टोपी
मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
मांगी थी तुमने जो टोपी
लो देख लो इनमें
तुम्हारे लिए सजा रखी हैं यहाँ
रंग बिरंगी टोपियाँ।
देखो यह टोपी
पहना करते थे कल
अंग्रेज बादशाह इसे
यह टोपी गांधी,वह नेहरू
उसके बगल वाली सुभाष
बांयी और घूमो
दिखेंगी दो और टोपियाँ
पहनते थे जिन्हें पटेल और आजाद
जो थे उनके पीछे पीछे
अब हैं पेंशन लेकर घर पर।
क्या इससे भी पुरानी टोपी चाहते हो
आओ अन्दर आओ
रखी हैं वहां मैंने
हारुन अल रशीद,बाबर,लुई
और मुसोलिनी की टोपियाँ
कुछ और भी टोपियाँ थीं
जो उड़ गयीं पिछले महाप्रलय में
पगडियां भी कुछ रखी हैं देखो
उस अरघनी पर टंगी चादर का
फेंटा बाँध कर देखो
लगोगे हू-बहू शिवाजी।
क्या अच्छी नहीं लगीं ये टोपियाँ
परेशान मत होओ
और मंगवा दूँगा
सिर्फ़ एक बार खुले दिल से कह दो
रखोगे किसके सिर पर
यह जंग विजयी टोपी
तुम्हें तो मालूम है
टोपी मिलना कोई बड़ी बात नहीं
आजकल।
*********
रचनाकार :मानस रंजन महापात्र
मोबाईल न:०९८९१९४६१७८
हिन्दी अनुवाद:डा.राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
(मानस रंजन महापात्र ओडिया भाषा के चर्चित एवं स्थापित कवि हैं । तथा इस समय नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया के राष्ट्रीय बाल साहित्य केन्द्र में संपादक पद पर कार्यरत हैं।)
हेमंत कुमार द्वारा प्रकाशित
लो देख लो इनमें
तुम्हारे लिए सजा रखी हैं यहाँ
रंग बिरंगी टोपियाँ।
देखो यह टोपी
पहना करते थे कल
अंग्रेज बादशाह इसे
यह टोपी गांधी,वह नेहरू
उसके बगल वाली सुभाष
बांयी और घूमो
दिखेंगी दो और टोपियाँ
पहनते थे जिन्हें पटेल और आजाद
जो थे उनके पीछे पीछे
अब हैं पेंशन लेकर घर पर।
क्या इससे भी पुरानी टोपी चाहते हो
आओ अन्दर आओ
रखी हैं वहां मैंने
हारुन अल रशीद,बाबर,लुई
और मुसोलिनी की टोपियाँ
कुछ और भी टोपियाँ थीं
जो उड़ गयीं पिछले महाप्रलय में
पगडियां भी कुछ रखी हैं देखो
उस अरघनी पर टंगी चादर का
फेंटा बाँध कर देखो
लगोगे हू-बहू शिवाजी।
क्या अच्छी नहीं लगीं ये टोपियाँ
परेशान मत होओ
और मंगवा दूँगा
सिर्फ़ एक बार खुले दिल से कह दो
रखोगे किसके सिर पर
यह जंग विजयी टोपी
तुम्हें तो मालूम है
टोपी मिलना कोई बड़ी बात नहीं
आजकल।
*********
रचनाकार :मानस रंजन महापात्र
मोबाईल न:०९८९१९४६१७८
हिन्दी अनुवाद:डा.राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
(मानस रंजन महापात्र ओडिया भाषा के चर्चित एवं स्थापित कवि हैं । तथा इस समय नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया के राष्ट्रीय बाल साहित्य केन्द्र में संपादक पद पर कार्यरत हैं।)
हेमंत कुमार द्वारा प्रकाशित
7 टिप्पणियाँ:
बहुत व्यंगात्मक रचना है .....
आज के माहोल पर सटीक व्यंग है
bahut khuub!
हेमन्त कुमार जी।बच्चों के प्रति आपके रुझान को सलाम।-सुशील कुमार।( sk.dumka2gmail.com)
बहुत सटीक व्यंग्य है।
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
फिलहाल तो लाल,काली.हरी, सफ़ेद टोपियों का ज़माना है.
apka bhot dhanyavad me ek sishya hu mjhe yeh kavita bhot hi pasand ayi....
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