही है आग।
सरपंचों के सामने,खेल रहे हैं फ़ाग॥
सभी राम रावण हुये,कौन चलाये राज।
आज द्रौपदी रो रही,कौन बचाए लाज॥
**********
हेमन्त कुमार
7 टिप्पणियाँ:
हर पंक्ति सार्थक और सामयिक!!
प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर
हर चौराहा बन गया,अब नाटक का मंच।
अभिनय उस पर कर रहे ,बगुले बन सरपंच॥
waah waah! sabhi dohey samaaj ki vartmaan sthiti ka aayeena hain.
सभी राम रावण हुये,कौन चलाये राज।
आज द्रौपदी रो रही,कौन बचाए लाज॥
bahut badhiyaa
वाह, बहुत दमदार दोहे!
सभी राम रावण हुये,कौन चलाये राज।
आज द्रौपदी रो रही,कौन बचाए लाज॥
इतिहार के पात्रों को वर्तमान से बहुर खूबसूरती से जोड़ा है आपने..........
कडुवे सत्य को लिखा है
तेज़ व्यंग
उत्तम दोहों के लिए साधुवाद. इस सामयिक दोहे के लिए विशेष साधुवाद -
सभी राम रावण हुये,कौन चलाये राज।
आज द्रौपदी रो रही,कौन बचाए लाज॥
Bahut badiya dohe hai prabhu :)
एक टिप्पणी भेजें